शिवराज की एक और अग्निपरीक्षा

– राकेश अचल


भाजपा विधायक और मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अभी अप्रासंगिक नहीं हुए हैं। भाजपा हाईकमान उन्हें भले ही कहीं और प्रतिष्ठित कर दे, किन्तु उन्हें राजनीति में एक और अग्निपरीक्षा देना पड सकती है, शिवराज की राजनीति में अब ‘लाडली बहना’ योजना अब भाजपा और शिवराज दोनों के लिए गले की हड्डी बन गई है।
मप्र के मुख्यमंत्री रहते हुए शिवराज सिंह चौहान ने चुनाव से ठीक सात महीने पहले लाडली बहना योजना शुरू की थी, इस योजना के तहत मप्र की महिलाओं को प्रति माह एक हजार रुपए देना शुरू किया गया था। सरकार ने इस योजना के तहत महिलाओं को प्रति माह 250 रुपए बढते हुए ये राशि तीन हजार रुपए तक करने की घोषणा की थी। इस योजना के तहत प्रदेश की सवा करोड से अधिक महिलाओं ने आवेदन किए और उन्हें इस योजना के तहत राशि देना शुरू किया गया था। प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन के बाद महिलाओं के खाते में सातवीं किश्त पहुंच गई है, लेकिन आशंका जताई जा रही है कि मोहन यादव सरकार इस योजना को या तो बंद करेगी या फिर इसके स्वरूप में परिवर्तन करेगी। योजना का नाम और नियम भी बदले जा सकते हैं।
विधानसभा चुनाव में लाडली बहना योजना एक तरह से ‘गेम चेंजर’ रही लेकिन भाजपा है, कमान ने इस योजना का न कहीं कोई जिक्र किया और न शिवराज सिंह चौहान को चुनाव में जीत का श्रेय दिया। चुनाव के बाद शिवराज सिंह को जब मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया तो लाडली बहना योजना से जुडी महिलाएं बिलखने लगी। उन्होंने शिकायत की कि उन्होंने ने तो शिवराज सिंह को मुख्यमंत्री बनाने के लिए वोट दिया था। खुद शिवराज सिंह चौहान नए मुख्यमंत्री का नाम घोषित होने के बाद आभार प्रदर्शन के लिए अपनी लाडली बहनों के बीच पहुंच गए थे, उन्हें उम्मीद थी कि पार्टी है कमान उन्हें ही पांचवीं बार मुख्यमंत्री बनाएगा।
शिवराज सिंह की लोकप्रियता को दरकिनार करते हुए पार्टी हाईकमान ने मोहन यादव को मप्र का नया मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया तो न सिर्फ शिवराज सिंह के पांवों के नीचे की जमीन खिसक गई, अपितु लाडली बहनाएं भी रुआंसी हो गईं। महिलाओं को आशंका है कि शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री न बनने की दशा में उन्हें मिलने लाभ से वंचित किया सकता है। सवाल ये है कि अव्वल तो ये योजना बंद करने का जोखिम नए मुख्यमंत्री मोहन यादव लेंगे नहीं, और यदि वे ऐसा करते हैं तो क्या शिवराज सिंह चौहान पार्टी अनुशासन की अनदेखी कर उसी तरह मैदान में कूदेंगे, जिस तरीके केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में रहते हुए किसानों के मुद्दे को लेकर उस समय की कांग्रेस सरकार के खिलाफ बागी हो गए थे।
किसानों के मुद्दे को लेकर ही सिंधिया और तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ में तकरार शुरू हुई था। सिंधिया ने उस समय की अपनी ही पार्टी की सरकार को चेतावनी दी थी कि यदि किसानों कि मांगों की अनदेखी की गयी तो वे सडकों पर उतर आएंगे। कमलनाथ ने सिंधिया कि धमकी को गंभीरता से नहीं लिया था और कह दिया था कि सिंधिया को रोका किसने हैं? जानकार कहते हैं कि शिवराज सिंह चौहान सिंधिया जैसा साहस नहीं रखते। यदि लाडली योजना बंद भी हुई तो भी शिवराज सिंह चूं तक नहीं कर सकते, पार्टी के प्रति बगावत का तो सवाल ही नहीं उठता। उनके सामने पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के अलावा पार्टी से बगावत करने वाले दूसरे अनेक नेताओं का हश्र भी सबके सामने है। उनमें सिंधिया जितना दुस्साहस भी नहीं कि वे पार्टी नेतृत्व से इस मुद्दे पर टकरा जाएं।
लाडली बहना योजना के भविष्य को लेकर उठाई जा रही आशंकाओं के बीच पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मजबूरी है मौन रहना, क्योंकि चार बार के मुख्यमंत्री के रूप में भी वे अपने बेटों को राजनीति में स्थापित नहीं कर पाए। वे यदि इस समय पार्टी के मौजूदा नेतृत्व और निर्णय के खिलाफ खडे होते हैं तो उनके बेटों का भविष्य बाधित होता है। शिवरज सिंह चौहान के लिए बहनों से ज्यादा बेटे महत्वपूर्ण हैं। वे किसी भी सूरत में भाजपा के मौजूदा नेतृत्व की तरह बगावत नहीं कर सकते। मुमकिन है कि वे भी तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर की तरह मोहन यादव के मंत्रिमण्डल में शपथ लेते हुए नजर आ जाएं। हालांकि पार्टी नेतृव उन्हें मप्र में रखकर मुख्यमंत्री मोहन यादव के लिए मुसीबत पैदा नहीं करना चाहेगा।
भाजपा और शिवराज सिंह चौहान की स्थिति ऐसी हो गई है कि ‘तो को और, न मो को ठौर’ अर्थात दोनों का एक-दूसरे के बिना काम नहीं चल सकता। शिवराज न अपनी पार्टी से बगावत कर नई पार्टी बना सकते हैं और न ही दल-बदल कर कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। उन्हें पार्टी हाईकमान जहां काम देगा वे वहीं काम करेंगे। विसंगति सिर्फ इतनी है कि समय शिवराज सिंह चौहान के अनुकूल नहीं है। वे त्रिशंकु हो गए हैं। वे घर के रहे न घाट के। मप्र में नेतृत्व कि दौड में पिछडे पूर्व केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल हों या कैलाश विजयवर्गीय की स्थिति शिवराज सिंह चौहान से सर्वथा भिन्न है, इनमें से कोई न यशवंत सिन्हा हो सकता है और न शत्रुघ्न सिन्हा।