मां की महिमा संसार में सबसे बडी है : देवी संध्या

भगवान ने ध्रुव व प्रहलाद को बता दिया कि भजन की कोई उम्र नहीं होती

विधूना/औरैया, 01 अगस्त। भारत की सुप्रसिद्ध देवी संध्या जी जिनके कंठ में सरस्वती का वास है, बाग देवी की असीमित कृपा कोकिल वाणी देवी संध्या जी भागवताचार्य परिणय पैलेस विधूना, औरैया उप्र की धरा पर अमृतवर्षा करते हुए कथा के चौथे दिन भक्तजनों को कथा का श्रवण कराते हुए कहा कि हम सब काल के मुख में है, काल का भय सबको डराता है, कल का किसी को भी पता है। भजन की कोई अवस्था नहीं होती, भजन का कोई विशेष समय नहीं होता, भजन किसी भी समय में कर सकते हो। लोग कहते समय आने पर करेगे, प्राग राज, हरिद्वार, वृंदावन जाएगे, भजन करेगे, ऐसा मत सोचो, विशेष समय में भजन होगा, भजन में वंदन नहीं होता है। भजन पर किसी भी समय कही कर सकते हो, आप जहां बैठे हो, आप जिस समय में भजन कर रहे है, वही उपयुक्त समय हो जाएगा। काल करे जो आज करे, आज करे सो अब, पल में परले होगी, बहुरि करगे कब। सासों की माला में भजन जब करो, कोशिश करो कि भजन अकेले न करो, तुम अपनी बहू, बेटी को बिठा लो। श्रीमद भागवत में आता है कि भजन की कोई अवस्था नहीं है। जो बच्चे सत्संग से जुडे हैं, उनको अपने माता-पिता को प्रणाम करने में दिक्कत नहीं आती है, जो भोगवादी से जुडे हैं उनको अपने मां-बाप को प्रणाम करने में दिक्कत आती है।

उन्होंने कहा कि भागवत में स्पष्ट लिखा है कि धु्रव की उम्र छोटी थी, भगवान ने ध्रुव व प्रहलाद से मिलकर यह बता दिया कि भजन की कोई उम्र नहीं होती। उत्तानपाद महाराज की दो पत्नियां थीं, सुनीति और सुरुचि। सुरुचि अपने पुत्र को राजा चाहती थी। ध्रुव पिता का प्यार पाने के लिए गोद में बैठ जाता है, सुरुचि ने ध्रुव को गोद से बाहर हटा कर दिया, तुम इस गोद में बैठने लायक नहीं हो, मेरा पुत्र उत्तम गोद में बैठेगा, ध्रुव ने कुछ अनर्गल नहीं कहा। ध्रुव की माता सुनीति ने बचपन से ही संस्कार देने शुरू कर दिए थे। सुनीत के स्वाभिवक संस्कार थे, लेकिन सुरुचि के नहीं। मां की महिमा संसार में सबसे बडी है। पिता के दायित्व से बडा मां का दायित्व होता है। मां चाहे तो अपनी संतान को जैसा चाहे वैसा बना सकती है। ध्रुव अपनी मां के पास गए और कहा हम पिता की गोद में बैठना चाहता हूं, पिता की गोद में बैठना चाहता है, सुनीति ने ध्रुव से कहा उस पिता की भी गोद मिल सकती है। ध्रुव ने संकल्प लिया और परमात्मा की खोज में निकल दिए। जहां भाव होते है वहां भगवान है। देवर्षि नारदजी को ध्रुव के दर्शन हुए। देवर्षि कहने लगे कि आप चलो हम आधा राज्य दिला देगे, वन में जाकर क्या करोगे। ध्रुव ने संकल्प को दोहराया, परम पिता परमात्मा की गोद में ही बैठना है, उसके लिए जो करना पडे करेंगे।