महाअभिषेक मंत्र उच्चारण के साथ मां रणकौशला देवी का मनाया जन्मोत्सव

मध्यप्रदेश-उत्तरप्रदेश एवं अन्य राज्यों से दर्शन करने पहुंचे श्रृद्धालु

भिण्ड, 03 फरवरी। दबोह कस्बे में स्थित ऐतिहासिक शक्तिपीठ मां रणकौशला देवी का शुक्रवार को जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया। श्रृद्धालुओं ने बताया कि आज के दिन देवी मां की नवीन प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी, तभी से सभी श्रृद्धालु शुल्क पक्ष की तेरस को मां रणकौशला माता का जन्मोत्सव मनाते हैं।

श्रृद्धालुओं ने बताया कि शुक्रवार को सुबह से ही भक्तों का मन्दिर पर आने का सिलसिला शुरू हो गया और देर रात्रि तक चलता रहा। मन्दिर परिसर में सात दिनों से श्रीराम चरित मानस प्रवचन कथा का आयोजन किया गया था। माता के जन्मोत्सव के दौरान विधि-विधान से हवन हुआ, इसके बाद माता को 56 के व्यंजनों का भोग लगाया गया। उसके बाद प्रसादी वितरण की गई, जिसमें हजारों श्रृद्धालुओं ने भण्डारा प्रसादी ग्रहण की।
मन्दिर के पुजारी हरधर पण्डा ने बताया कि प्राचीन समय से प्रसिद्ध स्थापित देवी मां की प्रतिमा सिद्ध मन्दिर रेहकोला देवी के नाम से दूरदराज क्षेत्र में चर्चित हैं, यहां मन्दिर में आज भी भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं, नित्य मन्दिर में सुबह के समय पूजा की सामग्री के साथ एक पुष्प मन्दिर में चढ़ा हुआ मिलता है।
मां के भक्त मलखान करने आते हैं पूजा
वीर मलखान का पहूज नदी के किनारे सिरसा गढ़ नामक रियासत हुआ करती थी। पहूज नदी की बीहड़ में आज भी इस रियासत के अभिशेष मिलते हैं, मन्दिर परिसर में एक बावड़ी है। स्थानीय लोगों के मुताबिक मन्दिर परिसर की बावड़ी का सीधा रास्ता सिरसागढ़ से जुड़ा है, एक बावड़ी सिरसागढ़ में भी है, इसी बावड़ी के रास्ते से वीर मलखान अपनी पत्नी गजमोतिन के साथ मां की पूजा-अर्चना करने आते हैं।
मन्दिर के पुजारी हलधर पण्डा के अनुसार मलखान और दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान से युद्ध हुआ था, जिसमें मलखान की तरफ से मां स्वयं युद्ध लड़ती थीं, तभी से इनका नाम रणकौशला पड़ा था। सन् 1998 में श्रीनगर से कारीगर आए थे, इन कारीगरों ने मां ने दर्शन दिए थे। मां ने कहा था कि मेरा स्वरूप काफी पुराना हो गया है, पाषाण प्रतिमा को अष्टधातु की प्रतिमा में बदलना है, इस प्रेरणा के साथ जब कारीगरों ने मन्दिर प्रबंधन को बताया तो पाषाण प्रतिमा पर अष्टधातु की परत चढ़ाई गई। इस तरह मां का स्वरूप सोने जैसा दमकने लगा है। मां रणकौशला देवी को स्थानीय लोग रेहकोला देवी के नाम से भी पूजते हैं। माता का यह सिद्धदात्री स्वरूप है, वो शत्रु पर विजय दिलाने के साथ ही हर मनोकामना पूरी करती हैं, सबसे ज्यादा लोग माता से संतान प्राप्त की इच्छा के साथ आते हैं, मां की कृपा से गोद हरीभरी होने पर पालना चढ़ाने का रिवाज है। इसके अलावा यहां लोगों की मनोकामना पूरी होने पर जवारे, श्रांग आदि चढ़ाई जाती है। यहां पूजा-अर्चना के लिए देश-विदेश से श्रृद्धालु आते हैं। साथ ही मन्दिर पर चैत्र की नवमी को विशाल मेले का भी आयोजन होता है, जिसमे हजारों लोग पहुंचते हैं।
ऐसा विदित है कि जब आल्हा-उदल के भाई सिरसागढ़ के सामंत वीर मलखान का पृथ्वीराज चौहान से युद्ध हुआ था, उसे पहले मां रणकौशला ने मलखान का शरीर वज्र की तरह कठोर बना दिया था, परंतु मलखान के पैरों में पदम था, मलखान पर अस्त्र और शस्त्र के प्रहार का कोई असर नहीं होता था, यह बात पृथ्वीराज चौहान को पता चली, इस पर व्यू रचना की गई और जमीन के अंदर श्रृंग (नुकीले हथियार) गढ़वाए गए, जैसे ही मलखान का घोड़ा आया तो वो श्रृंगों से घायल होकर जमीन पर गिर गया, जैसे ही मलखान जमीन पर गिरे वैसे ही उनके पैरों में नुकीले अस्त्र चुभ गए, इस वजह से वो चलते नुकील अस्त्र उनके पैरों को पंजों को चीर देते थे, इस तरह वीर गति को प्राप्त होना बताया जाता है।
दिन में तीन रूपों में होते हैं मां के दर्शन
यहां श्रृद्धालुओं को माता दिन में तीन रूपों में भक्तो को दर्शन देती हैं। मां का सुबह के समय अलग रूप होता है। मध्यावकाश के बाद अलग और संध्या के अलग रूप में भक्तो को दर्शन होते हैं। जो लोग सच्चे मन से मां से अर्जी लगाते हैं, संकटहरनी मां उनकी मनोकामनाएं निश्चय ही पूरी करती हैं। मेले के कार्यक्रम में शुक्रवार को हजारों श्रृद्धालु मां के दर्शन करने के लिए पहुंचे।