साहित्यिक परिचर्चा- नशे के विरुद्ध-हमारा युद्ध

– नशा नाश की जड है भाई, इसका सेवन है दुख दाई
– जिले के कवियों ने काव्य रचनाओं के माधम से नशे के विरुद्ध अभियान में दी आहुतियां

भिण्ड, 28 जुलाई। जिले में पुलिस विभाग द्वारा नशा मुक्ति अभियान ‘नशे से दूरी है जरूरी’ चलाया जा रहा है। जगह-जगह रैलियों का आयोजन कर लोगों को जागरुक किया जा रहा है तथा नशा न करने की शपथ भी दिलाई जा रही है। इसी क्रम में जिले के साहित्यकार भी पीछे नहीं हैं। उन्होंने नशा मुक्ति अभियान के तहत नशे के विरुद्ध-हमारा युद्ध टाइटिल से अपनी काव्य पंक्तियों के माध्यम से इस अभियान में शामिल होकर लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया है।
कवि प्रदीप युवराज बाजपेयी कहते हैं- नशा नाश की जड है भाई, इसका सेवन है दुख दाई। कोऊ तानिकें बीडी पीवे कोऊ सिगरेट के सुटका, कोऊ खेंच रहो चिलम चमेली कोऊ चबाबे गुटखा। पी दारू नाली में गिरि गए परि गए मति पे पथरा, उडना, बासन बिकि गए घर के और बखरी के खपरा। ऐसी तलब नशा की होबे बिकि जाएं लुटिया थारी, उजडे घर परिवार नशा तें होइ बडी बीमारी। वरिष्ठ कवि दशरथ सिंह कुशवाह ने कहा- नशा खोरी बुरा व्यसन है बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है, तन-मन-धन हो नष्ट इन्द्रियां भी कुंठित हो जाती हंै। हों समाज में अपमानित वे दर-दर ठोकर खाते हैं, इस दानव से मुक्ति मिले तो जीवन सफल बनाते हैं।
कवयित्री डॉ. शशिबाला राजपूत ने कहा- नशे के जो पाले पडे, जान के भी लाले पडे, समय से पहले यह शमशान दिखा देता है। बीबी और बच्चों को भूखा रात सुलाता है, पुरखों की जोडी माया दारू के नशे में उडा देता है। इसी परिप्रेक्ष्य में गीतकार कवि मनोज स्वर्ण कहते हैं- चरस हेरोइन बोदका गांजा भांग शराब, नशा किसी भी चीज का होता बहुत खराब। अगर न माने बंधुवर रहे नशे में चूर, बच्चों के हो जायेंगे सपने चकनाचूर। कवि सतेन्द्र सिंह राजावत ने कहा- नशे बाज ने मर्यादा में रहना भी छोड दिया। स्वाभिमान के दर्पण को अपने हाथों से तोड दिया। नशा कभी न करना यारों नशा बहुत बदनाम है, नशेबाज के घर पर देखो दिखता वह शमशान है।
इसी कडी में समाजसेवी डॉ. परमाल सिंह कुशवाह ने कहा- रखें काया को निर्मल हम सबकी श्वांस निश्चित है, नशा करता है जो मानव तो उसका ह्रास निश्चित है। नशे में झूमता, फिरता करे पैसों की बर्बाद, नशे को शान जो समझे तो उसका नाश निश्चित है। कवि राम कुमार पाण्डेय कहते हैं- बीडी और सिगरेट फेफडों सांसों के दुश्मन हैं, गुटखा और तम्बाकू खाकर होते प्राण हरण है। गांजा भांग शराब लिवर संग दिल दिमाग खा जाते, स्मैक चरस और हेरोइन नित अपराध कराते। कवि हेमंत जोशी नादान ने कहा- जिसे देखो वो ही नशे मे फंसा है, नशेडी पर सदा ही जमाना हंसा है। नशा सब छोड दो सर उठा के जियो, जिसने किया व्यसन उसकी दुर्दशा है।
इसी क्रम में कवि अंजुम मनोहर ने कहा- दारू पीकर दंगा करना उसकी तो आदत हैं, पत्नी जो शराब को रोके उसकी तो आफत है। राशन पानी के पैसों से वह दारू लाता है, भूखे पेट बिलखते बच्चे वो तो सो जाता है। कवि धर्मेन्द्र पहाडिया ने कहा- नशा नाश का द्वार कहा है गुणी जनों ने बतलाया, स्वाभिमान का पतन हुआ घर पर भी हो काला साया। दुर्बल हुआ शरीर नशे से क्षरण हुआ जीवन का, धन, वैभव का नाश हुआ जिसने भी इसको अपनाया। हास्य कवि रविन्द्र तिवारी ने कहा- गुटखा खाने वालों ने कमाल कर दिया, जहां पर बैठते हैं उस जगह को लाल कर दिया। दुकानदार को तो मालामाल कर दिया, पूज्य पिताजी के पैसों का ताल कर दिया।