– राकेश अचल
मप्र के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव अपने बदजुबान मंत्रियों को बर्खास्त करने में असहाय क्यों नजर आ रहे हैं, क्या उन्हें इतनी भी स्वायत्तता नहीं है कि वे मप्र हाईकोर्ट के आदेश का परिपालन और जनभावनाओं की कदर करते हुए अपने किसी विवादित मंत्री साथी को मंत्रिमण्डल से बाहर का रास्ता दिखा सकें।
डॉ. मोहन यादव उज्जैन उत्तर से चुने जाने वाले ऐसे दूसरे विधायक हैं जो मप्र के मुख्यमंत्री बने। यादव से पहले प्रकाश चंद्र सेठी यहां से चुने जाने के बाद मप्र के मुख्यमंत्री बने थे। डॉ. मोहन यादव के छोटे से कार्यकाल में उनके साथी मंत्री नरेन्द्र पटेल, विजय शाह और उप मुख्यमंत्री जगदीश देवडा की बदजबानी यादव को परेशानी में डाल चुकी है। शाह के मामले में तो उच्च न्यायलय ने स्वत: संज्ञान लेकर उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई, लेकिन अब तक एक मुख्यमंत्री की हैसियत से डॉ. मोहन यादव कोई कार्रवाई नहीं कर सके। वे पार्टी हाईकमान की ओर ताक रहे हैं।
विजय शाह का मामला अभी सुलझा भी नहीं है कि उप मुख्यमंत्री जगदीश देवडा ने भारतीय सेना को प्रधानमंत्री के चरणों में नतमस्तक करा कर एक नया बखेडा खडा कर दिया। शाह ने तो अपने बयान के लिए माफी भी मांगी, लेकिन देवडा माफी मांगने को भी तैयार नहीं हैं। वे उल्टे अपने बयान को तोड मरोडने के लिए मीडिया पर चड्डी गांठ रहे हैं। शाह और देवडा से पहले डॉ. मोहन यादव के प्रिय नरेन्द्र पटेल भी ग्वालियर में बखेडा कर व्यापारियों के निशाने पर आ चुके हैं, किंतु मुख्यमंत्री एक भी मंत्री के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर पाए, उल्टे उन्हें अपने मंत्रियों के बचाव के लिए मजबूर होना पडा है। इस कोशिश में वे हाईकोर्ट के रडार पर भी आ सकते हैं।
जाहिर है कि भाजपा हाईकमान अपने किसी भी जाहिल मंत्री को बर्खास्त कर हार नहीं मानना चाहता। पार्टी ने सभी विवादित मंत्रियों को बचाना अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है। अपने मंत्रियों के लिए भाजपा हाईकमान अदालत से भी टकराने के लिए तैयार नजर आ रहा है। पार्टी हाईकमान की मुश्किल ये है कि जिन मंत्रियों के खिलाफ कार्रकी मांग उठ रही है वे या तो अनुसूचित जाति से हैं या पिछडे वर्ग से। इनके खिलाफ कार्रवाई से इन समाजों में असंतोष पैद हो सकता है और पार्टी ये जोखिम लेने की स्थिति में है नहीं। आपको बता दें कि किसी मुख्यमंत्री या मंत्री को बर्खास्त करना कोई अजूबी घटना नहीं है। मप्र में मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को विभिन्न कारणों से हटाया गया है, जिनमें किसी को राजनीतिक कारण से जैसे सत्ता परिवर्तन, पार्टी आंतरिक संघर्ष, गठबंधन की मांगें, या विधानसभा में बहुमत खोना। भ्रष्टाचार के आरोप, भ्रष्टाचार या घोटालों में कथित संलिप्तता के कारण मंत्रियों को अक्सर हटा दिया जाता है। प्रदर्शन में कमी सरकार या जनता द्वारा अपेक्षित प्रदर्शन न दिखाने पर मंत्रियों को हटाया गया।
स्वास्थ्य या व्यक्तिगत कारण से भी कुछ मामलों में मंत्रियों या मुख्यमंत्रियों ने इस्तीफा दिया। कानूनी चुनौतियों या आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि के कारण भी अनेक मंत्रियों को पद छोडना पडा। चुनावी रणनीति या जनता की राय को बेहतर करने के लिए मंत्रिमण्डल में फेरबदल तो होते ही रहते हैं। मेरी अपनी जानकारी के मुताबिक 1956 से 2025 तक लगभग 18 बार मुख्यमंत्री बदले गए। इनमें से कई परिवर्तन सामान्य चुनावों, पार्टी नेतृत्व के निर्णय या राजनीतिक अस्थिरता के कारण हुए। जैसे कैलाश नाथ काटजू ने (1957) कांग्रेस के आंतरिक नेतृत्व परिवर्तन के कारण पद छोडा। दिग्विजय सिंह (2003) 1993-2003 तक मुख्यमंत्री रहे, लेकिन 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद पद छोडना पडा। शिवराज सिंह चौहान (2023) 2005-2018 तक और फिर 2020-2023 तक मुख्यमंत्री रहे। 2023 में विधानसभा चुनाव जीतने के बावजूद, भाजपा ने नेतृत्व परिवर्तन के तहत मोहन यादव को नया मुख्यमंत्री नियुक्त किया। कमलनाथ (2020) 2018-2020 तक मुख्यमंत्री रहे, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के भाजपा में शामिल होने के बाद सरकार गिर गई और उन्हें इस्तीफा देना पडा।
मंत्रियों को हटाने का अनुमान मंत्रियों को हटाने की संख्या का सटीक आंकडा देना कठिन है, क्योंकि मंत्रिमण्डल में फेरबदल और इस्तीफे नियमित रूप से होते रहते हैं। हालांकि औसतन प्रत्येक विधानसभा कार्यकाल (5 वर्ष) में कम से कम 1-2 मंत्रिमण्डल फेरबदल होते हैं, जिसमें 2-5 मंत्रियों को हटाया या बदला जाता है। पिछले 60 वर्षों में लगभग 12 विधानसभा कार्यकाल हुए, जिसके आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि कम से कम 50-100 मंत्रियों को विभिन्न कारणों से हटाया गया होगा। मुझे स्मरण आता है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सरकार ने अपने एक दशक के लंबे कार्यकाल में कई मंत्रियों को भ्रष्टाचार के आरोपों (जैसे, व्यापम घोटाला) या खराब प्रदर्शन के कारण हटाया था। कमलनाथ की अल्पकालिक सरकार होने के बावजूद, कुछ मंत्रियों को आंतरिक असंतोष के कारण बदला गया।
अब देखना ये है कि मौजूदा मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव इस झंझावात से निबट पाते हैं या नहीं। उनके सामने दो ही विकल्प हैं, पहला वे हाईकमान की कठपुतली बने रहें और दूसरे अपने विवेक से कार्रवाई करें। डॉ. यादव के लिए शायद पहला विकल्प आसान है, वे जाहिल मंत्रियों के साथ सरकार चलाके लिए अभिशप्त जो हैं।