– राकेश अचल
हिन्दुस्तानी यानि सनातनी बेमिसाल होते हैं। आज-कल हम हिन्दुस्तानी अपनी लगातार काटी जा रही जेब की फिक्र करने के बजाय उस औरंगजेब को लेकर आपस में कट-मर रहे हैं, जिसे हम में से किसी ने भी देखा नहीं। देखते भी कैसे, क्योंकि उसे दुनिया से गए सैकड़ों साल हो चुके हैं। आज की राजनीति ने औरंगजेब को एक बार फिर जिंदा कर दिया है। अब औरंगजेब सत्ता प्रतिष्ठान और उससे बाबस्ता दलों और संगठनों के काम आ रहा है। कोई औरंगजेब के कसीदे पढ़ रहा है तो कोई उसकी क्रूरता के किस्से सुना-सुनाकर हिंदुस्तान में मौजूद हर मुसलमान को औरंगजेब बनाए दे रहा है।
यकीनन बात हैरानी की है, लेकिन हिंदुस्तान में बहुसंख्यक लोग हैं जो औरंगजेब के मुद्दे पर आपस में जूझने की वकालत कर रहे हैं। बहुत से कूढ मगज हैं जो आज-कल औरंगजेब की तस्वीरें सार्वजनिक गुसलखानों और पाखानों पर लगाकर अपने राष्ट्रवादी होने का प्रमाण दे रहे हैं। ये सब देखकर औरंगजेब जहां भी होगा हंस ही रहा होगा। हिन्दू तालिबानियों ने औरंगजेब को गुसलखानों और पखानों से लेकर फिल्मी दुनिया के जरिए एक बार फर जिन्दा कर दिया है। आज-कल वो ‘छावा’ फिल्म का लोकप्रिय खलनायक है। दर्शक औरंगजेब की भूमिका करने वाले अक्षय खन्ना के अभिनय की भूरि-भूरि प्रशंसा कर रहे हैं।
आप मानें या न माने किन्तु ये सच है कि आज की सियासत में भी औरंगजेबों की कमी नहीं है। मैंने तो औरंगजेब को देखा नहीं, किताबें के जरिए ही जाना है। इसलिए मैं उसके बारे में आधिकारिक रूप से कुछ कहने का अधिकारी नहीं हूं, किन्तु जो औरंगजेब को जिंदा कर सियासत कर रहे हैं वे शायद उसके बारे में मुझसे ज्यादा जानकारी रखते हैं। न रखते होते तो औरंगजेब को आज की सियासत का औजार भी नहीं बनाते। अब औरंगजेब जिंदा हो ही गया है तो रोजाना कटती अपनी जेब की चर्चा कौन करे? जेब कतरी की चर्चा न हो ये भी औरंगजेब को जिन्दा करने की एक वजह हो सकती है।
आज की तारीख में लोग जितना देश के प्रधानमंत्री के बारे में या लोकसभा में विपक्ष के नेता के बारे में या अपने खुद के पुरखों के बारे में नहीं जानते जितना की 318 साल पहले 3 मार्च के रोज दिवंगत हुए औरंगजेब के बारे में जानते हैं। औरंगजेब के बारे में जिसके पास जो भी जानकारी है वो इतिहास की किताबों से ही आई है। अब आज की सरकार और आज की सरकार चलने वाली भाजपा और उसके अनुषांगिक संगठन कहते हैं कि औरंगजेब के बारे में इतिहास सच नहीं बताता। मुमकिन है कि ऐसा हो भी और न भी हो, लेकिन सवाल ये है कि 300 साल से भी ज्यादा पुराने किरदार की आज की सियासत में क्या जगह है? कौन से मुकाम पर हमें औरंगजेब कोई जरूरत पड़ गई?
आप यकीन मानिए कि औरंगजेब न मणिपुर की समस्या सुलझाने के काम आ सकते हैं और न रूस और यूक्रेन के बीच की जंग समाप्त करने में कोई भूमिका अदा कर सकते हैं। वे दो गज जमीन के नीचे 318 साल से खामोशी के साथ सोये पड़े हैं, फिर उन्हें क्यों परेशान किया जा रहा है? देश के अल्पसंख्यक मुसलमानों को लज्जित करने के लिए। उन्हें देशद्रोही बताने के लिए? दुनिया में कितने देशों में गड़े मुर्दे उखाडक़र राजनीति की जाती है, मुझे नहीं मालूम लेकिन मैं इतना जानता हूं कि आज-कल देश एक ऐसे दौर से गुजर रहा है जिसमें केवल और केवल एक उन्माद है। ऐसा उन्माद जिसकी न आंखें हैं और न कान। उसे न किसी की बात सुनाई देती है और न हकीकत दिखाई देती है।
अब सुना है कि औरंगजेब को खलनायक मानने वाले लोग पूरे मुल्क के मुसलमानों को भी औरंगजेब मानने लगे हैं। वे आने वाली होली पर मुसलमानों को अपने पास फटकने भी नहीं देंगे। गले लगाने और रंग-अबीर का इस्तेमाल करना तो दूर है। ये औरंगजेबी घृणा का ज्वार मथुरा से उठा है उसी मथुरा से जहां रसखान कृष्ण भक्ति में सराबोर रहा करते थे। ये गुबार देश की उस गंगा-जमुनी साझा विरासत को फूंक से उड़ा देने की कोशिश है। आम मुसलमान को औरंगजेब मानने वाले हिन्दू तालिबानियों की नजर में हिंदुस्तान में कोई गंगा-जमुनी संस्कृति थी ही नहीं, ये तो अर्बन नक्सलियों द्वारा पैदा किया गया एक मिथक है।
इतिहास एक ऐसी चीज है जो बदली नहीं जा सकती। इतिहास के जरिए आप अपना वर्तमान और भविष्य बना और बिगाड़ सकते हैं, लेकिन इतिहास का बाल-बांका नहीं कर सकते, फिर चाहे वो इतिहास किसी अंग्रेज ने लिखा हो, किसी मुगल ने लिखा हो या किसी भटियारे ने। इतिहास को बदलने की कोशिश जो लोग करते हैं उन्हें इतिहास कूड़ेदान में डाल देता है। दुर्भाग्य ये है कि हम न वर्तमान को लेकर फिक्रमंद हैं और न भविष्य को लेकर। हमारी परेशानी वो इतिहास है जो अब इतिहास हो चुका है। वो हमारा कुछ भी भला-बुरा नहीं कर सकता। हां हम जरूर इतिहास को जेरे बहस लेकर अपने पांवों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। मुमकिन है कि आप मेरी बात से इत्तेफाक न रखते हों, लेकिन क्या एक भी तर्क है जो आप इस पक्ष में दे सकें? क्या आप बता सकते हैं कि गुसलखानों और पाखानों पर औरंगजेब की तस्वीरें लगाकर हम औरंगजेब का कुछ बिगाड़ लेंगे?
आज की सियासत में कोई औरंगजेब नहीं हो सकता। कोई औरंगजेब की तरह मुल्क पर आधी सदी तक राज नहीं कर सकता, क्योंकि अब हर पांच साल में चुनाव होते हैं। आज यदि औरंगजेब भी होता तो उसे भी चुनाव लडऩा पड़ता और मुमकिन था कि उसे भी एक-दो चुनाव के बाद जनता खारिज कर देती। औरंगजेब खुशनसीब था जो उसके जमाने में आरएसएस और भाजपा नहीं थी, यदि होती तो उसे कभी का देश निकाला दे चुकी होती। संघ और भाजपा के रहते देश किसी सूरत में गुलाम हो ही नहीं सकता था। लेकिन हम सब बदनसीब हैं कि हमारे दौर में औरंगजेब न सही लेकिन उसकी मानसिकता के लोग हमारे बीच हैं।
मुहिउद्दीन मोहम्मद कहें या औरंगजेब या आलमगीर यदि चाहता तो 50 साल के शासन में देश को हिन्दू विहीन कर देता, लेकिन उसने ऐसा नहीं चाहा। उसकी चाहत आज के शासकों जैसी शायद नहीं रही होगी। जो देश को कांग्रेस विहीन, मुसलमान विहीन करना चाहते हैं। उसने हिन्दुओं पर भी राज किया और मुसलमानों पर भी, लेकिन आज के शासक केवल हिन्दू पदशाही चाहते हैं। वे न मुसलमानों पर राज करना चाहते हैं और न उन्हें राजसत्ता में भागीदारी करने देना चाहते हैं, इसीलिए एक-एक कर विधानसभाओं से लेकर संसद तक में उनकी सहभागिता को कम करते जा रहे हैं, औरंगजेब को छोडिय़े जैसे अकबर के दरबार में दिखावे के लिए जो नवरत्न थे, वैसे ही आज की सरकार में दिखावे के लिए भी एक मुसलमान न संसद है और न मंत्री। अब आप समझ सकते हैं कि औरंगजेब कौन है?
मेरे अवचेतन में भी औरंगजेब की वही क्रूर छवि है जो आम हिन्दुस्तानी, आम सनातनी, आम कांग्रेसी, आम भाजपाई के जेहन में है, लेकिन मैं औरंगजेब को लेकर आज अपनी जेब की दुर्दशा को नहीं भुला सकता। मेरी या आपकी जेब किसी औरंगजेब ने नहीं काटी। हमारी जेब हमारी सरकार काट रही है, हालांकि हमारे मुखिया औरंगजेब नहीं हैं, लेकिन वे और उनके कारनामें औरंगजेब जैसे जरूर नजर आ रहे हैं। इसलिए मैं बार-बार कहता हूं कि औरंगजेब को भाड़ में जाने दीजिए। देश के हर मुसलमान को औरंगजेब मत समझिए। मुसलमान को लेकर इतनी नफरत पैदा मत कीजिए कि एक और विभाजन की त्रासदी से इस खूबसूरत मुल्क को दो-चार होना पड़े।