आलस्य ही हमारा सबसे बड़ा दुश्मन होता है : जगद्गुरू शंकराचार्य

151 कन्या पूजन कर धूमधाम से मनाया शंकराचार्य महाराज का 65वां जन्मोत्सव

भिण्ड, 09 अक्टूबर। अटेर रोड स्थित अमन आश्रम परा भिण्ड में श्रीमद् भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ में श्री काशीधर्म पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी नारायणानंद तीर्थ जी महाराज ने कहा कि भागवत धर्म सभी के लिए उपकारी है। जो मनुष्य माया के वशीभूत हैं उन्हें बार-बार भवसागर में फसना होता है। हमारे संपूर्ण कर्म चित्त एवं अंत:करण की शुद्धि में सहायक हैं। मनुष्य का शरीर ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट रचना है, संसार में विद्यमान ज्ञान पूर्ण नहीं है, वैदिक ज्ञान ही पूर्ण ज्ञान है। जितने भी द्वंद हैं सभी मिथ्या हैं, ऐसा सिद्धांतवादी कहते हैं। द्वंद का अर्थ दो से है जैसे सुख-दु:ख, प्रमाण, प्रमेय आदि। आदिगुरू शंकराचार्य जी महाराज कहते हैं कि न मैं माता हूं और न मैं पिता हूं और न ही पुत्र हूं, मैं चिदानंद स्वरूप शिव हूं। जब हम पिता का होना निश्चय करते हैं तो पुत्र का होना स्वत: ही निश्चित हो जाता है। हमें इन्द्रियों के आधार पर जिस वस्तु की प्राप्ति होती है, उस आधार पर हम तत्व का निरूपण करते हैं। इन्द्रियों के द्वारा नाम और रूप का ज्ञान होता है, इन्द्रियों के द्वारा सच्चिदानंद स्वरूप ईश्वर को नहीं जान सकते।

कन्याभोज में शामिल कन्याएं

महाराजश्री ने कहा कि उपासना सिद्धांत में दो मत हैं, पहला कहता ईश्वर सत्य है तथा दूसरा कहता है जगत मिथ्या है। श्रीमद् भागवत में जिस सत्य का प्रतिपादन किया गया है, वह परम सत्य है, वह अद्वितीय है, श्रीमद् भागवत संपूर्ण विश्व प्राणियों के कल्याण के लिए है। जो भी भगवान से पैदा हुआ है उसे भागवत का बहिष्कार नहीं करना है। ब्रह्मा जी से चारों प्रकार की सृष्टि की उत्पत्ति हुई है अंडज, पिण्डज, स्वेदज और उद्भिज। पृथ्वी संपूर्ण जीवधारियों को धारण किए हुए है और सूर्य सभी को ओजप्रदान कर रहा है, सभी को रहने के लिए आकाश ने जगह दे रहा है। बिना किसी भेदभाव के और जीव छोटे बड़े का भेदभाव कर द्वेष पैदा कर रहे हैं जाति एवं सांप्रदायिक धर्म भागवत धर्म नहीं है। जो लोग आक्षेप करते हैं कि धर्म की शैली संकीर्ण है वो धर्म के तत्व को नहीं जानते ‘धर्मस्य तत्वम निहतं गुहायाम’ धर्म के पहले कोई उपपद न लगाया न जाए। श्रृद्धा के बिना किसी भी प्रकार ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता है। आलस्य ही मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है आलस्य का परित्याग कर पुरुषार्थ करते रहना चाहिए मनुष्य को चलते रहना चाहिए चरैवेति चरैवेति ऐसा शास्त्र कहते हैं। अज्ञात का ज्ञापन कराने के लिए गुरु का होना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि संस्कार से रहित ब्राह्मण ही क्यों न हो वह वेद ज्ञान के योग्य नहीं है।
कार्यक्रम से पूर्व पूज्य महाराजश्री का 65वां जन्मोत्सव बहुत ही धूमधाम से विभिन्न प्रदेशों से आगंतुक सैकड़ों भक्तों ने मनाया। सर्वप्रथम महाराजश्री की दीर्घायु हेतु भगवान शिव का अभिषेक एवं अर्चन डॉ. वरुणेश चन्द्र दीक्षित, आचार्य योगेश तिवारी एवं आचार्य कृष्ण कुमार द्विवेदी ने संपन्न करवाया। इसके उपरांत 151 कन्याओं का सविधि पूजन एवं भोजन तथा विशाल भण्डारे का आयोजन किया गया।