रिश्वत लेने वाले आरोपी को चार वर्ष का सश्रम कारावास

सातवें वेतनमान की द्वितीय किस्त एवं वेतन निर्धारण की ऐवज में ली थी रिश्वत

सागर, 09 नवम्बर। विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) जिला सागर आलोक मिश्रा की अदालत ने सातवें वेतनमान की द्वितीय किस्त एवं वेतन निर्धारण करने के ऐवज में रिश्वत लेने वाले आरोपी गोविन्द कोरी को दोषी करार देते हुए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा-7 के अंतर्गत चार वर्ष के सश्रम कारावास एवं दस हजार रुपए जुर्माने की सजा से दण्डित किया है। मामले की पैरवी प्रभारी उपसंचालक (अभियोजन) धर्मेन्द्र सिंह तारन के मार्गदर्शन में सहायक जिला अभियोजन अधिकारी लक्ष्मी प्रसाद कुर्मी ने की।
जिला लोक अभियोजन सागर के मीडिया प्रभारी के अनुसार घटना संक्षिप्त में इस प्रकार है कि 17 दिसंबर 2019 को आवेदक विजयशंकर पाठक ने कार्यालय पुलिस अधीक्षक, विपुस्था, लोकायुक्त सागर को संबोधित एक हस्तलिखित शिकायती आवेदन इस आशय का दिया कि उसके सातवें वेतनमान की द्वितीय किश्त के आहरण, वेतन निर्धारण उपरांत सेवा पुस्तिका वापस करने के ऐवज में अभियुक्त गोविन्द कोरी द्वारा छह हजार रुपए रिश्वत राशि की मांग की जा रही है, वह रिश्वत नहीं देना चाहता, बल्कि अभियुक्त को रिश्वत लेते रंगे हाथों पकडवाना चाहता है। उक्त आवेदन पर अग्रिम कार्रवाई हेतु निरीक्षक बीएम द्विवेदी को अधिकृत किया गया। आवेदन में वर्णित तथ्यों के सत्यापन हेतु एक डिजीटल वॉयस रिकार्डर दिया गया, इसके संचालन का तरीका बताया गया, अभियुक्त से रिश्वत मांग वार्ता रिकार्ड करने हेतु निर्देशित किया, तत्पश्चात आवेदक द्वारा मांग वार्ता रिकार्ड की गई एवं अन्य तकनीकि कार्रवाईयां की गईं एवं ट्रेप कार्रवाई आयोजित की गई। नियत दिनांक को आवेदक ने अभियुक्त को राशि दी व आवेदक का इशारा मिलने पर ट्रेप दल ने मौके पर पहुंचकर अभियुक्त गोविन्द कोरी को घेरे में लिया, परिचय आदान-प्रदान के बाद अभियुक्त से पूछने पर आवेदक से रिश्वत राशि लेकर अपनी फुल पेंट की बांई जेब में रख लेना बताया, मौके पर लिखा-पढी की व्यवस्था न होने से अभियुक्त को शासकीय वाहन से पुलिस थाना ले जाकर अग्रिम कार्रवाई की गई। इस आधार पर प्रकरण पंजीबद्ध कर मामला विवेचना में लिया गया। विवेचना के दौरान साक्षियों के कथन लेख किए गए, घटना स्थल का नक्षा मौका तैयार किया गया, अन्य महत्वपूर्ण साक्ष्य एकत्रित कर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 7, 13(1)(डी), सहपठित धारा 13(2) का अपराध आरोपी के विरुद्ध दर्ज कर विवेचना उपरांत चालान न्यायालय में पेश किया। जहां विचारण के दौरान अभियोजन द्वारा साक्षियों एवं संबंधित दस्तावेजों को प्रमाणित किया गया, अभियोजन ने अपना मामला संदेह से परे प्रमाणित किया। विचारण उपरांत विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) सागर आलोक मिश्रा के न्यायालय ने आरोपी को दोषी करार देते हुए उपरोक्त सजा से दण्डित किया है।