– राकेश अचल
गल चुकी है दाल, तडका मार ले
जा रहा है साल तडका मार ले
जाग जा जयपुर गुलाबी नींद से
ऊंघ मत भोपाल, तडका मार ले
तेल कडका ले जऱा फिर आग पर
झोंक मिर्ची लाल, तडका मार ले
डेग मुश्किल से चढी है भूल मत
है टकाटक माल, तडका मार ले
वक्त सोने का नहीं है रामधन
सोच मत इकबाल, तडका मार ले
ले रही है जिंदगी अंगडाइयां
ताल पर दे ताल, तडका मार ले
दौर है तब्दीलियों का गौर कर
कोई भ्रम मत पाल, तडका मार ले
हें इलेक्शन एक उठती हाट सा
काट माया जाल, तडका मार दे