– राकेश अचल
भारत की जनता को बधाई कि उसे बुलेट ट्रेन के बदले में जो तेज रफ्तार रेल मिली है, उसमें बैठने से पहले हर रेल यात्री को कम से कम एक-दो बार तो ‘नमो-नमो’ कहना ही पडेगा, टिकिट खरीदते समय, टिकिट रद्द करते समय। घर वालों को भी बताते समय नमो-नमो करना जरूरी भी है और मजबूरी भी। जीते-जी अमरत्व पाने की ये बीमारी कांग्रेस के नेताओं से होती हुई अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक आ पहुंची है। रेल मंत्री और रेल मंत्रालय ने नई तेज गति की रेल का नामकरण करते हुए प्रधानमंत्री जी की वंदना करने का अदभुत प्रयास किया है।
रोजाना करीब ढाई करोड यात्रियों को आवागमन की सुविधा देने वाली भारतीय रेल भले ही दुनिया की छोटी बडी रेल सेवा है, लेकिन आज भी रफ्तार और जन सुविआधाओं के मामले में दूसरे देशों से बहुत पीछे है। भारतीय रेल नेताओं की वंदना में जरूर दुनिया में नंबर एक पर है और नई रेल का नाम ‘नमो’ रखने के बाद तो भारतीय रेल चमचत्व में विश्व गुरू बन गई है। भारतीय रेल ने एक ऐसे व्यक्ति के नाम पर रेल चलाई है, जिसका योगदान भाजपा के ही लालजी भाई और अटल बिहारी से भी ज्यादा आंक लिया गया है।
‘नमो’ का पूरा अर्थ है नरेन्द्र मोदी। भारतीय राजनीति का ये पहला ऐसा नाम है जो एक साधारण परिवार से राजनीति में आकर हर मामले में असाधारण हो जाना चाहता है। असाधारण होने की महत्वाकांक्षा बुरी बात नहीं है, लेकिन जब इस महत्वाकांक्षा के पीछे वैसी ही कामना हो जैसी कांग्रेस में थी तो सवाल खडे किए जा सकते हैं। प्रधानमंत्री जी ने खुद को अजर-अमर बनाने के लिए रेल का नाम ‘नमो’ रखने पर कोई आपत्ति नहीं की। कभी नहीं कहा कि उनकी अपनी पार्टी में उनसे पहले भी एक से बढकर एक बडे नेता हुए हैं, जिनके नाम पर इस नई रेल का नाम रखा जा सकता है। नामी होने की बात आई तो वे सभी को भूल गए। यहां तक की एकात्म मानवतावाद के जनक दीनदयाल उपाध्याय और श्यामा प्रसाद मुखर्जी को भी। अटल-आडवाणी को भुलाना तो उनकी विवशता थी ही।
नई रेल के नामकरण को लेकर राजनीतिक आपत्तियां आएंगी, ये सबको पता था। इसीलिए गोदी मीडिया के जरिये देश को ये बताया जा रहा है कि ‘नमो’ का अर्थ नरेन्द्र मोदी नहीं बल्कि कुछ और है। सफाई दी जा रही है कि ‘नमो’ शब्द सनातन धर्म से लिया गया है। हिन्दू धर्म में नमो का मतलब भगवान से होता है। जब भगवान को नमस्कार किया जाता है तब हम नमो शब्द का उपयोग करते हैं। इसका उपयोग वास्तव में सनातन धर्म के मंत्रों से संबंधित है। मेरे ख्याल से हमें अब ‘नमो’ नाम पर आपत्ति करने के बजाय नमो का धन्यवाद करना चाहिए कि उन्होंने देश को बुलेट ट्रेन के एवज में कम से कम नमो ट्रेन तो दी। वे यदि अपने दूसरे वादों की तरह यदि इस ट्रेन को न भी देते तो आप नमो का क्या बिगाड लेते?
कुछ वर्ष पहले जब मैं चीन की यात्रा पर गया था तब मैंने वहां भारत की नई नमो रेल से भी बढिया बुलेट ट्रेन देखी थी। एक ट्रेन तो ‘मेग्लेव ट्रेन’ थी जो 450 किमी प्रति घण्टा की रफ्तार से चलती है, लेकिन उसका नाम ‘शी जिनपिंग’ रेल नहीं था। उसका नाम चीन के गांधी माओ के नाम पर भी नहीं था। लगता है कि चीनी सरकार और जनता नाम का महत्व समझती ही नहीं है। हम रफ्तार के मामले में चीन और जापान का अनुशरण करते हैं, अब लगता है कि ये दोनों देश नामकरण के मामले में भारत की नकल करेंगे। भारत में रेलें व्यक्तियों, नदियों और नमो के नाम पर भी चलाई जाती हैं।
कहते हैं कि भारत में पहली ट्रेन 1837 में मद्रास में लाल पहाडियों से चिंताद्रीपेट पुल लिटिल माउंट तक चली थी। इसे आर्थर कॉटन द्वारा सडक निर्माण के लिए ग्रेनाइट परिवहन के लिए बनाया गया था। इसमें विलियम एवरी द्वारा निर्मित रोटरी स्टीम लोकोमोटिव प्रयोग किया गया था, 25 किमी तक चलाई गई इस रेल का नाम भी किसी अंग्रेज के नाम पर नहीं रखा गया था, लेकिन 186 साल बाद हमने ये गलती सुधर ली और मात्र 17 किमी का सफर तय करने वाली रेल को नमो नाम दे दिया। इस रास्ते में पांच स्टेशन पडेंगे। ये नमो रेल बहुत कस-बल लगा ले तो भी 180 किमी प्रति घण्टा से ज्यादा नहीं दौड सकती। हालांकि ये रेल भी 130 किमी प्रति घण्टे के हिसाब से ही दौड सकती है। लेकिन दौडेगी नहीं। दौडेगी तो 100 किमी प्रति घण्टे के हिसाब से ही। लेकिन आप इसे झुनझुना नहीं कह सकते।
नई रेल हर मामले में बेहतर है, लेकिन इसमें आम जनता के लिए कोई कोच नहीं है। इस नई रेल में स्टेण्डर्ड और प्रीमियम कोच हैं। इस रेल में चढने के लिए कम से कम 40 रुपए चाहिए। भविष्य में ये रेल दिल्ली से मेरठ तक चलेगी और 55 मिनिट में ये सफर पूरा करेगी, जो आज ढाई घण्टे लगता है। भारत के रेल मंत्री कहने को अश्विनी वैष्णव हैं, लेकिन सबसे जायदा हरी झण्डियां प्रधानमंत्री जी ने दिखाई हैं। मोदी जी प्रधानमंत्री के साथ ही रेल मंत्री की भूमिका में दिखाई देते हैं। उनके नेतृत्व में भारतीय रेल ने बहुत प्रगति की है। भारतीय रेल ने देश के वरिष्ठ नागरिकों से तमाम रियायत छीन ली है। आम जनता से उनकी रेलें छीन ली हैं। बदले में उन्हें नमो रेल उपलब्ध कराई है। ताकि देश जब विश्व गुरू बने तब उसके पास भी चमचमाती हुई रेलें और रेल स्टेशन हों।
हमारे देश में भले ही रेलवे एक बहुत बडा विभाग है, लेकिन इस विभाग का अब स्वतंत्र बजट नहीं बनाया जाता। पहले बनाया जाता था। देश की जनता आम बजट की तरह रेल बजट का भी इंतजार करती थी। रेल बजट देश के विकास की एक झलक पेश करता था। अखबार और बाद में टीवी चैनलों के लिए भी रेल बजट और रेल मंत्री रुचि का विषय हुआ करते थे, किन्तु मोदी सरकार ने ये सब बंद कर दिया। अब न देश को रेल बजट का पता चलता है और न रेल मंत्री के नाम का। रेल भी भक्तों की तरह नमो-नमो जपती नजर आने लगी है। कोशिश ये है कि रेलों के जरिये भी देश नमो-नमो करे। सेना के जरिये ये काम करने की योजना बन ही चुकी है। सेना सीमाओं पर रहे या मैदान में अब विकास के गीत जाएगी।
हमारी सरकार विकास से ज्यादा ध्यान नामों पर देती है। उसे पता है कि नाम के बिना कुछ बनता ही नहीं है। नाम है तो नामा भी होगा और नाम नहीं है तो कोई राम-राम भी नहीं करने वाला। नमो रेलें दिल्ली के अलावा हरियाणा और राजस्थान में भी चलाई जा सकती हैं। कायदे से प्रधानमंत्री जी अभी राजस्थान का नाम नहीं ले सकते थे, क्योंकि वहां विधानसभा चुनाव हैं और आदर्श आचार संहिता लगी है, लेकिन प्रधानमंत्री जी पर ये तमाम संहिताएं कहां लागू होती हैं? वे सबसे ऊपर हैं और जो सबसे ऊपर होता है उसके ऊपर कुछ भी लागू नहीं होता। गनीमत है कि उन्होंने नमो रेल चलने वाले राज्यों में मध्य प्रदेश और छग तथा तेलंगाना का नाम नहीं लिया। मिजोरम को तो रेल चाहिए ही नहीं। वैसे भी देश में डबल इंजन की रेलें फेल हो गई हैं। रेलें नमो-नमो जपें या कुछ और हमें और आपको इसे मतलब नहीं होना चाहिए। हमें तो ध्यान रखना चाहिए कि हम उस भारत में हैं जिसमें नमो-नमो करना धीरे-धीरे अनिवार्य होता जा रहा है। नमो रेल के लिए देशवासियों को बहुत-बहुत बधाई और नमो जी का हार्दिक आभार।