रथ व पालकी में सवार होकर निकले श्रीजी, शोभायात्रा में आचार्यी व मुनि के साथ गुरुभक्तों का उमड़ सैलाव
भिण्ड, 30 सितम्बर। क्षमावाणी महापर्व की विशाल शोभायात्रा श्रमण मुनि विनय सागर महाराज ससंघ के मंगल सानिध्य में शनिवार को शहर के भीम नगर स्थित दिगंबर जैन मन्दिर से निकाली गई। इस तीन घण्टे की शोभायात्रा के साक्षी सकल दिगंबर जैन समाज, संस्कारमय बर्षयोग समिति सहित गुरुभक्त साक्षी बने और शोभायात्रा में पूरे उत्साह के साथ समाज के लोगों ने हिस्सा लिया। सुबह मुनि का 72 घण्टे बाद पारणा कराया।
मीडिया प्रवक्ता सचिन जैन ने बताया कि श्रमण मुनि विनय सागर महाराज के सानिध्य में सामूहिक क्षमावाणी पर विशाल शोभायात्रा भीम नगर स्थित दिगंबर जैन मन्दिर से शुरू हुई। शोभायात्रा में सबसे आगे घोड़े युवा ओर बग्गियों इन्द्रा-इन्द्राणी सवार होकर चल रहे थे। बैण्डबाजों की प्रस्तुत धार्मिक भजनों और ढोल-ताशों की धुन पर जैन समाज की अलग अलग संस्था की महिलाएं साफा बंधे एवं बालिकाएं जगह-जगह डांडिया नृत्य करते हुए चल रही थीं। महिलाएं हाथों में जैन 10 धर्म के संदेश लिखे हुए तख्तियां लेकर चल रही थीं। सबसे पीछे रथ और पालकी में भगवान जिनेन्द्र की प्रतिमा विराजित थी। आचार्य विनिश्चय सागर महाराज और मुनि विनय सागर के साथ पुरुष जयकारों के साथ चल रहे थे। शोभायात्रा में संतों का जगह-जगह विभिन्न समाज जनों एवं संस्थाओं ने पलक-पावड़े बिछाकर पाद प्रक्षालन कर स्वागत-वंदन किया। यह शोभायात्रा भीम नगर से शुरू होकर सब्जी मण्डी रोड, पुस्तक बाजार, बतास बाजार, गोल मार्केट, सदर बाजार से होती हुई लश्कर रोड स्थित चातुर्मास कार्यक्रम स्थल महावीर कीर्तिस्तंभ सभागर पहुंची।
पर्यूषण पर मुनि ने रखा निर्जल व्रत, 72 घण्टे बाद गुरुभक्तों ने कराया महापारण
श्रमण मुनि विनय सागर महाराज ने शनिवार को 72 घण्टे बाद व्रत खोलने के लिए मन्दिर में भगवान जिनेन्द्र के सामने से विधि मुद्रा लेकर निकले, वैसे ही गुरुभक्तों ने तीन परिक्रमा लगाकर पडग़ाहन किया। मुनि के चरणों का पाद प्रच्छालन, अष्टद्रव्य से पूजन के साथ नवधा भक्ति के साथ महिला, पुरुष, युवाओं एवं अन्य गुरुभक्तों ने सामूहिक रूप से आहराचार्य के साथ महापारणा कराया।
विश्व के प्रत्येक मनुष्य के पास क्षमा रूपी शास्त्र होना अत्यावश्यक है : विनिश्चय सागर
शोभायात्रा पहुंचने पर श्रमण आचार्य विनिश्चय सागर महाराज ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि क्षमा यहीं सभी धर्मों का सार है। इस विश्व के प्रत्येक मनुष्य के पास क्षमा रूपी शास्त्र होना अत्यावश्यक है। जिनके पास क्षमा करने की वृत्ति नहीं होती वह इस विश्व में इष्ट कार्यों की सिद्धि नहीं कर सकता। क्षमा यह आत्मा का धर्म है, इसलिए जो मानव आत्म कल्याण करने की इच्छा रखता हो, उसे हमेशा क्षमाभाव धारण करना आवश्यक होता है। क्षमाशील मनुष्य का इस पृथ्वीलोक व परलोक में कोई शत्रु नहीं होता। क्षमा यह सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन एवं चारित्र रूपी आत्मा का सही भण्डार है। विनय सागर महाराज ने कहा कि क्षमा करना सबसे बड़ा धर्म है। अपने दुश्मन को क्षमा करना जीवन का अहम हिस्सा है।
आचार्य और मुनि ने मंत्रों से कलशाभिषेक व शांतिधारा कराई
कार्यक्रम स्थल पर आचार्य विनिश्चय सागर महाराज और श्रमण मुनि विनय सागर महाराज ने मंत्रों से भगवान जिनेन्द्र का प्रथम अभिषेक इन्द्रों ने किया। भगवान जिनेन्द्र की शांतिधारा भी की गई। वहीं अष्टद्रव्य पूजन की थाली से संस्थाओं की महिलाओं ने भगवान जिनेन्द्र का पूजन किया।
आचार्य और मुनि ने सबसे की क्षमा याचना, लोगों ने एक-दूसरे से मांगी क्षमा
आचार्य विनिश्चय सागर महाराज और मुनि विनय सागर महाराज ने सभी से क्षमा याचना की। जैन समाज के पुरुष व महिलाओं ने भी एक-दूसरे से गले मिलकर, हाथ जोडक़र, पैरों को छूकर क्षमा मांगी।