भतीजी की इज्जत से खिलवाड़ करने वाले चाचा को आजीवन कारावास

पीडि़ता को दिलाया साढ़े चार लाख रुपए का प्रतिकर

भिण्ड, 13 अगस्त। अपर सत्र न्यायाधीश मेहगांव जिला भिण्ड श्री अशोक कुमार गुप्ता के न्यायालय ने शुक्रवार को अपने एक निर्णय में भतीजी की इज्जत से खिलवाड़ करने वाले आरोपी चाचा रामनरेश गौर ग्राम सायना, थाना बरासों, जिला भिण्ड को 376 भादवि, 5एन/6 पॉस्को एक्ट का दोषी पाते हुए उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। इसके साथ ही अर्थदण्ड के रूप में पीडि़ता को प्रतिकर राशि साढ़े चार लाख रुपए दिलाए जाने का आदेश भी दिया है। न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि इतनी अल्प आयु में इस तरह के कृत्य से मानसिक एवं शारीरिक आघात स्वाभाविक है और ये अभियोक्त्री की आत्मा एवं गरिमा के विरुद्ध है। उक्त प्रकरण में अभियोजन की ओर से पैरवी विशेष लोक अभियोजक तहसील मेहगांव आकिल अहमद खान ने की।
सहायक मीडिया सेल प्रभारी/एडीपीओ आकिल अहमद खान के अनुसार अभियोजन कहानी संक्षेप में इस प्रकार है कि 30 नवंबर 2019 को ग्राम सायना में दोपहर दो बजे की घटना है। आरोपी रामनरेश गौर एक 13 वर्षीय नाबालिग बच्ची (पीडि़ता) जो कि अपने घर के बाहर खड़ी थी के पास आया और उसने उससे कहा कि मेरे घर चली जाओ घर के अंदर से गुटका ले आओ, तो पीडि़ता रामनरेश के घर गुटका लेने चली गई, तभी रामनरेश गौर भी पीछे से घर के अंदर आ गया और पीडि़ता को नीचे के कमरे में ले गया और जबरन गलत काम किया, पीडि़ता के चिल्लाने पर उसके चाचा और उसकी मां आ गई तो रामनरेश गौर भाग गया। पीडि़ता ने उक्त घटना की शिकायत थाना बरासों में की जिस पर बरासों पुलिस ने अपराध क्र.66/19 कायम कर विवेचना की तथा धारा 376 भादवि एवं 5एन/6 लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम का अपराध सिद्ध पाये जाने पर आरोप पत्र विशेष न्यायाधीश पॉस्को के समक्ष प्रस्तुत किया। न्यायाधीश द्वारा धारा 376 भादवि एवं 5एन/6 लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम का अपराध सिद्ध पाए जाने पर अभियोजन के तर्कों से सहमत होते हुए आरोपी रामनरेश गौर को लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम की धारा 5एन/6 में आजीवन कारावास एवं 10 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई गई।

पीडि़त प्रतिकर

पीडि़त महिला और लैंगिक हमले से पीडि़तों के लिए पीडि़त प्रतिकर योजना 2018 के तहत चार लाख 50 हजार रुपए की राशि भुगतान किए जाने का आदेश किया तथा इस संबंध में अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण भिण्ड को पीडि़त प्रतिकर का भुगतान किए जाने का उल्लेख किया। न्यायालय ने प्रतिकर निर्धारित करते समय यह टिप्पणी की कि इतनी अल्प आयु में इस तरह के कृत्य से मानसिक एवं शारीरिक आघात स्वाभाविक है और ये अभियोक्त्री की आत्मा एवं गरिमा के विरुद्ध है इसलिए अभियोक्त्री की शारीरिक क्षति मानसिक आघात एवं परिवार की पृष्ठ भूमि को देखते हुए पीडि़त को प्रतिकर दिलाये जाने का निर्देश दिया।
यह भी उल्लेखनीय है कि अभियुक्त ने मामलें के विचारण के दौरान नेत्रहीन होने के संबंध में जिला चिकित्सालय भिण्ड का दिव्यांग प्रमाणपत्र पेश किया था परंतु अभियोजन ने तर्क किया कि उक्त प्रमाण पत्र के संबंध में किसी भी विशेषज्ञ साक्षी के कथन नहीं कराए गए हैं, इसलिए सिर्फ प्रमाणपत्र पेश करने से ही प्रमाणपत्र को साबित नहीं माना जा सकता, जिससे सहमत होते हुए न्यायालय ने यह निर्धारित किया कि मात्र प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने से ही यह नहीं माना जा सकता कि घटना दिनांक को आरोपी पूर्णरूप से नेत्रहीन होकर घटना कारित करने में असक्षम था। इसलिए आरोपी के नेत्रहीन होने के बचाव को मान्य नहीं किया गया। यह भी उल्लेखनीय है कि अभियुक्त रिश्ते में अभियोक्त्री का चाचा लगता था इसलिए उसने चाचा भतीजी के रिश्ते की गरिमा को भंग करते हुए अभियोक्त्री पर लैंगिक हमला किया इसलिए उक्त मामलें को जघन्य एवं सनसनीखेज मामलों के रूप में चिन्हित किया था।