– राकेश अचल
चौंकिए मत, ईरान पर अमरीकी हमले के बाद ईरान ने वही किया जिसकी आशंका थी। ईरान ने होर्मुज स्ट्रेट को बंद कर दिया, ये रास्ता एक तरह का जल मध्य डमरू है। ये डमरू अपनी रचना की वजह से महत्वपूर्ण है, आप कहेंगे कि आखिर ये क्या बला है, तो पहले इसे जान लीजिए।
जल मध्य डमरू को जल संधि भी कहा जाता है, एक संकीर्ण जल मार्ग है जो दो बडे जल निकायों (जैसे समुद्र, महासागर या खाडी) को जोडता है। इसका भौगोलिक आकार अक्सर शंकरजी के प्रिय डमरू जैसा होता है, डमरू मदारी भी बजाते थे। आज-कल मदारी नाम की संस्था समाप्त हो चुकी है, लेकिन जल के मध्य डमरू आज भी महत्वपूर्ण है। इसमें दो बडे जल क्षेत्रों के बीच एक तंग हिस्सा होता है, इसलिए इसे जल डमरू मध्य कहा जाता है। यह डमरू कोई बनाता नहीं है बल्कि ये प्राकृतिक रूप से बनता है, जैसे टेक्टोनिक प्लेटों की गति या जल के कटाव से नौकाएं और जहाज इस मार्ग से एक जलाशय से दूसरे जलाशय तक जा सकते हैं, जो व्यापार और परिवहन के लिए महत्वपूर्ण है। जल संधियां व्यापारिक और सैन्य नौवहन पर नियंत्रण के लिए कूटनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होती हैं। उदाहरण के लिए, होर्मुज जल संधि तेल व्यापार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसका भू-राजनीतिक महत्व भी कम नहीं है। इन पर नियंत्रण को लेकर इतिहास में कई बार अंतर्राष्ट्रीय विवाद हुए हैं, जैसे जिब्राल्टर जल संधि पर स्पेन, ब्रिटेन और मोरक्को के बीच तनाव।
ईरान के ऊपर अमेरिका हमले के बाद इस युद्ध के विकराल रूप लेनी की संभावनाएं अपने चरम पर है। ईरान ने ऐलान किया है कि वह अमेरिका के इस हमले का जवाब देगा। हालांकि ईरान ने अमेरिका के हमले के बाद इजराइल पर करीब 30 मिसाइलें दागी हैं। अब ईरान की संसद ने एक ऐसा फैसला किया है, जिसके बाद बिना मिसाइल दागे पूरी दुनिया ही जाएगी। अगर ईरान इस होर्मुज स्ट्रेट को बंद कर देगा, तो तेल की कीमते आसमान छू सकती हैं। हालांकि बता दें कि ईरानी संसद में तो ये प्रस्ताव पारित हो चुका है, लेकिन इस मामले में अंतिम फैसला ईरानी सुप्रीम लीडर लेंगे।
आपको बता दें कि दुनिया का 20 फीसदी तेल इसी रास्ते से जाता है। इसमें ज्यादातर एशियाई देशों को जाने वाला तेल हैं। तेल ही नहीं यहां से गैस भी ट्रांस्पोर्ट की जाती है और यह रास्ता ऐशियाई देशों के मध्य पूर्व में निर्यात का रूट भी है। जिसमें भारत, चीन और पाकिस्तान अहम हैं। जाहिर है कि ईरान के इस फैसले के खिलाफ अमेरिका और सख्त कदम उठा सकता है। एशिया के दूसरे देशों की तरह ही भारत अपनी जरूरत का ज्यादातर तेल मध्य पूर्व के देशों से लेता हैं। भारत का करीब 50 फीसदी तेल और गैस होर्मुज की खाडी से आता है। भारत अपनी एलएनजी का 40 फीसदी कतर और 10 फीसदी दूसरे खाडी देशों आयात करता है। वहीं भारत 21 फीसद इराक और बांकी दूसरे खाडी देशों से आयात करता है।
अगर होर्मुज को ईरान ने बंद किया तो भारत में तेल की कीमतें आसमान छू सकती हैं। साथ भारत की ओर से खाडी देशों में एक्सपोर्ट होने वाला सामान भी लंबा रास्ता लेकर निर्यात होगा, जो निर्यात की लागत को बढाएगा। लेकिन भारत इस नऐ युद्ध में अभी तक अपना रुख तय नहीं कर पाया है। भारत की सरकारी पार्टी इसलिए खुश है कि एक इस्लामिक देश बर्बाद हो रहा है। भारत की सरकार और सरकारी पार्टी हमलावर इजराइल के प्रति सहानुभूति रखती है, क्योंकि उसे लगता है कि इजराइलियों की नस्ल और हिन्दुओं की नस्ल एक है, यानि श्रेष्ठ नस्ल। लेकिन सरकार और सरकारी पार्टी भूल जाती है कि कौवों के कोसने से ढोर नहीं मरते। युद्ध न वियतनाम को समाप्त कर सका, न अफगानिस्तान को। न सीरिया को न ईराक को। यूक्रेन भी अभी बांकी है, हां हर युद्ध में मानवता पिसती है, आज भी पिस रही है।
बहरहाल ईरान, अमेरिका, इजराइल युद्ध आपकी जेब पर भी भारी पडने वाला है। भले ही हम रूस से तेल लेने लगे हैं। लेकिन अर्थव्यवस्था का तेल निकालने के बहुत से तरीके बांकी है। भारत का मौन या रटी-रटाई गागरौनी भारत की छवि धुमिल कर रहे हैं।