– राकेश अचल
महाराष्ट्र और झारखण्ड विधानसभा के चुनावों के साथ ही तमाम उपचुनावों के नतीजे आपके सामने हैं। हारी और जीती हुई पार्टियां तथा गठबंधन इन चुनाव परिणामों की अपने ढंग से व्याख्या कर रहे हैं, लेकिन लब्बो-लुआब ये है कि इन तमाम चुनावों में ‘नारे’ जीत गए और ‘मुद्दे’ हार गए। ये बात महाराष्ट्र पर भी लागू होती है, झारखण्ड पर भी और उत्तर प्रदेश पर भी। नारा धारदार निकला उसका बेडा पार हो गया और जिसका नारा मोथरा साबित हुआ उसकी नाव डूब गई।
बात शुरू करते हैं महाराष्ट्र से। महाराष्ट्र सचमुच राष्ट्र से बडा सूबा साबित हुआ। सभी को लग रहा था कि महारष्ट्र में महायुति की सरकार नहीं बनेगी, लेकिन चुनाव परिणामों ने सभी को चौंका दिया। बाबा आदित्यनाथ के ‘बटोगे तो कटोगे’ के नारे का विरोध करने वाले भाजपा और एएनसीपी के नेता तक हतप्रभ हैं कि ये कमाल का नारा कैसे साबित हुआ। मोदी का नारा ‘ एक रहोगे तो सेफ रहोगे’ उतना नहीं चला जितना कि योगी का नारा चला। भाजपा और संघ के नारे खूब चले। इन नारों ने एक बार फिर मुद्दों को पीछे छोड दिया और महाराष्ट्र में महायुति की अखण्ड, प्रचण्ड और मुचण्ड विजय ने ये साबित कर दिया है कि हमारी जनता मुद्दों पर फैसला करना भूल गई है।
नारों का जो असर महाराष्ट्र में हुआ, वो ही असर झारखण्ड में भी हुआ, लेकिन वहां भाजपा के नहीं झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के नारे चले। झामुमो के नारों में आदिवासियत कूट-कूटकर भरी थी। संघ और भाजपा के नारे इस आदिवासियत का कवच भेद नहीं पाए, इसीलिए परिणाम भाजपा के पक्ष में नहीं आए। झारखण्ड में झामुमो की विजय से एक बार फिर भाजपा का ही नहीं बल्कि भाजपा की विपुल सम्पदा को लूटने के लिए आतुर बैठे ए-1 और ए-2 का सपना भी बिखरा है। आदिवासियों के भगवान बिरसा मुंडा सराय काले खान पर उनका नाम चस्पा किए जाने से झांसे में नहीं आए।
इन दो विधानसभा चुनावों के परिणामों से एक बात और प्रमाणित हुई है कि यदि सत्तारूढ दल के हाथ में मशीनें या मशीनरी हों तो चुनाव परिणामों को बदला जा सकता है। भाजपा के हाथ में महाराष्ट्र में मशीन और मशीनरी दोनों थे इसलिए अप्रत्याशित परिणाम मिले। झारखण्ड में झामुमो के पास मशीनें नहीं थीं किन्तु मशीनरी थी जो उनके काम आई और झारखण्ड की सत्ता खण्ड-खण्ड होने से बच गई। यहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी का नारा चला। आदिवासी एक रहे तो सेफ रहे। महाराष्ट्र में हिन्दू ‘बटे नहीं, सो कटे’ नहीं। कहीं योगी जी का नारा चला तो कहीं अमित शाह की जुगत। शाह ने महाराष्ट्र में यदि भाजपा को ज्यादा सीटों पर न लडाया होता तो शायद ये परिणाम नहीं आते।
अब बात उपचुनावों की कर लेते हैं। उपचुनावों में सबसे ज्यादा दिलचस्प उपचुनाव उत्तर प्रदेश विधानसभा के थे। यूपी में 9 सीटों में से 7 सीटें भाजपा ने जीतकर लोकसभा चुनाव में हुए घाटे की भरपाई करने की कोशिश की है, यहां आईएनडीए गठबंधन ही नहीं बल्कि समाजवादी पार्टी और उसका पीडीए का फार्मूला भी बुरी तरह से हारा। मध्य प्रदेश में 2 सीटों में से भाजपा को एक सीट गंवाना पडी, क्योंकि इन उपचुनावों में भाजपा की गुटबाजी खुलकर सामने आई। केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया उपचुनावों से नदारद रहे। केरल में कांग्रेस को वायनाड लोकसभा सीट जीतना थी सो उसने जीतकर दिखा दी।
राजस्थान में मुख्यमंत्री भंवरलाल शर्मा ने विधानसभा की 7 में से 5 सीटें जीतकर सप्लीमेंट्री परीक्षा उत्तीर्ण कर ली। बिहार में 4 की 4 सीटें एनडीए गठबधन ने जीतकर साबित कर दिया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की किस्मत अभी उनका साथ दे रही है। पंजाब में भी आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने भाजपा को पांव रखने की जगह नहीं दी और सभी चारों सीटें जीत लीं। यानि आप की पकड पंजाब में ढीली नहीं कर पाई भाजपा या आरएसएस। बंगाल में तृणमूल कांग्रेस को भी 6 सीटें मिल ही गईं। नादेड भी कांग्रेस को अंतोगत्वा मिल ही गई।
अगहन के महीने में हुए इन तमाम चुनावों के नतीजे बताते हैं कि भाजपा न अभी कांग्रेस को निर्मूल कर पाई है और न ही इन नतीजों से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व पर लगे प्रश्न चिन्ह ही हटे हैं। मोदी को एक दिन बाद संसद में विपक्ष के हमलों का सामना करना पडेगा। हालांकि इन चुनाव परिणामों से सत्तारूढ दल की यानि मोदी जी की ढाल मजबूत हुई है। वे विपक्ष के वार तो झेल जाएंगे लेकिन देश को आशवस्त नहीं कर पाएंगे कि वे ए-2 के पीछे नहीं खडे हैं। जमाना बदल गया है अन्यथा यदि आज सर्वपल्ली राधाकृष्णन राष्ट्रपति होते तो वे मोदी जी को दही-शक्कर न खिला रहे होते, वे मोदी जी को पद छोडने की सलाह देते। क्योंकि देश की राजनीति को मुद्दों से भटकाने के सबसे बडे अपराधी मोदी जी ही हैं। वे ही जनता की प्रतिकार शक्ति को खा गए। उन्होंने ही मुद्दों के ऊपर नारे लाद दिए या लदवा दिए। नारों के मकडजाल से देश जब बाहर निकलेगा तब निकलेगा। तब तक मैं सभी दलों के जीते हुए प्रत्याशियों को, उनके नेताओं को हार्दिक बधाई देता हूं। मेरी संवेदनाएं हारे हुए तमाम प्रत्याशियों और उनके नेताओं के प्रति भी हैं।