मप्र के जंगलों में मरते हाथी, बढते बाघ

– राकेश अचल


मप्र के जंगलों में हाथियों की संख्या कम हो रही है लेकिन बाघों की संख्या घट रही है। प्रदेश में पिछले एक हफ्ते में ही अलग-अलग ठिकानों पर 10 हाथियों की रहस्यमयी तरीके से मौत हो गई। मप्र के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इस सिलसिले में जंगलात के दो अफसरों का निलंबन भी किया है। मामले की उच्च स्तरीय जांच के आदेश भी दिए, लेकिन हाथियों की जान पर खतरे बरकरार है। खास बात ये है कि मप्र में बाघों की आबादी में इजाफा हो रहा है।
मप्र में देश का सबसे बडा वन क्षेत्र है। संभवत देश के वन क्षेत्र का 21 फीसदी भाग मप्र में आता है। स्टेट ऑफ फारेस्ट रिपोर्ट 2001 के मुताबिक मप्र में वन विभाग के नियंत्रण में 95 हजार 221 वर्ग किमी का क्षेत्रफल आता है जबकि इसमें वास्तव में 77 हजार 265 वर्ग किमी की जमीन पर ही जंगल दर्ज किया गया है। इसका मतलब यह है कि 18 हजार वर्ग किमी के क्षेत्र में जंगल नहीं है फिर भी वन विभाग का उस पर नियंत्रण है। इसमें से भी सघन वन का क्षेत्रफल 44 हजार 384 वर्ग किमी ही है। वर्तमान स्थिति में मप्र में क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे ज्यादा 76 हजार 429 वर्ग किमी जंगल है। इसके बाद आंध्रप्रदेश में 68 हजार 19 वर्ग किमी और छत्तीसगढ में 55 हजार 998 वर्ग किमी जंगल है।
मप्र में हाथियों की संख्या का मुझे कोई सही ज्ञान नहीं हैं, लेकिन मप्र में हाथी हैं। मप्र में चूंकि सबसे ज्यादा वन क्षेत्र है इसलिए यहां अभ्यारण्यों की संख्या भी 24 है, किन्तु इनमें हाथियों का अलग से कोई अभ्यारण्य नहीं है। इन अभ्यारण्यों में अब वन्यप्राणी भयभीत हैं, क्योंकि जनगलों के सबसे विशालकाय हाथी ही इनमें सुरक्षित नहीं हैं। यहां खरमोर से लेकर घडियालों तक के लिए अभ्यारण्य हैं किन्तु हाथियों के लिए नहीं, इसीलिए शायद मप्र में हठी सुरक्षित नहीं है। बांधवगढ के जंगलों में 10 हाथियों की मौत का कारण दूषित कोदो (एक तरह की खरपतवार) को माना गया है, लेकिन कोई इसके ऊपर भरोसा करने को तैयार नहीं है।
मप्र वैसे भी टाइगर स्टेट है, इसीलिए यहां शायद हाथियों पर ज्यादा गौर नहीं किया जाता। देश के हृदय प्रदेश मप्र में पहली बार बाघों की संख्या 785 पहुंच गई है। राष्ट्रीय स्तर पर पिछली बार की गणना में मप्र में बाघों की आबादी महज 526 थी, लेकिन अखिल भारतीय बाघ गणना जनगणना 2022 के अनुसार इस बार मप्र में बाघों की संख्या में देश में सर्वाधिक वृद्धि हुई है। सबसे ज्यादा बाघों के साथ मप्र देश में इस बार बहुत आगे निकल गया है। उपेक्षित हठी यदि अचानक न मरते तो शायद इस मुद्दे को लेकर कोई हलचल भी नहीं होती, क्योंकि मप्र में अफ्रीकी चीते मरने के लिए अभिशप्त हैं। हाथियों से पहले मप्र के कूनो अभ्यारण्य में प्रधानमंत्री द्वारा छोडे गए अफ्रीका के 10 चीते मर चुके हैं। मप्र में मृत 10 हाथियों में से एक नर और नौ मादा थी। इसके अलावा मृत दस हाथियों में से 6 किशोर/ उपवयस्क और चार वयस्क थे।
कहा जाता है कि 13 हाथियों के झुण्ड ने जंगल के आस-पास कोदो बाजरा का फसल खाया था। 10 हाथियों का पोस्ट मार्टम पशु चिकित्सकों की टीम ने किया है। पोस्ट मार्टम के बाद विसरा को जांच के लिए बरेली और सागर की फोरेंसिक लैब में भेजी गई है। हाथी कोदो और बाजरा खाने पहली बार नहीं निकले थे। अब सवाल ये भी है कि क्या उन्हें शिकारियों ने मारा है या ग्रामीणों ने। हाथी अपने आप तो कम से कम नहीं मरे। हाथियों को उनके दांतों के लिए मारा जाता है, हालांकि हाथी दांत की बिक्री भारत समेत दुनिया के सभी देशों में प्रतिबंधित है। साल 1986 में भारत ने वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 को संशोधित कर हाथी दांत की घरेलु बिक्री पर भी बैन लगा दिया था।
भारत में ही नहीं बल्कि समूचे एशिया में हाथी खतरे में है। इनकी आबादी में आश्चर्यजनक रूप से गिरावट हुई है। हाथियों की आबादी 50 प्रतिशत तक कम हुई है। मप्र में हाथियों की एक साथ इतनी बडी संख्या में हुई मौतों से ये सवाल एक बार फिर उठ खडा हुआ है कि क्या मप्र सरकार और भारत सरकार को हाथियों की सुरक्षा के लिए अपनी राष्ट्रिय वन्य नीति पर पुनर्विचार नहीं करना चाहिए? हमारे यहां कहने को हाथी पूजनीय हैं, गणेशावतार है, लेकिन हकीकत ये है कि भारत में हाथियों और वनवासियों के बीच का टकराव लगातार बढ रहा है। हाथियों के इलाकों में अतिक्रमण हो रहा है ऐसे में जब हाथी आबादी में घुसकर तबाही मचाते हैं तो बदले में उन्हें अपनी जान गंवाना पडती है। मप्र ही नहीं अधिकांश राज्यों में कमोवेश यही स्थिति है।
हाथी मनुष्य का मित्र है। भले ही जंगल में रहता है किन्तु आंशिक प्रशिक्षण के बाद वो पालतू बन जाता है। शाकाहारी प्राणी है हाथी। पहले सर्कसों में अपने करतब दिखाता था। आज भी जंगलों में मालवाहक है हाथी। हाथी किराये पर मिलते हैं। हाथी एक जमाने में राजा-महाराजाओं की सेना का एक प्रमुख अंग भी होते थे, लेकिन आज हाथी खतरे में हैं। उनका कोई साथी नहीं है। अब हाथी मेरे साथी वाला कोई आदमी आपकी नजर में हो तो हो। राजेश खन्ना तो हाथी मेरा साथी बनाकर हिट हो गए थे। दुनिया के 20 हजार हाथियों की जिंदगी बचने के लिए अभियान मप्र से ही शुरू किया जाए तो बेहतर है।
हाथी की असली कीमत तो मुझे नहीं पता, लेकिन हमारे यहां कहावत है कि मरा हुआ हाथी भी सवा लाख का होता है। हाथी पालना आसान नहीं होता, क्योंकि इसकी खुराक बहुत है। कुंभकर्ण है हाथी। हाथी पालना सदैव घाटे का सौदा होता होगा, शायद इसीलिए कहावत बनी है सफेद हाथी पालने की। कुल जमा मप्र में हाथियों की मौत का जो कलंक मप्र के ऊपर लगा है उसे धोने के लिए मप्र में भी एक हाथी अभ्यारण्य बनाया जाना चाहिए, लेकिन इसकी पहल मप्र सरकार करेगी, इसमें मुझे संदेह है।
मप्र में हाथियों की मौत का सच कभी सामने आ पाएगा ये भी कहना कठिन है। हाथियों की कोई राजनितिक पार्टी नहीं होती, इसलिए उनकी मौत को लेकर न कहीं कोई धरना देता है और न प्रदर्शन करता है, किन्तु वन्यजीव कार्यकर्ता अजय दुबे ने मामले में सीबीआई जांच की मांग की है और आरोप लगाया है कि अधिकारियों ने समय पर कदम नहीं उठाए, जिससे हाथियों की मौत को रोका नहीं जा सका। बांधवगढ टाइगर रिजर्व में 10 हाथियों की मौत के मामले में मुख्यमंत्री मोहन यादव ने सख्त कार्रवाई की है। इस मामले में टाइगर रिजर्व के डायरेक्टर गौरव चौधरी और एसडीओ फतेसिंह निनामा को निलंबित कर दिया गया है। मुख्यमंत्री ने वन विभाग को प्रदेश में हाथी टास्क फोर्स बनाने के निर्देश भी दिए हैं।