– राकेश अचल
दुनिया में जो देश नारी की पूजा का दावा करता है उसी देश में नारी की सुरक्षा आज राजनीति का सबसे बडा मुद्दा है। ये मुद्दा लाल किले की प्राचीर से भी गूंजता है। उत्तर से दक्षिण तक, पूरब से पश्चिम तक ये एक समान मुद्दा है। ये मुद्दा राजनीति का भी है, कानून और व्यवस्था का भी है, समाज का भी है और अदालत का भी। फिर भी स्थिति ये है कि आज हम दुनिया के उन दुर्भाग्यशाली देशों में शुमार किए जा रहे हैं, जहां नारी सबसे ज्यादा असुरक्षित, सबसे ज्यादा अपमानित, शोषित और पीडित है। कोई माने या न माने लेकिन ये सच है कि नारी यानि स्त्री यानि अबला सबके लिए आज भी वस्तु है, फिर चाहे वो सिनेमा हो, बाजार हो या सियासत हो।
हम और हमारा समाज मनुवादी है, बिल्कुल नहीं बदला, मनुस्मृति कहती है- यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:। मनुस्मृति 3/56। लेकिन मुझे लगता है कि मनुस्मृति झूठ कहती है। मनुस्मृति के आधार पर चलने वाले लोग झूठे है। वे नारी की पूजा केवल स्मृतियों में करते हैं, वास्तविकता में नहीं। मनुस्मृति से ज्यादा सच तो हमारे दद्दा मैथलीशरण गुप्त बोलते रहे, वे लिख गए कि ‘अबला जीवन है तुम्हारी यही कहानी। आंचल में है दूध और आँखों में पानी।।
हम सदियों से स्त्रियों के बारे में अपनी सोच नहीं बदल पाए। आजादी के बाद भी हमारी सोच स्त्रियों को लेकर पाशविक ही बनी हुई है, अब इसके लिए न नेहरू जिम्मेदार हैं, न इन्दिरा गांधी और आज के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी। इसके लिए हमारी सोच जिम्मेदार है। इसे बदलने के लिए कोई कुछ नहीं करना चाहता। सब स्त्री सुरक्षा के नाम पर राजनीति करना चाहते हैं। स्त्री बंगाल में लुटे-पिटे या मार दी जाए तो मुद्दा स्त्री सुरक्षा का बना दिया जाएगा, लेकिन देश के दूसरे हिस्सों में स्त्री को जिंदा जला दिया जाए, सामूहिक बलात्कार किया जाए, उसे सामान की तरह बेच दिया जाए, उससे जिस्म फरोशी कराई जाए तो राजनीति के लिए कोई समस्या नहीं है। अदालत के लिए कोई समस्या नहीं है। स्त्री सुरक्षा के मुद्दे पर हमारा या किसी का सर शर्म से नहीं झुकता, झुक भी नहीं सकता, क्योंकि हम सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। हमारे लिए स्त्री केवल वस्तु है।
राजनीति में स्त्री की अस्मिता का मुद्दा आपको सत्ता तक ले जाता है, यानि राजनीति में स्त्री सत्ता के लिए एक सीढी से ज्यादा कुछ नहीं है। हम जैसे बाजार में स्त्री को एक सामान की तरह बिकने के लिए बैठने पर मजबूर करते हैं, वैसे ही राजनीति में भी स्त्री का इस्तेमाल किया जा रहा है। वे स्त्रियां अपवाद हैं जो पुरुष प्रधान और मनुवादी समाज में भी राजनीति में शीर्ष पर पहुंची और उन्होंने पुरुषों को उनकी औकात दिखाई, बांकी तो केवल दही-शक्कर खिलाने के काम आने वाली स्त्रियां होती हैं। राजनीति में इन्दिरा गांधी और समाज में मदर टेरेसा कम ही जन्म लेती हैं। हमारे समाज में स्त्री आज भी एक गाली है और सबसे पहले इस्तेमाल की जाती है।
हाल ही में मैं श्रद्धा कपूर और राजकुमार राव की हॉरर-कॉमेडी फिल्म ‘स्त्री-2’ के बारे में पढ रहा था। ये फिल्म अपनी रिलीज के पहले दिन से ही रिकार्ड तोड कलेक्शन कर रही है। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कब्जा किए हुए हैं और हर रोज करोडों की कमाई कर रही है। ‘स्त्री-2’ महज हफ्ते भर के कलेक्शन के साथ अब घरेलू बॉक्स ऑफिस पर 300 करोड क्लब में एंट्री लेने के करीब आ गई है। कहते हैं कि ‘स्त्री-2’ ने प्रीव्यू और रिलीज के साथ पहले दिन 76.5 करोड रुपए कमाए थे। दूसरे दिन फिल्म ने 41.5 करोड, तीसरे दिन 54 करोड, चौथे दिन के 58.2 करोड और पांचवें दिन 38.4 करोड रुपए का कलेक्शन किया था। छटवे दिन भी फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर 25.8 करोड रुपए बटोरे। वहीं अब सातवें दिन के शुरुआती आंकडे सामने आ गए हैं जिसके मुताबिक फिल्म ने अब तक 20 करोड रुपए का कारोबार कर लिया है।
भारत में ‘स्त्री-2’ ने हफ्ते भर में अब तक कुल 287.4 करोड रुपए कमा लिए है। इसी के साथ ‘स्त्री-2’ साल की सबसे बडी फिल्म ‘फाइटर’ के लाइफ टाइम कलेक्शन से आग निकल गई है। बता दें कि ‘फाइटर’ ने घरेलू बॉक्स ऑफिस पर कुल 254.83 करोड रुपए का ग्रॉस कलेक्शन किया था। ‘स्त्री-2’ ने वल्र्ड वाइड बॉक्स ऑफिस कलेक्शन के मामले में भी ‘फाइटर’ को शिकस्त दे दी है। आपको याद होगा कि 15 अगस्त को रिलीज हुई ‘स्त्री-2’ बॉक्स ऑफिस पर कई हिन्दी और साउथ फिल्मों से टकराई थी।
मैंने ‘स्त्री-2’ का उदाहरण जानबूझकर आपके सामने रखा है। मेरे कहने का आशय ये है कि स्त्री धरती की तरह उर्वरा भी है सहनशील भी, लेकिन उसके इन गुणों का दुरुपयोग किया जा रहा है। पुरुष प्रधान समाज की राजनीति और सत्ता मिल-जुलकर स्त्री समाज को मूर्ख बना रही है। यदि आप भूले न हों तो हमारे देश की सरकार ने पिछले साल संसद में एक नारी शक्ति वंदन विधेयक पारित कराया था। क्या हुआ उस कानून का? कितनी वंदना कर दिखाई सरकार ने नारियों की। ले-देकर सत्ता में एक सूबे की मुख्यमंत्री के पीछे पूरी सत्ता हाथ धोकर पडी है, जैसे उसी ने कोलकाता में एक महिला चिकित्सक के साथ ज्यादती की व्यवस्था की हो? हमारी न्याय व्यवस्था को भी वही सब दिखाई दे रहा है जो सत्ता को दिखाई देता है। हमारी अदालतें भी तो आखिर पुरुषवादी और मनुवादी है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जहां न्यायधीशों ने बाकायदा मनु स्मृति के प्रावधानों का उल्लेख अपने फैसलों में किया है।
मैंने दुनिया के दर्जनों देशों का भ्रमण किया है। उन देशों का भी जहां की पूरी अर्थ व्यवस्था नारियों की जिस्म फरोशी पर टिकी है, लेकिन वहां भी नारियों के साथ वैसी ज्यादती नहीं होती, जैसी भारत में होती है। भारत में नारी स्वातंत्र्य केवल एक नारा है, जुमला है। हकीकत में भारतीय नारी सबसे ज्यादा असुरक्षित, शोषित, पीडिता है। मौजूदा स्थित में बदलाव कोई कानून नहीं कर सकता, कोई सरकार नहीं कर सकती। इसके लिए हमें देश की उस आधी आबादी का दिमाग बदलना होगा, जो स्त्री के प्रति दुर्भाव रखती है। मानसिकता का बदलाव करने के लिए हमें हमारी शिक्षा प्रणाली को बदलना होगा। महिलाओं को देखने का नजरिया बदलना होगा। जब तक ये सब नहीं होगा, तब तक मणिपुर में स्त्रियां अलग जलेंगी और बंगाल में अलग। कश्मीर में अलग और उत्तर प्रदेश में अलग। इस दुरावस्था को बदलने के लिए स्त्रियों को पुरुष समाज से खुद ही लोहा लेना होगा। उनकी वंदना कानून से तो होने से रही। कानून तो हमारे यहां बहुत से हैं लेकिन स्त्रियों की सुरक्षा इनसे नहीं हो पा रही, बिल्कुल नहीं हो पा रही। हमारे यहां स्त्रियों से सालों बलात्कार के 25 हजार मामले दर्ज होते हैं और सजा होती है केलव 27-28 फीसदी लोगों को। दुर्भाग्य तो ये है कि सजायाफ्ता अपराधी भी फरलो जैसे घृणित कानूनों का इस्तेमाल कर मौज कर रहे होते हैं।