– राकेश अचल
देश की 18वीं लोकसभा के लिए चुनावों से पहले एक बार फिर चतुरंगनी सेनाएं सजने लगी हैं। किसी के हाथ में धर्म-ध्वजा है तो किसी के हाथ में न्याय का शंख। रण है लेकिन भेरियां नहीं बज रहीं। सब कुछ खामोशी के साथ हो रहा है। खामोशी के साथ अयोध्या में राम मन्दिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के आमंत्रण के लिए पीले चावल बांटे जा रहे हैं। खामोशी के साथ ही कांग्रेस ने अपनी नई न्याय यात्रा का ऐलान कर दिया है। कहीं टूट-फूट है, तो कहीं आंतरिक असमंजस। मिसाल के तौर पर राजस्थान को ही लीजिए, वहां 25 दिन बाद भी भाजपा भजन मंत्रिमण्डल का गठन नहीं कर पाई।
पांच में से तीन राज्य विधानसभाओं में ढेर हो चुकी कांग्रेस के नेता इस बार भारत जोडो यात्रा नहीं निकाल रहे। उनकी नई यात्रा का नाम ‘न्याय-यात्रा’ है। कांग्रेस जनता के साथ केन्द्र और राज्यों में सत्तारूढ भाजपा द्वारा जनता और जन प्रतिनिधियों के साथ किए जा रहे कथित अन्याय के खिलाफ जन-जागरण के लिए यात्रा पर निकल रही है। कांग्रेस के राहुल गांधी को पद यात्राओं का खासा अनुभव है। इस समय देश में किसी भी राजनीतिक दल के पास राहुल गांधी जैसा कामयाब यात्री नहीं है। सत्तारूढ दल अब यात्राएं नहीं करता। सत्तारूढ दल अब रोड शो करता है। राजनीति में यात्राओं और रोड शो के जरिए जनता को आंदोलित किया जाता है।
राहुल गांधी की यह यात्रा 14 राज्य और 85 जिलों से गुजरेगी। इस दौरान राहुल गांधी बस से और पैदल 6,200 किलोमीटर से ज्यादा की यात्रा करेंगे। यह मणिपुर से शुरू होकर नागालैंड, असम, मेघालय, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखण्ड, ओडिशा, छत्तीसगढ, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात से होते हुए महाराष्ट्र में समाप्त होगी। राहुल गांधी की पूर्व की भारत जोडो यात्रा के मुकाबले ये यात्रा बडी और कठिन भी है। पहली यात्रा के प्रतिसाद के रूप में कांग्रेस को कर्नाटक और तेलंगाना में सत्तारूढ होने का मौका मिला। अब मौका लोकसभा चुनाव में सत्तारूढ भाजपा को पदच्युत करने के साथ ही उसके 400 पार के लक्ष्य को ढेर करने का भी है।
यात्राओं के जरिए जन-जागरण और सत्ता परिवर्तन असंभव नहीं है। देश को आजादी तक इसी तरह की यात्राओं के जरिए मिली है। कांग्रेस का देश की आजादी के 75 साल बाद भी गांधीवादी यात्राओं में यकीन है, ये रेखांकित करने वाली बात है। जिस तरह से आरएसएस, जनसंघ, बाद में भाजपा ने धर्मध्वजाओं को नहीं छोडा, उसी तरह कांग्रेस ने भी गांधीवाद और धर्म निरपेक्षता की मशाल जलाए रखी। भाजपा को अपने सिद्धांतों पर चलने का लाभ भी मिला और कांग्रेस को गांधी के रास्ते पर चलने का फायदा भी। सदभाव और भेदभाव के बीच का सनातन संघर्ष न अभी तक रुका है और न रुका है। लोकसभा चुनावों के मद्देनजर इसका रूप-रंग जरूर बदला हुआ नजर आएगा। आपको याद दिला दूं कि राहुल गांधी ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोडो यात्रा पहले दक्षिण से उत्तर हुई थी। लेकिन न्याय यात्रा पूर्व से पश्चिम की और जाएगी। ये यात्रा उस मणिपुर से शुरू होगी जिसकी बर्बादी के बावजूद प्रधानमंत्री न मणिपुर गए और न लम्बे आरसे तक उन्होंने मणिपुर पर कोई बयान दिया था। मणिपुर से दिल दहलाने वाली खबरें और वीडियो सामने आते रहे हैं। शायद राहुल गांधी इसके जरिए मोदी सरकार के साथ उनके डबल इंजन की सरकार के दावे पर जोरदार सियासी हमला कर सकें।
कांग्रेस की ये न्याय यात्रा मकर संक्रांति से शुरू हो रही है। संक्रांति से सूर्य उत्तरायण हो जाता है। कांग्रेस भी राजनीति के सूर्य की चाल बदलने के लिए उतावली है, लेकिन उसे कामयाबी हासिल नहीं हो पा रही है। कांग्रेस की अगुवाई में यूपीए के बाद अब इंडिया यानि आईएनडीआईए गठबंधन बना है। इसमें 28 दल शामिल हैं और ये वे दल हैं जो कभी कभी सत्तारूढ भाजपा द्वारा सताए गए हैं। भाजपा ने इंडिया गठबंधन के दलों के साथ कभी न कभी विश्वासघात किया है। कभी किसी दल के साथ मिलकर सरकार बनाई और बाद में तोड दी और यदि भाजपा को सरकार बनाने में कामयाबी नहीं मिली तो उसने उस दल को ही तोड दिया। महाराष्ट्र में एनसीपी और शिवसेना इसकी शिकार बन चुकी है। बिहार में तो ऐसा बार-बार हुआ है। बंगाल, ओडिशा और त्रिपुरा भी भाजपा के रडार पर हमेशा से रहे हैं। अब ये सब दल मिलकर भाजपा से बदला लेना चाहते हैं। गनीमत है कि इस यात्रा का नाम न्याय-यात्रा रखा गया है, बदला यात्रा नहीं। वैसे आपको याद दिला दूं कि अतीत में सत्तारूढ भाजपा समेत तमाम दल न्याय यात्राएं निकाल चुके हैं।
केन्द्र में सत्तारूढ भाजपा सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के अंत में तो अन्याय की अति कर दी। संसद के दोनों सदनों से एक-दो नहीं बल्कि पूरे 150 सांसदों को निलंबित कर दिया। संसद को बिना विपक्ष के चलाया, ध्वनिमत से विधेयक पारित कराए, और तो और राज्यसभा के सभापति को विपक्ष के खिलाफ एक औजार की तरह इस्तेमाल किया, देश की पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी जो काम आपातकाल लगाकर भी नहीं कर सकी थीं, वो मोदी सरकार ने बिना आपातकाल लगाए कर दिखाया। लेकिन कांग्रेस और गैर भाजपा विपक्ष अभी तक भाजपा को सत्ताच्युत करने में कामयाब नहीं हो सका है। विपक्ष की कोशिशें कामयाब नहीं हो पाईं, लेकिन वे रुकी भी नहीं। विपक्ष ने अभी तक सत्तारूढ भाजपा के सामने पूरी तरह से हथियार भी नहीं डाले हैं। ऐसे में कांग्रेस की ये न्याय यात्रा एक नई पहल है।
कांग्रेस की न्याय यात्रा को देश का गैर भाजपा विपक्ष भी अंगीकार कर इसमें शामिल होगा या नहीं, इसे लेकर अभी कुहासा है। कांग्रेस की इस न्याय यात्रा में यदि इंडिया गठबंधन के दल शामिल हो जाते हैं तो इसकी धार और तेज हो सकती है। इस यात्रा का लाभ समूचे विपक्ष को मिल सकता है, अन्यथा कांग्रेस को तो कुछ न कुछ लाभ मिलना तय है। इंडिया गठबंधन के सामने सबसे बडी चुनौती गठबंधन के नेता के चेहरे की है। भाजपा इसी मुद्दे पर सबसे ज्यादा हमलावर रहने वाली है। राहुल की इस नई जोखिमपूर्ण यात्रा से भाजपा के सिर पर चढा राहुल गांधी का भूत और अधिक ताण्डव मचा सकता है। क्योंकि कोई माने या न माने, लेकिन देश में राहुल गांधी ही विपक्ष का पर्याय हैं। राहुल की इस न्याय यात्रा को निर्णय होना चाहिए, अन्यथा देश के हालात और गंभीर हो सकते हैं। इस तरह की यात्राओं का स्वागत किया जाना चाहिए, भले ही इन यात्राओं के निहितार्थ ठेठ राजनीतिक ही क्यों न हों।