भिण्ड, 25 दिसम्बर। ज्ञानवर्धन सेवा समिति आलमपुर द्वारा आयोजित रामलीला मंचन के दौरान रावण अंगद संवाद एवं लक्ष्मण शक्ति की लीला का मंचन किया गया। प्रभु श्रीराम ने लंका पर चढाई करने से पहले समुद्र तट पर अपने आराध्य महादेव के शिवलिंग की स्थापना कर पूजा की। इसके बाद बानरी सेना ने समुद्र पर पुल बनाकर लंका पर चढाई कर दी। भगवान श्रीराम का शांति दूत बनकर लंका में पहुंचे अंगद अपना पैर जमा कर लंका वालों को पैर उठाने की चुनौती देते है। लेकिन पैर उठाना तो दूर कोई अंगद का पैर हिला भी नहीं पाता। अंत में लंकापति रावण उठता है तो अंगद यह कहते हुए पैर उठा लेता है कि प्रभु रामचन्द्र जी के चरणों में गिरकर माफी मांग ले। जिससे लंका वालों का कल्याण हो जाएगा। लेकिन लंकापति रावण युद्ध करने के लिए अडिग रहा। इसके बाद मेघनाथ और लक्ष्मण के बीच घनघोर युद्ध होता है। लक्ष्मण युद्ध भूमि में मेघनाथ के शक्ति बाण से मूर्छित हो जाते हैं। मूर्छित अवस्था में पडे लक्ष्मण के शरीर को मेघनाथ उठाकर लंका ले जाने की कोशिश करता है। लेकिन वह लक्ष्मण के शरीर को उठाने में नाकाम रहता है। इधर जब हनुमानजी के माध्यम से लक्ष्मण को शक्ति वाण लगने की सूचना रामादल को मिलती है। तो पूरा रामादल शोक में डूब जाता है। लक्ष्मण के मूर्छित शरीर के पास प्रभु श्रीराम विलाप करते हैं। राम विलाप की लीला देखकर दर्शकों की आंखें नम हो गई। सुषेन वैध की सलाह पर हनुमानजी कालिनेमि का बध कर सूर्य उदय से पहले संजीवनी बूटी लेकर आ जाते हैं। जिसके पीने के बाद मूर्छित लक्ष्मण ठीक हो जाते हैं।