हैप्पी मेरी क्रिसमस मोहन यादव जी

– राकेश अचल


मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव को मैं ‘हैप्पी मेरी क्रिसमस’ कह कर उनका अभिनंदन करना चाहता हूं। मेरी कामना है कि वे ग्वालियर के लिए ‘शांता क्लॉज’ बनकर तेजी से बडे गांव में तब्दील हो रहे ग्वालियर शहर पर विकास के लिए तोहफों की बरसात कर दें। हालांकि खाली खजाने की वजह से ये काम कठिन है, लेकिन मेरा मानना है कि ‘मोदी है तो मुमकिन है’ की तरह ‘मोहन है तो सब मुमकिन है’।
मप्र बनने के बाद ग्वालियर ने सत्ता से सदैव बगावत ही की है। ग्वालियर ‘किंग मेकर’ जरूर बना, लेकिन ग्वालियर से मप्र बनने के बाद से कोई मुख्यमंत्री यानि ‘किंग’ नहीं बना। इस मामले में ग्वालियर दुर्भाग्यशाली है। लेकिन ग्वालियर अपने आप पर गर्व करने के बहाने खोज ही लेता है, क्योंकि उसके पास राजनीति में अटल बिहारी बाजपेयी हैं जो देश के प्रधानमंत्री बने। संगीत के क्षेत्र में कृष्ण राव पंडित और उस्ताद अमजद अली जैसे लोग भी रहे है। साहित्य के क्षेत्र में मुकुट बिहारी सरोज जैसे लोग भी हुए हैं। लेकिन जब तक राजसत्ता में सीधी हिस्सेदारी न हो तो किसी भी शहर का विकास नहीं होता।
मुख्यमंत्री मोहन यादव को ग्वालियर की जिन दो बडी और पुरानी मांगों को मुख्यमंत्री से पूरा कराना है, उनमें पहली ग्वालियर दुर्ग पर चढने के लिए ‘रोप-वे’ का निर्माण और पीने के पानी के लिए चंबल जल योजना पर काम शुरू कराना है। ‘रोप-वे’ प्रदेश की छोटी-छोटी टोरियों और मन्दिरों पर तक हैं, लेकिन ग्वालियर में प्रदेश का सबसे बडा दुर्ग और दुर्ग पर एक सबसे बडा गुरुद्वारा होने के बावजूद यहां एक रोप-वे नहीं है, क्योंकि सत्तारूढ दल के ही एक केन्द्रीय मंत्री ऐसा नहीं चाहते, जबकि जनता चाहती है। स्थानीय नगर निगम वर्षों पहले एक बार नहीं दो बार इस रूप वे के लिए शिलान्यास कर टेंडर तक लगा चुका है।
ग्वालियर के लिए पेयजल का इकलौता स्त्रोत तिघरा जलाशय है, जो कभी केवल 50 हजार की आबादी के लिए बनाया गया था, लेकिन आज 100 साल से ज्यादा समय बाद जबकि ग्वालियर शहर की आबादी आठ-दस लाख से ज्यादा हो चुकी है, कोई नया जल स्त्रोत ग्वालियर को नहीं मिला। 1977 से ग्वालियर चंबल से जल लाने की मांग कर रहा है। हम लोगों ने इसके लिए पदयात्रा, आंदोलन तक किया। कालांतर में राज्य सरकार ने इसके लिए योजना भी स्वीकृत कर दी, किन्तु इसके ऊपर अब तक अमल नहीं हो पाया। मुख्यमंत्री ये दोनों काम शुरू कराकर ग्वालियर का भाग्य बदल सकते हैं।
ग्वालियर को कभी मुख्यमंत्री पद नहीं मिला, किन्तु 1984 में एक विकास पुरुष मिले थे माधव राव सिंधिया। उन्होंने ग्वालियर को विकास की मुख्यधारा में लाने का काम भी किया था। रेल के क्षेत्र में ग्वालियर की पहचान बनी थी। मालनपुर और बानमोर औद्योगिक क्षेत्र विकसित हुए थे। अब ये दोनों इलाके अपवादों को छोडकर कारखानों का श्मशान बन चुके हैं। मुख्यमंत्री जी इनके ऊपर भी अमृत वर्षा कर इन्हें पुनर्जीवित करने का यश हासिल कर सकते हैं। यदि ये दोनों औद्योगिक क्षेत्र एक बार फिर आबाद हो जाएं तो ग्वालियर को दोबारा जीवन मिल सकता है। पिछले दो दशकों में विकास के नाम पर ग्वालियर को दो नए विश्व विद्यालय मिले। इसके लिए भाजपा सरकार का आभार किन्तु ये भी आधे-अधूरे है। कृषि विश्व विद्यालय अब तक पहचान नहीं बना पाया है और संगीत विश्व विद्यालय की जमीन छीनकर वहां संभागीय आयुक्त कार्यालय बना दिया गया है। संगीत विश्व विद्यालय 200-200 रुपए के लिए भोपाल की ओर ताकता है।
ग्वालियर का सौभाग्य है कि सत्ता चाहे कांग्रेस की रही हो या भाजपा की, केन्द्रीय सत्ता में ग्वालियर का कोई न कोई प्रतिनिधि अवश्य होता है। पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया रहे और बाद में नरेन्द्र सिंह तोमर। दोनों ने ग्वालियर के विकास में भूमिका तो निभाई, लेकिन उसका सीधा लाभ जनता को और ग्वालियर को नहीं मिला। दोनों नेता ग्वालियर को जनता के सपनों का ग्वालियर बनाने के बजाय अपने सपनों को ग्वालियर बनाने में जुटे हैं। ग्वालियर ‘स्मार्ट सिटी’ परियोजना का अंग भी है, किन्तु इस परियोजना ने अब तक या तो बेगार करने में अपना रुपया लुटाया है या अफसरों ने नेताओं की पसंद की परियोजनाओं पर काम कर अपनी जेबें भरी हैं या फिर ग्वालियर के ऐतिहासिक रूप को विकृत किया है। ग्वालियर प्रदेश का ऐसा बदनसीब शहर है जहां उसकी अपनी कोई नगर परिवहन सेवा नहीं है। कंपनिया बनीं, बस स्टॉप बने, किन्तु बसें आज तक नहीं चलीं।
ग्वालियर प्रदेश की राजधानी की ही तरह खूबसूरत पहडियों से घिरा शहर है, किन्तु ग्वालियर में तमाम पहाडियों पर अतिक्रमण कर उन्हें आबाद कर दिया गया। शासन ने आज तक ग्वालियर के समग्र और चौतरफा बसाहट की कोई योजना नहीं बनाई। ग्वालियर का विकास प्राधिकार कागजी संस्थान साबित हुआ। ग्वालियर का नगर निगम लूट का अड्डा बना हुआ है, यदि मुख्यमंत्री मोहन यादव इन दोनों संस्थाओं के कायाकल्प की कोई मजबूत पहल कर सकें तो इस शहर का कल्याण हो जाए। प्रदेश के इंदौर शहर पर मुख्यमंत्रियों का, उज्जैन पर महाकाल का आशीर्वाद रहा, किन्तु ग्वालियर का कोई माई-बाप नहीं है। मुख्यमंत्री जी कुछ वर्ष के लिए ग्वालियर के माई-बाप बन जाएं तो मजा आ जाए। ईश्वर से प्रार्थना है कि उनकी मति फेर दे।
राजनीतिक पक्षपात के शिकार ग्वालियर को न अर्जुन सिंह ने कुछ दिया और न दिग्विजय सिंह ने, न उमा भारती ने कुछ दिया और न बाबूलाल गौर ने। शिवराज सिंह ने उतना ही दिया जितना दाल में नमक मिलाया जाता है। ग्वालियर का ऐतिहासिक मेला बर्बाद हो चुका है, लेकिन उसकी फिक्र किसी को नहीं है। ग्वालियर व्यापार मेले की सैकडों एकड भूमि उजाड पडी है। यहां माधव राव सिंधिया की पहल पर एक बार तीन करोड की लागत का एक फैसिलेशन सेंटर बना, उसके बाद कोई काम नहीं हुआ, जबकि सरकार चाहती तो ये मप्र का प्रगति मैदान बन सकता था। मुख्यमंत्री मोहन यादव चाहें तो ये श्रेय हांसिल कर सकते हैं। ग्वालियर विकास का तलबगार है। उसकी तलब तभी बुझ सकती है, जबकि प्रदेश की सत्ता उदारता पूर्वक ग्वालियर की सुने। ग्वालियर के पास जमीन है, जल स्त्रोत हैं, लेकिन कोई भाग्यविधाता नहीं है। मोहन यादव ग्वालियर के भाग्यविधाता बन जाएं, उन्हें ग्वालियर आमंत्रित करता हूं। वे ग्वालियर के विकास की कमान खुद सम्हालें। ग्वालियर को एक समर्पित और संवेदनशील प्रशासन चाहिए। समर्पित मंत्री चाहिए, ऐसे मंत्री जो कमीशनखोरी न कर विकास करें, नि:स्वार्थ विकास।