– राकेश अचल
कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ‘पनौती’ कहे जाने पर भाजपा आग-बबूला हो गई है। भाजपा के शब्द शास्त्री शायद पनौती को गाली समझ रहे हैं। जबकि पनौती गाली नहीं है। पनौती लोकभाषा का एक ऐसा सुप्रचलित शब्द है जो वक्रोक्ति के रूप में सदियों से इस्तेमाल किया जाता है। जहां तक मुझे याद आता है कि माननीय के लिए ‘पनौती’ शब्द का इस्तेमाल राहुल गांधी से बहुत पहले देश का एक बहुत बडा मोदी प्रेमी वर्ग विश्व कप के दिन कर चुका था। वो भी उसी संदर्भ में जिस संदर्भ में राहुल ने कहा और देश ने समझा। वैसे आपको बता दूं कि पनौती नेपाल के एक कस्बे का नाम भी है और वहां निकाली जाने वाली एक धर्म यात्रा नेपाल में बहुत लोकप्रिय है।
देश की राजनीति में भाषा की मर्यादाओं को भंग करने का इतिहास पुराना नहीं है। 2014 के बाद तो हमारे नेताओं ने भाषा की मर्यादा की दीवार गिरा ही दी। कोई भी राजनीतिक दल हो, इस मामले में 21 ही रहा, 19 नहीं हुआ। सत्तारूढ भाजपा से लेकर प्रमुख प्रतिपक्षी दल कांग्रेस के साथ ही छुटभैये राजनीतिक दल भी इस मामले में पीछे नहीं रहे। राजनीति का कोई छात्र चाहे तो हाल के पनौती शब्द से लेकर अतीत के असंख्य शब्दों पर शोध कार्य कर पीएचडी की उपाधि हासिल कर सकता है।
देश की एक बडी आबादी और राहुल गांधी भले ही मोदी जी के लिए पनौती शब्द का इस्तेमाल करें, लेकिन मैं ऐसा कदापि नहीं कर सकता। मैं मोदी जी को देश, दुनिया के लिए एक चुनौती मानता हूं, पनौती नहीं। मैं उन्हें आरएएस की मनौती मानता हूं। यदि मोदी जी न होते तो भाजपा भी शायद सत्ता में न होती, क्योंकि भाजपा के पास ‘एन्टायर पॉलिटिक्स’ में परा स्नातक कोई नेता है ही नहीं। राजनीति में नेता होना ही पर्याप्त नहीं है, नेता को अभिनेता भी होना चाहिए, वो भी बहुमुखी प्रतिभा का धनी। बिल्कुल मोदी जी की तरह, जो हर भूमिका में फिट बैठे या न बैठें, लेकिन किसी भी भूमिका से पीछे न हटे। मोदी जी भाजपा के दिलीप कुमार हैं, गुरुदत्त हैं, अमिताभ बच्चन हैं, अजित हैं, प्राण हैं, मदनपुरी हैं, डेविड हैं, मनमोहन हैं। देश के तमाम पूर्व प्रधानमंत्रियों के पास ये प्रतिभा नहीं थी। पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू के पास भी नहीं।
मोदी जी की पार्टी राहुल गांधी के इस कथित शब्द का इस्तेमाल करने को राष्ट्रव्यापी मुद्दा बनाना चाहती है, उसे बना लेना चाहिए। मुझे लगता है कि कोई देवीय शक्ति भाजपा की मति फेर कर उससे ये काम करना चाहती है, ताकि पूरा देश समझ जाए कि ‘पनौती’ आखिर कहते किसे हैं? मैं बार-बार कहता हूं कि मोदी जी पनौती नहीं चुनौती हैं। उन्होंने सबसे पहले कालेधन को चुनौती दी, लेकिन कालेधन ने उनकी चुनौती स्वीकार नहीं की, कालाधन मोदी जी के कहने पर भी स्वदेश नहीं आया। मोदी जी ने नोट बंदी की किन्तु कोई लाभ नहीं हुआ। महंगाई ने मोदी जी की चुनौती को उसी तरह नकार दिया जिस तरह कालाधन ने किया था, लेकिन मोदी जी न हारे, न थके, न रविशंकर प्रसाद की तरह बिदके। वे रोज गाली खाकर अपना स्वास्थ्य बनाए हुए हैं (ऐसा मोदी जी ने खुद कहा)।
मोदी जी पूरे देश और दुनिया के लिए तो चुनौती हैं ही, अपनी ही पार्टी के लिए भी एक चुनौती हैं। पिछले दस साल में उन्हें अपदस्थ करने के लिए किसी दूसरे नेता ने हिम्मत दिखाई। सब के सब कागज के शेर बने हुए हैं। उनकी चुनौती के सामने एकमेव राहुल गांधी और उनके पीछे तमाम बडे-छोटे नेता खडे हैं। मोदी जी ने मणिपुर को जलने दिया, लेकिन विचलित नहीं हुए। मोदी जी ने भाजपा को एक के बाद एक अनेक राज्यों में हारते देखा, किन्तु वे धीर-गंभीर बने रहे। मोदी जी के युग में तमाम छोटे-बडे देशों ने भारत से तरके-ताल्लुक कर लिए, किन्तु मोदी जी ने उनकी और पलट कर देखा तक नहीं। ऐसे मोदी जी को यदि कोई पनौती कहे तो मुझे ठीक नहीं लगता। वे सबके लिए चुनौती हैं। उनका मुकाबला केवल वे खुद कर सकते हैं। राहुल गांधी मोदी जी के आगे कहां लगते हैं?
देश को मोदी जी पर गर्व है कि उन्होंने मिली भगत की राजनीति का स्वरूप ही बदल दिया। अब कोई किसी से मिला नहीं है। मेल-मिलाप गुजरे जमाने की बात है। अब कोई जन्मदिन की पार्टी तक में नहीं मिलता-जुलता। अब देश में अदावत की राजनीति का युग है। असंसदीय शब्दावली की राजनीति का युग है। बिधूडी ब्राण्ड राजनीति का युग है। मोदी जी की टीम के सदस्य बिधूडी जी ने संसद में जिन शब्दों का इस्तेमाल किया था वे ‘पनौती’ के सामने बहुत हल्के हैं। राहुल गांधी बिधूडी के शब्दकोश के सामने पलभर भी नहीं ठहर सकते। बिधूडी क्या वे भाजपा के किसी भी नेता के मुकाबले असंसदीय शब्दों की प्रतियोगिता में नहीं ठहर सकते। उन्होंने नागपुर में प्रशिक्षण ही कहां लिया है?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए यदि राहुल गांधी ने बुरे भाव से पनौती शब्द का इस्तेमाल किया है तो तय मानिये कि तीन दिसंबर को आने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों में कांग्रेस का सूपडा साफ़ हो जाएगा। जनता उन्हें दण्डित करके मानेगी और यदि ऐसा नहीं हुआ तो आपको मानना होगा कि राहुल गांधी ने मोदी जी के लिए पनौती का इस्तेमाल कर कोई गलती नहीं की, बल्कि यदि इन पांच राज्यों में कांग्रेस जीतती है तो मानना होगा कि जनता ने राहुल गांधी को पुरस्कृत किया है।
आपको भी मेरी तरह तीन दिसंबर का इंतजार करना चाहिए। इस दिन राजनीतिक दलों की प्राण-प्रतिष्ठा का दिन है। दस हजार करोड रुपए के वायरल वीडियो की प्राण-प्रतिष्ठा का दिन है। तीन दिसंबर को जनता जिसे प्राण-प्रतिष्ठित करेगी वो ही दल अगले साल 2024 में भी देश की संसद में प्रतिष्ठित होगा। अनौती, पनौती कहने से इस पार कोई फर्क नहीं पडेगा। यदि आपका मन केवल प्रतिस्पर्धी को पनौती कहने से खुश होता है तो आप मुझे एक-दो बार नहीं पूरे दस बार पानौती कह सकते हैं। मैं बिल्कुल बुरा नहीं मानने वाला। मेरे पास लिखने के लिए दूसरे तमाम मुद्दे हैं। मैं रविशंकर प्रसाद की तरह पनौती को राष्ट्रव्यापी मुद्दा बनाने में अपनी ऊर्जा खर्च नहीं कर सकता।