कमलनाथ बनाम कमीशन नाथ

– राकेश अचल


बदजुबानी पर कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता छीनने वाले देश में बदजुबानी थमने का नाम ही नहीं ले रही है। बदजुबानी करने वालों को पता है कि राहुल के साथ जो हुआ वो एक राजनीतिक अदावत का हिस्सा था, इसलिए बदजुबानी करने में न कोई हिचक रहा है और न किसी को कोई डर है। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को ‘कमीशन नाथ’ कहने वाले मौज में हैं।
कमलनाथ से मंै कभी मिला नहीं, कभी जरूरत ही नहीं पड़ी, लेकिन मैं कमलनाथ को तबसे जानता हूं जब वे राजनीति में आये थे। एक पत्रकार के नाते हुई मुलाकातों को मैं मिलना-मिलाना नहीं मानता। मैं मानता हूं कि कमलनाथ आज के नेताओं की पीढ़ी में सबसे ज्यादा योग्य नेता हैं। वे किस दल में हैं इससे उनकी योग्यता पर कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन उन्हें कमीशन नाथ कहने वाले नेता उनके सामने बच्चे हैं। कमलनाथ की कमीशन नाथ कहने से कांग्रेसियों को कष्ट होता हो या न हो लेकिन मुझे ये अशोभनीय लगता है। राजनीति में इतना छिछलापन स्वीकार्य नहीं होना चाहिए।
राजनीति में नैतिकता और मर्यादाओं का कोई स्थान नहीं है। राजनीति में अब कोई मर्यादा पुरषोत्तम बनना भी नहीं चाहता, फिर भी राजनीति को इसकी जरूरत है। कमलनाथ को कमीशन नाथ कहने वाले मप्र भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष की उम्र जब मात्र 10 साल रही होगी कमलनाथ तब से सांसद हैं। वे आठवीं लोकसभा के सदस्य रहे हैं और वीडी शर्मा 17वीं लोकसभा के सदस्य हैं। कमलनाथ और वीडी शर्मा की राजनीतिक यात्रा में काफी अंतर है। यानि वे राजनीति में वीडी शर्मा के दादा नहीं तो पिता तो हैं ही। ऐसे में उन्हें जुबान सम्हालकर बोलना चाहिए। लेकिन साखा के संस्कार शायद इसकी इजाजत नहीं देते। हालांकि साखामृग नाम के आगे श्री और पीछे जी लगाने के आदी होते हैं। उन्हें इसके लिए दीक्षित किया जाता है।
कमलनाथ और वीडी शर्मा में से मप्र का मुख्यमंत्री कौन हो ये चुनाव हमें नहीं करना। ये फैसला राजनीतक दल और प्रदेश की जनता करती है। हम लेखक और पत्रकार केवल मीमांसा कर सकते हैं। कमलनाथ यदि वीडी शर्मा के बारे में कोई हल्की टिप्पणी करें तो वो भी उतनी ही असभ्य मानी जाएगी, जितनी कि वीडी शर्मा द्वारा कमलनाथ के लिए की गई टिप्पणी है। दरअसल कमलनाथ भाजपा की आंख की किरकिरी हैं। कमलनाथ ने ही एक नई ऊर्जा के साथ कांग्रेस की सत्ता में वापसी की थी। 2018 में भाजपा के 15 साल के साम्राज्य को नेस्तनाबूद करने वाले कमलनाथ हर मामले में आज के मुख्यमंत्री से 21 बैठते हैं। भाजपा को आशंका है कि कहीं 2023 में भी कमलनाथ के नेतृत्व में फिर भाजपा का तख्ता न पलट जाए।
कमलनाथ के राज में मान लीजिए कमीशनखोरी चरम पर रही भी हो तो आपने 18 माह क्या किया? आप केवल आसमान के तारे गिनते रहे। ऑपरेशन लोटस में उलझे रहे। आपने ऑपरेशन लोटस से ही कमलनाथ की सरकार को अपदस्थ किया, चलिए अच्छा किया। लेकिन अब जब जनता की अदालत में जाने का मौका आ रहा है तो जुबान को लगाम देना चाहिए। जुबान को लगाम की जरूरत हर राजनीतिक दल के नेताओं को है। कांग्रेसी भी यदि शिवराज को यमराज कहेंगे तो मैं निंदा करूंगा और कहूंगा कि वे भी बदजुबानी को अपना औजार न बनाएं।
कांग्रेस की बदजुबानी का हिसाब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास है। मोदी जी ने कर्नाटक की चुनावी रैलियों ने सार्वजनिक रूप से बताया था कि कांग्रेसियों ने उनके खिलाफ 92 बार गालियां दी हैं। राजनीति में बदजुबानी का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। दुर्भाग्य ये है कि राजनीति में सुभाषित बोलना कोई या तो जनता नहीं या फिर उसे इसकी तमीज नहीं है। खिसयानी बिल्ली खंभा नौच सकती है, लेकिन गालियां नहीं दे सकती। ऐसे में नेताओं को भी अपनी हदों में रहना चाहिए। मुझे कभी-कभी पता नहीं क्यों ऐसा लगता है कि आने वाले दिनों में नेताओं की जरूरत को पूरा करने के लिए गालियों का कोई नया शब्दकोश ही न आ जाए।
बदजुबानी कमलनाथ करें या वीडी शर्मा, पीसी शर्मा करें या विश्वास सारंग कोई फर्क नहीं पड़ता। दरअसल बदजुबानी से राजनीति समृद्ध नहीं होती। असंसदीय और अशोभनीय शब्दावली राजनीति को दूषित करती है और करती जाएगी। सभी दलों को और चुनाव आयोग को इसके बारे में गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। मुश्किल ये है कि जो शब्द जिसके पास है वहां उसे दूध का धुला मान रहे हैं। कोई किसी की सुनने को तैयार नहीं है। उलटे सभी राजनीतिक दलों ने बदजुबानी करने वालों को बाकायदा अपना प्रवक्ता बना रखा है, जो जितना ज्यादा कटखना है वो उतना महत्वपूर्ण है।
प्रश्नाकुल समाज में रहने वाले लोग यदि मुहावरों और कहावतों का इस्तेमाल करते हैं तो गालियों की जरूरत ही नहीं पड़ती, लेकिन प्रश्नाकुलता की हत्या कर दी गई है और प्रश्न करने वालों के लिए गाली विशेषज्ञों की फौज तैयार कर दी गई है। पार्टी के नेताओं को बदजुबानी के मामले में अपने कार्यकर्ताओं पर भरोसा नहीं है। इसलिए वे ये काम खुद करने लगे हैं। कोई भी इस बदजुबानी कला से अछूता नहीं रहना चाहता। सब एक-दूसरे से आगे निकलना चाहते हैं। निकल भी रहे हैं, क्योंकि बदजुबानी अब होड़ में बदल चुकी है।
राजनीति यदि मुद्दों पर होगी तो परिणाम कर्नाटक जैसे ही आएंगे। जनता बदजुबानी से आजिज आ चुकी है। जनता मुद्दों पर बात होते देखना चाहती है। उसे कमलनाथ के कमीशन नाथ या शिवराज के डंपरों से कोई लेना देना नहीं है। अब आप चुनाव प्रबंधन से जीतते हैं, गाली-गलौच से नहीं। पहले अमित शाह और अब डीके शिवकुमार ये साबित कर चुके हैं। अब मप्र में भी यही सब साबित करने का समय आ चुका है। गालियों पर केन्द्रित राजनीति के बजाय मुद्दों पर केन्द्रित राजनीति का समय है। सो जागो, जागो नेताओं जागो। लोकतंत्र की रक्षा के लिए जागो। सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए जागो।