जहां भक्त और भक्ति है, भगवान वहां सदैव आते हैं : देवी संध्या जी

हिमाचल प्रदेश के खेरीधाम हमीरपुर में चल रही है श्रीराम कथा

खेरीधाम/हमीरपुर, 09 अप्रैल। धन्य हैं बृज की गोपियों का भाव, प्रेम का कभी वासना न समझना, प्रेम तो उपासना है, यदि कामना जागी रही तो कृष्ण नहीं जागेंगे। भक्ति जहां है, भगवान वहां दौड़े चले आते हैं। यह उद्गार देश की सुप्रसिद्ध भागवताचार्य चंबल घाटी मप्र की धरा से पधारीं देवी संध्या जी ने खेरीधाम हमरीपुरा (हिमाचल प्रदेश) में चल रही श्रीराम कथा के छटवे दिन रविवार को व्यक्त किए। भागवत कथा विश्राम आगामी 12 अप्रैल को विशाल भण्डारे के साथ होगा।

देवी संध्या जी ने कहा कि अयोध्या में राम के राजा बनने की तैयारी शुरू हो रही है, राजा दशरथ चाहते हैं कि अब मैं वृद्धावस्था में लौट रहा हूं, अब अयोध्या में राम का राजतिकल हो जाए, तब आराम से भजन करूंगा। दशरथ जी ने राम को राजपट देने का फैंसला किया, यह भाव गुरू वशिष्ठ के समक्ष दशरथ जी ने कहा। भजन जहां हो रहा है, वहां मंगलमय होगा। दशरथ जी ने नगर को सजाने का आदेश दे दिया, सबके कानों में खबर पहुंच गई कि राम राजा बनेंगे। ध्वजा-पताका, तोरण लगने लगा। मंथरा जानना चाहती है कि अयोध्या में खुशियों का वातावरण कैसा है। मंथरा को पता चला कि राम राजा बनने वाले हैं, एक ही रात शेष थी, यह मंथरा विचार कर रही है। मंथरा कैकेयी की दासी थी, वह कैकेयी माता को भ्रमित करने पहुंची। मंथरा मुंह फुलाए कैकेयी माता के पास पहुंच रही है। देव भी नहीं चाहते कि राम राजा बन पाएं, क्योंकि राक्षस के अत्याचार कैसे समाप्त होंगे। माता सरस्वती ने मंथरा की बुद्धि बिगाड़ दी। मंथरा कैकेयी माता के सामने गुमसुम बैठी हो। कैकेयी ने सबसे पहले राम की कुशलता मंथरा से पूछी। मंथरा बताती है कि कल राम राज बनेंगे, किसी ने आपको बताया तक भी नहीं है। कैकेयी ने कहा राम राजा बनेंगे, यह तो खुशी की बात है। कौन नहीं चाहेगा कि राम जैसा पुत्र राजा बने। मंथरा कहती है, राम राजा बनेंगे यह आपसे राज क्यों रखा गया। कैकेयी कहती है मुझे राम जैसा पुत्र बने, अगले जन्म में राम मेरे कोख से जन्म ले। मंथरा राम के राजतिलक का कैकेयी से विरोध करती हुई कहती है कि राम के राजा बनने से आपकी उपेक्षा होगी। यह बात मंथरा की कैकेयी की दिमाग में फिट बैठ गई। मंथरा कैकेयी से बोली आपके भेलेपन का लाभ महाराज दशरथ उठा रहे हैं। आप दो बरदान महाराज से मांग लो।

कैकयी कोप भवन में पहुंच गई, कोप भवन की सूचना जैसी ही महारज दशथ को लगी तो उनकी बेचेनी बढ़ गई। कैकेयी से कोप भवन का कारण दशरथ ने पूछा। कैकेयी ने अपने पुराने वचनों को याद करते हुए महाराज से कहा कि कैकेयी वचन लेकर अपने वरदान मांगती है। राम को बनवास, भरत को राजतिलक।
रघुकुल रीति सदा चली आई।
प्राण जाएं पर वचन न जाई।।
कैकेयी भतर को राजतिलक पहले वरदान के रूप में मांगती है। दूसरा वरदान राम 14 वर्ष के लिए वनवास चले जाएं। दशरथ बोले कैकेयी क्या बोल रही हो, मैं पहले वरदान को तैयार हूं, भरत राजा बनें, किंतु दूसरा वरदान मत मांगो। राम को वन मत भेजो। कैकेयी ने कहा महाराज अपने वचनों को पूरा करो, राजा रो-रोकर धरती पर पड़े थे, सुमंत ने कैकेयी से पूछा महाराज का यह हाल बेहाल कैसे है। कैकेयी ने दोनों वरदान राम को बताए। राम ने कहा पिताजी इतने दुखी क्यों हो, वन ही तो जा रहा हूं। राम ने कहा कि मेरा भाई भरत राजा बनेगा, इससे अच्छा हमारे लिए और कुछ नहीं है। कैकेयी मां को राम ने जननी कहा, यदि राम वन नहीं जाते तो क्या आदर्शन प्रस्तुत कर पाते। राम कौशल्या के पास गए, कहा पिता ने मुझे वन का राज्य दिया है। कौशल्या ने प्रेम को हृदय में रखकर पिता के वचन को पालन करने की स्वीकृति दे दी। राम ने लक्ष्मण जी से कहा यदि मेरे साथ वन चलना है तो माता सुमित्रा से आदेश लेकर आओ। लक्ष्मण ने सुमित्रा मां से वन जाने की आज्ञा मांगी। सुमित्रा मां ने लक्ष्मण से कहा कि आपकी मां सीता मैया हैं, उनसे आज्ञा लेकर आओ। राम, लक्ष्मण, सीता वन जाते हैं, सारा अवध रो रहा है। अवधवासी राम की ओर दौड़े, महाराज दशरथ जमीन पर मुर्छित पड़े हुए हैं और कह रहे कि हमारे राम को रोक लो। राम-राम मेरे राम कहकर महाराज दशरथ विलाप कर रहे हैं। राम वन को पहुंच गए, सुमंत से राम ने कहा रात हो गई, रथ को लेकर लौट जाओ। सुमंत वापस अयोध्या लौट गए। राम की गंगा के किनारे केवट से मुलाकात होती है। केवट भगवान को गंगा पार कराता है।