तीर्थंकरों का नाम जितना महान है चरित्र उससे भी महान : पुष्पदंत सागर

भिण्ड, 31 मार्च। तीर्थंकर के जन्म की सूचना स्वर्ग के इन्द्रों, राजा-महाराजा से पूर्व प्रकृति को मिलती है और वह झुमने लगती है। फूल खिलने में लगते हैं, फलों में मिठास भर जाती है, क्योंकि दुनिया में ऐसी आत्मा जन्म लेने वाली है, जिसके आने पर धर्म तीर्थ की स्थापना होगी। तीर्थंकर को जन्म देकर उसकी मां तीसरे भाव में निर्वाण को प्राप्त करने की भूमिका बना लेती है। जो शचि इंद्राणी तीर्थंकर बालक का स्पर्श करती है एक जन्म और धारण करें निर्वाण को प्राप्त कर लेती है। यह उद्गार गणाचार्य श्री पुष्पदंत सागर महाराज ने चंद्रप्रभ के जन्म कल्याणक महा महोत्सव के अवसर पर महावीर कीर्तिस्तंभ परिसर में धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि अपने सपनों को तो सभी पूरा करते हैं, मगर जो दूसरों के सपनों को पूरा करता है वह इस दुनिया में तीर्थंकर के नाम से जाना जाता है। तीर्थंकर जीवन को ही सार्थक नहीं बनाते, उनके नाम को भी सार्थक करते हैं। दुनिया में जिसके नाम रखे जाते हैं उनके अंदर नाम के अनुसार गुण भले ना हों, मगर तीर्थंकर यथा नाम तथा गुण होते हैं। तीर्थंकर अपनी मां के इकलौती संतान होते हैं। वे स्वयं तो जगत पूज्य बनते हैं जन्म देने वाले माता-पिता को भी जगत पूज्य बना देते हैं। पारस मणि को जो लोहा स्पर्श करता है वह भी सोना बना जाता है। तीर्थंकर चंद्रप्रभु पारस मणि के समान थे, सुलक्षणा माता की कोख से जन्म प्राप्त कर सम्मेद शिखर निर्वाण प्राप्त किया। तीर्थंकरों का जन्म होने के पश्चात सुमेरु पर्वत पर 1008 कलशों से जन्म अभिषेक के लिए सौधर्म ले जाता है। यह इस बात की तरफ इशारा है कि जिस तरह से सुमेरु पर्वत सबसे ऊंचा पर्वत है, उसी प्रकार की भगवान दुनिया के सबसे ऊंचे पद पर विराजमान होकर दूध की तरह मिठास से भरे हुए वचनों के द्वारा जगती का उद्धार करने वाले होते हैं। एक हजार नेत्र बनाकर भगवान के दिव्य रूप को सौधर्म इन्द्र देखता है फिर भी तृप्त नहीं होते नेत्र। भगवान बनने के लिए सब कुछ छोडऩा पड़ता है जो छोड़ता है वही सब कुछ पाता है।

इस अवसर पर आचार्य श्री सौरभ सागर महाराज ने कहा कि नारी जिसकी दुनिया आभारी है, वह चाहे तो मुर्दों में प्राण फूंक सकती है। ब्रह्माण्ड को हिला सकती है, इतना ही नहीं मैं तीर्थंकर बालक हूं, गोद में खिला सकती। तीर्थंकर महान हैं, मगर उनको जन्म देने वाली मां उससे पहले महान। अगर सुलक्षणा माता न होती तो चंदप्रभ तीर्थंकर के दर्शन कैसे होते हैं। दर्शन का पुण्य तो हमेशा प्राप्त होता है, मगर स्पर्श का पुण्य भगवान के अभिषेक और मुनियों की सेवा के समय ही प्राप्त होता हैं।
इसे पूर्व सुबह भगवान चंद्रप्रभु के जन्म कल्याण के पावन दृश्य दिखाए गए, महावीर कीर्ति स्तंभ परिसर में विशाल सभा मण्डप आज तो बधाई माता सुलक्ष्णा के महिल में आदि गीतों झूम उठा। गणाचार्य महाराज द्वारा जन्म के एक-एक दृश्यों पर विशेष व्याख्या सुनकर उपस्थित श्रृद्धालु मंत्रमुग्ध हो उठे। चंद्रप्रभु तीर्थंकर का विशेष मंत्रों से अभिषेक किया गया। सुबह सर्वप्रथम क्रांतिवीर प्रतीक सागर महाराज द्वारा देश, समाज, परिवार, सुख, शांति, समृद्धि के लिए जिनेन्द्र भगवान के मस्तक पर बीज मंत्रों का उच्चारण कर शांति की प्रार्थना की गई।
चंद्रप्रभ का दीक्षा कल्याण आज
शनिवार को दोपहर एक बजे तीर्थंकर कुमार का राज्याभिषेक, वैराग्य दर्शन, दीक्षा विधि, गणाचार्यश्री के विशेष प्रवचन, शाम 6:30 बजे आनंद यात्रा, रात आठ बजे से सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन होगा।