तथाकथित धार्मिकों ने धर्म को बांट रखा है, धर्म किसी को नहीं बांटता : पुष्पदंत सागर

भिण्ड, 28 मार्च। किला स्थित जैन मन्दिर में प्राण प्रतिष्ठा के पूर्व सत्संग में संत गणाचार्य श्री पुष्पदंत सागर महाराज ने कहा कि धर्म किसी को नहीं बांटता और अगर बांटता है तो वह धर्म नहीं। उन्होंने कहा कि वास्तविकता तो यह है कि आज तथाकथित धार्मिकों ने मानव से मानव को जुदा करके धर्म का बटवारा कर रखा है। परिणाम स्वरूप धर्म कर्म से देश में समरसता प्रेम करुणा का झरना बहना चाहिए पर अशांति और झगड़े हर व्यक्ति व समाज में दिखाई पड़ रहा है। आज आप अगर धर्म कर रहे है तो मान नाम पद के लिए नहीं प्रभु व सत्य की प्राप्ति के लिए कीजिए।
गणाचार्य श्री पुष्पदंत सागर महाराज ने कहा कि पूजा पद्धति में अंतर हो सकता है, पर सबका फल एक ही है परमात्मा प्राप्ति, इसलिए आप जिस परम्परा का निर्वाहन करते हैं कीजिए पर आपसी व्यवहार में नफरत नहीं प्रेम का रस घोलिए।
परेड चौराहे पर भी हुए संतश्री के प्रवचन
ऋषभ सत्संग भवन की जगह पूज्य गणाचार्य संतश्री का सत्संग परेड चौराहे पर हुआ। जहां जैन समाज के अलावा नगर के अन्य सत्संग प्रेमी जनों ने लाभ लिया। श्री पुष्पदंत सागर महाराज ने कहा कि सत्संग में या संत के पास जाओ तो उनसे संसार नहीं, जीवन कि सार्थकता मांगो, संत से राम का हनुमान का स्वीकार करना पूंछकर राम के होना मांगों, कृष्ण और सुदामा का नि:स्वार्थ प्रेम रिस्ता मांगों। सत्कार्य करने कि बुद्धि मांगो क्योंकि सत्कार्य ही जीवन का आधार है। अब राम के बिना राम राज्य संभव नहीं है। राम राज्य राम कि मौजूदगी में ही आएगा। स्वयं में राम की मर्यादा हो यह लक्षण बाला जीवन जिओ। उन्होंने कहा कि स्वर्गीय कहने से स्वर्ग नहीं मिल जाता, स्वर्ग पाने के लिए स्वर्ग स्थान के योग्य कार्य करो, स्वर्ग सा जीवन जिओ और हां अगर सच में स्वयं की प्रतिष्ठा चाहते हो तो प्रतिस्पर्धा का नहीं परिश्रम का जीवन जिओ, आज का आदमी जीवन तो जी रहा है पर ढंग का नहीं इसलिए दु:खी है परेशान है। शरीर की सुगंध के लिए ना जाने कितने प्रकार की वस्तु उपयोग कर ली होगी, अब जरूरत है जीवन में चारित्र की सुगंध की, इसलिए जीवन में इत्र की नहीं, चारित्र की सुगंध पैदा करो। आप रोज अपने दुकान, ऑफिस का हिसाब लगाते हो, पर जीवन का हिसाब कब लगाया। प्रतिदिन अपने कार्यों का, सत्कार्यों का हिसाब किताब लगाओ तो जीवन का हिसाब सही रहेगा, फायदे का रहेगा, कभी घाटा नहीं और हां किसी के पागल कहने पर बुरा मत मानो, बल्कि उस शब्द को सार्थक कर दो, अपने पापों को गलाने में लग जाओ, हम संत लोग यही कार्य कर रहे है यह सब पागल है, तुम भी पागल बनके परमात्मा बनने की राह पकड़ लो।

गणाचार्यश्री से पूर्व आचार्य श्री सौरभ सागर महाराज ने सत्संग में अपना उद्बोधन दिया और कहा कि अच्छा कुल कीमत से नहीं, किस्मत से मिलता है, इसलिए हमेशा कार्य ऐसे करो जिससे किस्मत बने। जैन जन्म से नहीं यहां पर सब जन समुदाय है, पर जन शब्द में दो मात्रा कि ही आवश्यकता है , अर्थात अच्छे आचार और अच्छे विचार रखने वाला हर इंसान जैन है।