मकान का नामांतरण कराने के एवज में ली थी दो हजार की रिश्वत
सागर, 11 फरवरी। विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम जिला सागर श्री आलोक मिश्रा के न्यायालय ने मकान के नामांतरण के एवज में रिश्वत लेने वाले आरोपी पटवारी अशोक अहिरवार को दोषी करार देते हुए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा-7 के तहत तीन वर्ष का सश्रम कारावास व दो हजार रुपए अर्थदण्ड, धारा 13(1)(डी), सपठित धारा 13(2) में चार वर्ष का सश्रम कारावास व तीन हजार रुपए अर्थदण्ड एवं सहआरोपी नारायण पटैल को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा-12 के तहत तीन वर्ष का सश्रम कारावास एवं दो हजार रुपए जुर्माने की सजा से दण्डित किया है। मामले की पैरवी सहायक जिला लोक अभियोजन अधिकारी श्याम नेमा ने की।
जिला लोक अभियोजन सागर के मीडिया प्रभारी के अनुसार घटना का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है कि 25 मई 2017 को आवेदक गोविन्द प्रसाद लोधी ने पुलिस अधीक्षक, लोकायुक्त कार्यालय सागर को एक लिखित शिकायत आवेदन दिया कि उसकी मां राधारानी ने ग्राम तिगाौड़ा में ताराबाई जैन से पुराना मकान खरीदा था, जिसका नामांतरण कराने हेतु वह अभियुक्त अशोक अहिरवार तत्कालीन पटवारी के पास गया, तो उसने नामांतरण के ऐवज में दो हजार रुपए की मांग की, आवेदक की मां राधारानी ने रिश्वत राशि देने से मना किया व लोकायुक्त कार्यालय में शिकायत हेतु लिखित सहमति दी, वह अभियुक्त को रिश्वत नहीं देना चाहती, बल्कि रंगे हाथों पकड़वाना चाहती है, अत: कार्रवाई किए जाने का निवेदन किया। आवेदन के साथ सहमति पत्र भी संलग्न किया गया। आवेदन में वर्णित तथ्यों के सत्यापन हेतु एक डिजीटल वॉयस रिकार्डर दिया गया, इसके संचालन का तरीका बताया गया, अभियुक्त से रिश्वत मांग वार्ता रिकार्ड करने हेतु निर्देशित किया। तत्पश्चात आवेदक द्वारा मांग वार्ता रिकार्ड की गई एवं तकनीकि कार्रवाईयां एवं ट्रेप कार्रवाई आयोजित की गई। नियत दिनांक को आवेदक द्वारा अभियुक्त को राशि दी गई व आवेदक का इशारा मिलने पर ट्रेप दल के सदस्य मौके पर पहुंचे और निरीक्षक विजय सिंह परस्ते ने अपना व ट्रेप दल का परिचय देकर, अभियुक्तगण का परिचय प्राप्त करने के उपरांत अभियुक्तगण से रिश्वत राशि के संबंध में पूछे जाने पर बताया कि सह-अभियुक्त नारायण पटैल ने अभियुक्त अशोक के कहने पर आवेदक गोविन्द से लेकर रिश्वत राशि अपनी पहनी हुई शर्ट की बांई जेब में रख ली है, तब मौके पर कार्रवाई प्रारंभ की गई व प्रकरण में अन्य विधिवत कार्रवाईयां की गई। विवेचना के दौरान साक्षियों के कथन लेख किए गए, घटना स्थल का नक्शा मौका तैयार किया गया, अन्य महत्वपूर्ण साक्ष्य एकत्रित कर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा-7 एवं धारा-13(1)(डी), सहपठित धारा 13(2) का अपराध आरोपी के विरुद्ध दर्ज करते हुए विवेचना उपरांत चालान न्यायालय में पेश किया। विचारण के दौरान अभियोजन द्वारा साक्षियों एवं संबंधित दस्तावेजों को प्रमाणित किया गया, अभियोजन ने अपना मामला संदेह से परे प्रमाणित किया। जहां विचारण उपरांत विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम सागर श्री आलोक मिश्रा के न्यायालय ने आरोपी को दोषी करार देते हुए उपरोक्त सजा से दण्डित किया है।