– अशोक सोनी ‘निडर’
स्वतंत्रता सैनानी, राष्ट्र भाषा हिन्दी के यशस्वी सेवक व पुत्र माखनलाल चतुर्वेदी की पुण्यतिथि है, तो आइए जानते हैं भारत माता के इस यशस्वी पुत्र के बारे में।
माखनलाल चतुर्वेदी (चार अप्रैल 1889-30 जनवरी 1968) भारत के ख्यातिप्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार थे, जिनकी रचनाएं अत्यंत लोकप्रिय हुईं। सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के वे अनूठे हिन्दी रचनाकार थे। प्रभा और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठत पत्रों के संपादक के रूप में उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार प्रचार किया और नई पीढ़ी का आह्वान किया कि वह गुलामी की जंजीरों को तोड़ कर बाहर आएं। इसके लिए उन्हें अनेक बार ब्रिटिश साम्राज्य का कोपभाजन बनना पड़ा। वे सच्चे देशप्रमी थे और 1921-22 के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए जेल भी गए। आपकी कविताओं में देशप्रेम के साथ-साथ प्रकृति और प्रेम का भी चित्रण हुआ है।
जीवनी
माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म मप्र के होशंगाबाद जिले में बाबई नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम नंदलाल चतुर्वेदी था जो गांव के प्राइमरी स्कूल में अध्यापक थे। प्राइमरी शिक्षा के बाद घर पर ही इन्होंने संस्कृत, बंगला, अंग्रेजी, गुजरती आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया।
कार्यक्षेत्र
माखनलाल चतुर्वेदी का तत्कालीन राष्ट्रीय परिदृश्य और घटनाचक्र ऐसा था जब लोकमान्य तिलक का उद्घोष- ‘स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ बलिपंथियों का प्रेरणा स्त्रोत बन चुका था। दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह के अमोघ अस्त्र का सफल प्रयोग कर कर्मवीर मोहनदास करमचंद गाँधी का राष्ट्रीय परिदृश्य के केन्द्र में आगमन हो चुका था। आर्थिक स्वतंत्रता के लिए स्वदेशी का मार्ग चुना गया था, सामाजिक सुधार के अभियान गतिशील थे और राजनीतिक चेतना स्वतंत्रता की चाह के रूप में सर्वोच्च प्राथमिकता बन गई थी। ऐसे समय में माधवराव सप्रे के ‘हिन्दी केसरी’ ने सन 1908 में ‘राष्ट्रीय आंदोलन और बहिष्कार’ विषय पर निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया। खण्डवा के युवा अध्यापक माखनलाल चतुर्वेदी का निबंध प्रथम चुना गया। अप्रैल 1913 में खण्डवा के हिन्दी सेवी कालूराम गंगराड़े ने मासिक पत्रिका ‘प्रभा’ का प्रकाशन आरंभ किया, जिसके संपादन का दायित्व माखनलाल जी को सौंपा गया। सितंबर 1913 में उन्होंने अध्यापक की नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह पत्रकारिता, साहित्य और राष्ट्रीय आंदोलन के लिए समर्पित हो गए। इसी वर्ष कानपुर से गणेश शंकर विद्यार्थी ने ‘प्रताप’ का संपादन-प्रकाशन आरंभ किया। 1916 के लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन के दौरान माखनलाल जी ने विद्यार्थी जी के साथ मैथिलीशरण गुप्त और महात्मा गांधी से मुलाकात की। महात्मा गांधी द्वारा आहूत सन 1920 के ‘असहयोग आंदोलन’ में महाकोशल अंचल से पहली गिरफ्तारी देने वाले माखनलाल जी ही थे। सन 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी उन्हें गिरफ्तारी देने का प्रथम सम्मान मिला। उनके महान कृतित्व के तीन आयाम हैं : एक, पत्रकारिता- ‘प्रभा’, ‘कर्मवीर’ और ‘प्रताप’ का संपादन। दो- माखनलाल जी की कविताएं, निबंध, नाटक और कहानी। तीन- माखनलाल जी के अभिभाषण/ व्याख्यान।
पुरस्कार व सम्मान
1943 में उस समय का हिन्दी साहित्य का सबसे बड़ा ‘देव पुरस्कार’ माखनलाल जी को ‘हिम किरीटिनी’ पर दिया गया था। 1954 में साहित्य अकादमी पुरस्कारों की स्थापना होने पर हिन्दी साहित्य के लिए प्रथम पुरस्कार दादा को ‘हिमतरंगिनी’ के लिए प्रदान किया गया। ‘पुष्प की अभिलाषा’ और ‘अमर राष्ट्र’ जैसी ओजस्वी रचनाओं के रचयिता इस महाकवि के कृतित्व को सागर विश्वविद्यालय ने 1959 में डीलिट् की मानद उपाधि से विभूषित किया। 1963 में भारत सरकार ने ‘पद्मभूषण’ से अलंकृत किया। 10 सितंबर 1967 को राष्ट्रभाषा हिन्दी पर आघात करने वाले राजभाषा संविधान संशोधन विधेयक के विरोध में माखनलाल जी ने यह अलंकरण लौटा दिया। 16-17 जनवरी 1965 को मप्र शासन की ओर से खण्डवा में ‘एक भारतीय आत्मा’ माखनलाल चतुर्वेदी के नागरिक सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। तत्कालीन राज्यपाल हरि विनायक पाटसकर और मुख्यमंत्री पं. द्वारकाप्रसाद मिश्र तथा हिन्दी के अग्रगण्य साहित्यकार-पत्रकार इस गरिमामय समारोह में उपस्थित थे। भोपाल का माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्चविद्यालय उन्हीं के नाम पर स्थापित किया गया है। उनके काव्य संग्रह ‘हिमतरंगिणी’ के लिए उन्हें 1955 में हिन्दी के ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
प्रकाशित कृतियां
हिमकिरीटिनी, हिम तरंगिणी, युग चरण, समर्पण, मरण ज्वार, माता, वेणु लो गूंजे धरा, बीजुरी काजल आंख रही आदि इनकी प्रसिद्ध काव्य कृतियां हैं। कृष्णार्जुन युद्ध, साहित्य के देवता, समय के पांव, अमीर इरादे : गरीब इरादे आदि इनके प्रसिद्ध गद्यात्मक कृतियां हैं।