सुदामा चरित्र की कथा सुन भाव विभोर हो गए श्रोता

अमायन में श्रीमद् भागवत कथा का हुआ समापन

भिण्ड, 03 जुलाई। जिले के ग्राम अमायन में बाग वाले हनुमानजी मन्दिर परिसर में चल रही श्रीमद् भागवत का रविवार को सुदामा चरित्र के वर्णन के साथ समापन हुआ। इस अवसर पर कथावाचक पं. श्यामविहारी व्यास ने सुदामा चरित्र व रुक्मिणी एवं भगवान श्रीकृष्ण के विवाह का वर्णन किया। जिसे सुनकर पण्डाल में उपस्थित श्रोता भाव-विभोर हो गए।
कथाव्यास ने सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि मित्रता करो, तो भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा जैसी करो। सच्चा मित्र वही है, जो अपने मित्र की परेशानी को समझे और बिना बताए ही मदद कर दे। परंतु आज-कल स्वार्थ की मित्रता रह गई है। जब तक स्वार्थ सिद्ध नहीं होता है, तब तक मित्रता रहती है। जब स्वार्थ पूरा हो जाता है, मित्रता खत्म हो जाती है।
उन्होंने कहा कि एक सुदामा अपनी पत्नी के कहने पर मित्र कृष्ण से मिलने द्वारकापुरी जाते हैं। जब वह महल के गेट पर पहुंच जाते हैं, तब प्रहरियों से कृष्ण को अपना मित्र बताते हैं और अंदर जाने की बात कहते हैं। सुदामा की यह बात सुनकर प्रहरी उपहास उड़ाते हैं और कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण का मित्र एक गरीब व्यक्ति कैसे हो सकता है। प्रहरियों की बात सुनकर सुदामा अपने मित्र से बिना मिले ही लौटने लगते हैं। तभी एक प्रहरी महल के अंदर जाकर भगवान श्रीकृष्ण को बताता है कि महल के द्वार पर एक सुदामा नाम का दरिद्र व्यक्ति खड़ा है और स्वयं को आपका मित्र बता रहा है। द्वारपाल की बात सुनकर भगवान कृष्ण नंगे पांव ही दौड़े चले आते हैं और अपने मित्र सुदामा को रोककर गले लगा लिया।
भगवान श्रीकृष्ण के विवाह प्रसंग को सुनाते हुए बताया कि भगवान श्रीकृष्ण का प्रथम विवाह विदर्भ देश के राजा की पुत्री रुक्मिणी के साथ संपन्न हुआ, लेकिन रुक्मिणी को श्रीकृष्ण द्वारा हरण कर विवाह किया गया। इस कथा में समझाया गया कि रुक्मिणी स्वयं साक्षात लक्ष्मी हैं और वह नारायण से दूर रह ही नहीं सकती। और जब कोई लक्ष्मी नारायण को पूजता है या उनकी सेवा करता है तो उन्हें भगवान की कृपा स्वत: ही प्राप्त हो जाती है।