– राकेश अचल
भारत-पाकिस्तान के बीच 7-8 मई की रात से शुरू हुए अघोषित युद्ध के तीन दिन बाद ही नाटकीय सीजफायर की खबर आम हिन्दुस्तानी के गले नहीं उतर रही, क्योंकि इस युद्ध विराम का तमगा अमेरिका अपने सीने पर लटका रहा है, जबकि भारत इसका खण्डन कर रहा है। खास बात ये कि इधर युद्ध विराम हुआ और उधर पाकिस्तान की ओर से इसका उल्लंघन भी कर दिया गया।
अधिकांश हिन्दुस्तानी जंग के खिलाफ रहते हैं, लेकिन पहलगाम हत्याकाण्ड के बाद जब भारत ने पाकिस्तानी आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर के जरिए ऐलान-ऐ-जंग कर ही दिया था तब इसे अंजाम तक ले जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा क्यों नहीं हुआ? पिछले तीन दिन में जंग छिडने के बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री ने अपनी संसद को पल-पल की खबर दी। युद्ध विराम के ठीक बाद संसद को बताया कि पाकिस्तान ने किन हालात में सीजफायर किया, लेकिन हमारी संसद और देश इस मामले में पहले दिन से प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री का मुंह ताक रही है। जो सूचनाएं मिल रही हैं वे मिस्त्री साहब, सोफिया कुरैशी और व्योमिका सिंह के जरिये मिल रही हैं।
पाकिस्तान की ओर से युद्ध विराम के प्रस्ताव पर भारत ने कैसे भरोसा कर लिया, जबकि हमारा पुराना अनुभव कहता है कि पाकिस्तान अपने कौल का पक्का नहीं है। पहले भी पाकिस्तान ने कितनी बार सीजफायर किया और फिर उसका उल्लंघन भी किया। 10 मई को भी एक तरफ सीजफायर का ऐलान हुआ और दूसरी तरफ उसका उल्लंघन भी। वजह साफ है कि पाकिस्तानी फौज और पाकिस्तानी सरकार में कोई तालमेल ही नहीं है। सरकार कुछ कहती है और पाकिस्तानी फौज कुछ करती रहती है।
आपको याद दिलला दूं कि इससे पहले भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध 56दिन चला था, फिर इस बार ऐसा क्या हुआ कि पाकिस्तान ने तीसरे दिन ही घुटने टेक दिए और भारत ने इसे मान भी लिया। जाहिर है कि इस नाटकीय युद्ध विराम में कुछ न कुछ पेंच जरूर है, अन्यथा अमेरिका इसका श्रेय लूटने वाला कौन है? भारत सरकार की ओर से हालांकि युद्धविराम में किसी तीसरे पक्ष की भूमिका से इंकार किया है, किंतु अमेरिका के दावे का प्रतिवाद अमेरिका के सामने नहीं किया।
ये मानने में कोई दिक्कत नहीं है कि पाकिस्तान के उपर युद्ध विराम के लिए अमेरिका का दबाब होगा, लेकिन ये कैसे मान लिया जाए कि भारत भी अमेरिका के दबाब में युद्ध विराम पर राजी हो गया। युद्ध विराम की जरूरत आखिर किसे थी, क्या आतंकियों के सभी ठिकाने भारतीय सेना ने नेस्तनाबूत कर दिए थे? कया सभी आतंकी ठिकानों पर सिंदूर मल दिया गया था? शायद नहीं। ऐसे सवाल न कर्नल सोफिया से किए जा सकते हैं न विंग कमांडर व्योमिका सिंह से। विदेश सचिव मिस्त्री भी ऐसे सवालों का उत्तर नहीं दे सकते। इसका जबाब केवल और केवल प्रधानमंत्री या रक्षा मंत्री दे सकते हैं, जो दे नहीं रहे हैं।
हम युद्ध विराम के पक्ष में हैं, युद्ध विराम का स्वागत भी करते हैं, लेकिन इस युद्ध विराम की हकीकत भी जानना चाहते हैं, क्योंकि जन भावना युद्ध विराम के पक्ष में नहीं है। लोग इस बार निर्णायक युद्ध चाहते थे। पूरा देश सरकार और सेना के साथ साना-बसाना खडा है। यदि इस युद्ध विराम के पीछे किसी तीसरे पक्ष का दबाब या कोई राजनीति है तो ठीक नहीं। इस युद्ध विराम में कुछ तो गडबड है, अन्यथा हम और हमारी सरकार जानती है कि
नवन नीच की अति दुखदायी
जिम धनु, अंकुश, उरग, बिलाई
पाकिस्तान की फितरत धनुष, अंकुश, सांप और बिल्ली जैसी ही है, जो पहले पीछे हटते हैं, झुकते हैं और अंतत: वार करते हैं। सवाल ये भी है कि अचानक किया गया ये युद्ध विराम उन निर्दोष भारतीय नागरिकों और जांवाज सैनिकों के बलिदान का अपमान नहीं है? जब भारतीय सेना 1971 में 19 दिन और 1999 में कारगिल युद्ध 56 दिन लड सकी, तब ऐसा क्या हुआ कि इस बार युद्ध विराम तीन दिन में ही हो गया? भाई जी दाल में कुछ तो काला है या पूरी दाल ही काली है, मैं कह नहीं सकता। लेकिन एक आम भारतीय के नाते मुझे सवाल करने और संदेह करने का हक है और ये राष्ट्रप्रेम है न कि देशद्रोह।
हमारी मजबूत और मजबूर सरकार ने पिछले 11 साल में जो आचरण किया है, ये संदेह के अंकुर उसी वजह से उमग रहे हैं। नोटबंदी, कालाधन, ऐ वन और ऐ टू को लूट की छूट, संविधान की अनदेखी, विपक्ष का मानमर्दन कोई भूला नहीं है। इस सबके बावजूद देश आतंकवाद के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर के साथ तनकर खडा रहा। लेकिन अब जब सीजफायर हो ही गया है तब तो देश को हकीकत से रूबरू कराइए महाराज।