वीरेन का इस्तीफा, यानि ‘का वर्षा जब कृषि सुखानी’

– राकेश अचल


पिछले 21 महीने से साम्प्रदायिकता की आग में धधक रहे मणिपुर के मुख्यमंत्री वीरेन कुमार सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया, इससे पहले उन्होंने कुम्भ में डुबकी लेकर अपनी नाकामी के लिए शायद प्रायश्चित भी किया, लेकिन अब मुख्यमंत्री के इस्तीफे का कोई अर्थ नहीं रह जाता, क्योंकि भाजपा हाईकमान ने वीरेन सिंह को हटाने में काफी देर कर दी। दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतने के फौरन बाद वीरेन सिंह के इस्तीफे की खबर दबकर रह गई। आपको याद होगा कि मणिपुर 3 मई 2023 से हिंसा की आग में जल रहा है। निर्णय लेने में डबल इंजिन की सरकार को लगभग पूरे दो साल लग गए। निर्णय लेने में देरी के संदर्भ में गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में जो चौपाई लिखी वो कालांतर में मुहावरा बन गया। उन्होंने लिखा-
का बरषा सब कृषी सुखानें।
समय चुकें पुनि का पछितानें॥
भाजपा ने मणिपुर की हिंसा के फौरन बाद यदि मुख्यमंत्री को हटा दिया होता तो शायद मणिपुर की हिंसा भी रुकती और भाजपा को आलोचनाओं का शिकार भी नहीं होना पडता, लेकिन भाजपा ने इस मामले में जान-बूझकर लेतलाली की। मुख्यमंत्री का इस्तीफा तो छोडिये देश के प्रधानमंत्री भी पिछले दो साल में एक बार भी मणिपुर हिंसा की समीक्षा करने या पीडितों से भेंट करने मणिपुर नहीं गए।
मुझे याद है, इसलिए मैं आपको याद दिलाना चाहता हूं कि 27 मार्च 2023 को मणिपुर हाईकोर्ट ने एक आदेश में राज्य सरकार से मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की बात पर जल्दी विचार करने को कहा था और इस आदेश के कुछ दिन बाद ही तीन मई 2023 को राज्य में कुकी और मैतेई समुदायों के बीच जातीय हिंसा भडक गई थी। इसमें कई लोगों की जान भी गई। मणिपुर में ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर द्वारा आयोजित एक जन रैली के हिंसक हो जाने के बाद प्रशासन ने शूट ऐट साइट का ऑर्डर भी जारी किया। उसके बाद प्रदेश के अधिकांश जिलों में कफर््यू लगा दिया गया और हालात को नियंत्रित करने के लिए सेना और असम राइफल्स के जवानों को तैनात किया गया।
कभी-कभी ऐसा लगता है कि देश की मजबूत सरकार मणिपुर की हिंसा को जानबूझकर सुलगाये रही। भाजपा ने देश में इस बीच आधा दर्जन से ज्यादा विधानसभाओं के चुनाव लडे और जीते। भाजपा को शायद ये भी या आशंका थी कि यदि मणिपुर में मुख्यमंत्री को बदला गया तो मुमकिन है कि भाजपा शासित दूसरे राज्यों में भी नेतृत्व परिवर्तन की मांग खडी हो सकती है, क्योंकि भाजपा ने जिस तरह से मप्र और राजस्थान में एकदम नए चेहरे दिए, इससे पार्टी के भीतर घोर असंतोष था।
मणिपुर की हिंसा भाजपा शासन के ऊपर पिछले एक दशक का सबसे बडा धब्बा है। 19 जुलाई 2023 को मणिपुर में हुई हिंसा दुनियभर में सुर्खियां बनीं, जब दो कुकी महिलाओं के नग्न परेड का वीडियो सोशल मीडिया में सामने आया। मणिपुर पुलिस ने इस वीडियो की पुष्टि करते हुए बताया कि ये महिलाएं चार मई को मणिपुर के थोबल जिले में यौन उत्पीडन की शिकार हुई थीं। मणिपुर की हिंसा को लेकर दुनिया के अनेक देशों में प्रतिक्रियाएं हुईं, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने मणिपुर जाना उचित नहीं समझा। वे संसद में भी मणिपुर पर बहुत देर में बोले।
इस अभूतपूर्व हिंसा को लेकर राजनीति भी खूब हुई। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मणिपुर से मुंबई तक 6700 किलो मीटर से ज्यादा की भारत जोडो न्याय यात्रा शुरू की थी। मणिपुर की राजधानी इम्फाल के निकट थौबल में वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं की मौजूदगी में एक बडी रैली के सामने बोलते हुए राहुल गांधी ने कहा कि मणिपुर जिस दर्द से गुजरा है हम उस दर्द को समझते हैं। उन्होंने कहा कि हम वादा करते हैं कि उस शांति, प्यार, एकता को वापस लाएंगे। राहुल दो बार मणिपुर गए भी, लेकिन उन्हें इसका कोई राजनैतिक लाभ नहीं मिला। इस हिंसा से भाजपा का भी कोई नुक्सान नहीं हुआ। शेष देश की जनता को लगा जैसे कि मणिपुर की हिंसा किसी दूसरे देश का मामला है।
बहरहाल अब मणिपुर में मुख्यमंत्री हटा दिए गए हैं। लगता है वहां अब शीघ्र ही नया मुख्यमंत्री भेज दिया जाएगा। भाजपा अब दिल्ली जीतने के बाद अपने आपको एकदम सुरक्षित समझने लगी है। लेकिन ऐसा है नहीं। भले ही भाजपा ने ‘देर आए, दुरुस्त आए’ की कहावत को सार्थक किया है, किन्तु ये देर से उठाया कदम तो है ही। यही काम यदि भाजपा ने दो वर्ष पहले कर दिया होता तो आज मणिपुर की तस्वीरें कुछ और ही होतीं। मणिपुर में नया मुख्यमंत्री कौन होगा और कौन नहीं, इससे ज्यादा फर्क नहीं पडने वाला। फिर भी भाजपा को आई सदबुद्धि के लिए मोशा की जोडी का आभार।