भिण्ड, 03 दिसम्बर। चैत्यालय जैन मन्दिर में गणाचार्य विराग सागर महाराज ने प्रवचनों में कहा कि अनादि से व्यक्ति मन का दास बना हुआ है। आज का व्यक्ति लौकिक कामनाओं में जीता है। मन के अनुसार हर क्रिया करता है लेकिन एक मात्र निग्र्रन्थ संत एसे हैं जो मन को अपने अनुसार चलाते हैं।
उन्होंने कहा कि आज के व्यक्ति का मन इतना भटका हुआ है कि वह एक समय में न जाने कितने जगहों की यात्रा कर लेता है। आज मन अच्छाइयों की ओर कम बुराईयों की ओर ज्यादा जाता है। हम सिर्फ अपने और अपने परिवार के विषय के बारे में ही सोचते हंै, उसकी खुशी में ही अपनी खुशी समझते हैं। इतना सब कुछ होने के बाद भी जीवन में सुख शांति नहीं आ पाती है।
आचार्यश्री ने कहा कि तुम दूसरों का बुरा सोचना बंद कर दो। तुम्हारे बुरा सोचने से किसी का बुरा होने वाला नहीं है फिर क्यों दूसरों के विषय में बुरा सोचकर अपने कर्म बांधते हो। जैन धर्म हमें यही सबक सिखाता है कि सदैव सभी का अच्छा सोचो जो दूसरों का भला सोचेगा उसका भला नियम से होगा। तुम्हारे अच्छे सोचने से उसका अच्छा हो या न हो लेकिन तुम्हारा अच्छा अवश्य होगा। आप अपने जीवन में, परिवार में सुख शांति चाहते हो तो पुण्य के कार्य कीजिए, धर्म के कार्य कीजिए, सभी के प्रति तुम्हारे उच्च विचार ही तुम्हारी उन्नति के सोपान हंै। इसी से तुम्हारे जीवन में आए दुख के बादल छूट जाएंगे और सुख शांति का वातावरण छा जाएगा।