भिण्ड, 07 अक्टूबर। राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण नई दिल्ली और सर्वोच्च न्यायालय की मध्यस्थता एवं सुलह परियोजना समिति (एमसीपीसी) के निर्देशों के अनुसार ‘राष्ट्र के लिए मध्यस्थता’ नामक एक विशेष अभियान संपूर्ण भारत में गत एक जुलाई से शुरू किया गया। इस 90 दिवसीय अभियान का उद्देश्य राज्य के तहसील न्यायालयों से लेकर मप्र उच्च न्यायालय तक सभी स्तर के न्यायालयों में लंबित मामलों का निपटारा मध्यस्थता के माध्यम से करना था। मप्र उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं संरक्षक मप्र राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा तथा मप्र राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यपालक अध्यक्ष न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन के मार्गदर्शन में यह अभियान न्यायालयों में लंबित मामलों को मध्यस्थता के माध्यम से सुलझाने के साथ ही संपूर्ण मप्र में पक्षकारों के लिए अनकूल वैकल्पिक विवाद समाधान के एक प्रकार के रूप में मध्यस्थता को बढा़वा देने के उद्देश्य से चलाया गया।
अभियान के अनुशरण में संपूर्ण भिण्ड जिले की समस्त न्यायालयों में ‘राष्ट्र के लिए मध्यस्थता’ 90 दिवसीय अभियान सफलता पूर्वक चलाया गया। इस अभियान के अंतर्गत जिला मुख्यालय भिण्ड के समस्त न्यायालयों के साथ ही तहसील न्यायालय लहार, गोहद, मेहगांव के समस्त न्यायालयों में लंबित राजीनामा योग्य ऐसे मामले, जिनमें मध्यस्थता की संभावना थी, को मध्यस्थता के माध्यम से निराकृत किया गया। इस अभियान के दौरान संपूर्ण मप्र में न्यायालयों में लंबित कुल 4552 मामलों का मध्यस्थता के माध्यम से सफलता पूर्वक निपटारा किया गया। इन मामलों में काफी संख्या में ऐसे मामले थे जो बहुत लम्बे समय से न्यायालयों में लंबित थे। निपटारा किए गए इन मामलों में वैवाहिक मामले, मोटर दुर्घटना दावा से संबंधित मामले, घरेलू-हिंसा, चैक के अनादरण के मामले, राजीनामा योग्य आपराधिक मामले, ऋण-वसूली, बटवारा, बेदखली, भूमि अधिग्रहण एवं राजीनामा योग्य सिविल मामले शामिल थे।
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण नईदिल्ली और सर्वोच्च न्यायालय की मध्यस्थता एवं सुलह परियोजना समिति (एमसीपीसी) द्वारा गत एक जुलाई से चलाया जा रहा ‘राष्ट्र के लिए मध्यस्थता’ अभियान न्यायालयों में लंबित मामलों के सुलभ एवं तीव्र निराकरण हेतु एक राष्ट्रव्यापी अनूठी पहल है। जिसका उद्देश्य मध्यस्थता के माध्यम से न्यायालयों में लंबित मामलों के निराकरण में तेजी लाना, मामलों की लागत कम करना तथा समय बचाने वाले वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र के रूप में मध्यस्थता की प्रभावशीलता के बारे में जनजागरुकता बढ़ाने के साथ ही न्यायालयों में लंबित मामलों के बोझ को घटाकर सामाजिक सदभाव बढ़ाना है।