ओपीनियन पोल अर्थात पोल के ढोल

– राकेश अचल


बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान होने के साथ ही चुनाव से पहले जनता का ओपीनियन बदलने की गरज से जो ओपीनियन पोल आए हैं, उन्हें देखकर मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि रुपया बोलता है, चाहे फिर रुपया महिला मतदाओं के खातों में डाला गया हो या गोदी मीडिया के खलीतों में। ये दर असल पोल के ढोल हैं, जो बजते ही हैं। बिहार में दो चरणों में विधानसभा चुनाव होंगे। बिहार में पहले चरण के लिए 6 नवंबर जबकि दूसरे चरण के लिए 11 नवंबर को वोटिंग होगी। वहीं नतीजे 14 नवंबर को आएंगे।
इधर केंचुआ ने बिहार विधानसभा चुनावों की तारीखें घोषित कीं और उधर एक ओपिनियन पोल आ गया। जिसमें एनडीए गठबंधन को प्रचण्ड बहुमत में मिलता दिखाई दे रहा है। आईएएन एस मेट्रिज के ओपिनियन पोल के अनुसार बिहार में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बन सकती है। इस ओपिनियन पोल के अनुसार बिहार में भाजपा को 80 से 85 सीटें मिल सकती है जबकि जनता दल यूनाइटेड को 60 से 65 सीटें मिल सकती है। वहीं जीतनराम मांझी की हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा को 3 से 6, चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी को 4 से 6, उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा को एक से दो सीट मिल सकती है।
ओपीनियन पोल देखकर लगता है कि भाजपा गठबंधन तो चुनाव जीतने का इंतजाम पहले ही कर चुका है, क्योंकि ओपीनियन पोल महागठबंधन के आरजेडी को 60 से 65 सीटें जबकि कांग्रेस को 7 से 10, सीपीआईएमएल को 6 से 9, सीपीएम को 1, वीआईपी को 2 से 4 सीट मिलने की भविष्य वाणी कर रहा है। ओपो ने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएम आईएम को 1 से 3 सीटे ही दी हैं। ओपो के मुताबिक प्रशांत किशोर की जन सुराज पहली बार चुनावी मैदान में है और उसे 2 से 5 सीटें मिल सकती है। जबकि अन्य को 7 से 10 सीटें मिल सकती है।
आपको याद दिला दूं कि वर्ष 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन को जीत हासिल हुई थी। एनडीए गठबंधन ने 243 सदस्यीय विधानसभा में 125 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि महागठबंधन ने 110 सीटों पर जीत हासिल की थी। 2020 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी को 75 सीटों पर जीत हासिल हुई थी जबकि भाजपा को 74 सीटें मिली थी। वहीं नीतीश कुमार की जेडीयू को 43, कांग्रेस को 19 सीपीआईएमएल को 12 और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी 5 सीटों पर जीत हासिल की थी।
बिहार की सामाजिक कार्यकर्ता पदमश्री सिस्टर सुधा वर्गीज कहती हैं कि जब सरकार ने महिलाओ के खाते में 10-10हजार रुपए डाले हैं तो इसका असर तो होगा ना? सरकार गरीबों का वोट हडपना चाहती है, अन्यथा सरकार ने ये रकम कोविड और बाढ़ के समय क्यों नहीं दी। जबकि तब गरीबों को इसकी बहुत जरूरत थी। सिस्टर सुधा का कहना है कि बिहार में बीस साल में दलित, महिला उत्पीड़न, छुआछूत कम होने के बजाय और बढ़ा है। पुलिस बेलगाम है, पीड़ितों की रपट तक नहीं लिखती।
बहरहाल बिहार में एसआईआर विरोधी मुहिम वोट अधिकार यात्रा से माहौल बदला है। लेकिन वोट के बदले महिलाओं को दी गई 10 हजार की राशि राहुल गांधी की मेहनत पर उसी तरह पानी फेर सकते हैं, जैसे लाडली बहना योजना ने मप्र, राजस्थान, छग, महाराष्ट्र और हरियाणा में किया था। झारखण्ड में ये योजना नहीं चली थी। बहरहाल मतदाता के दिमाग को बदलने की हर कोशिश सत्तारूढ़ दल की ओर से की जाएगी। ओपीनियन पोल इसी रणनीति का हिस्सा है, वोट चोरी अभी रुकी नहीं है।