– राकेश अचल
पहलगाम में आतंकियों द्वारा किए गए नृशंस हत्याकाण्ड के बाद जबाब में भारत की ओर से किए गए ऑपरेशन सिंदूर और तीन दिन बाद हुए सीजफायर के बीच एक पखवाडे में जितने भी सवाल, शंकाएं, कुशंकाएं जन्मी उन सबका जबाब सुनने के लिए देश और दुनिया बेताब थी। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी 12 मई की रात 8 बजे राष्ट्र को संबोधित करने प्रकट भी हुए, लेकिन उन्होंने हमेशा की तरह ‘सीजफायर का सच’ देश और दुनिया से छुपा लिया।
मोदी जी के बहुप्रतीक्षित संबोधन में न कोई लय थी न आलाप। कोई उतार-चढाव, कोई मुरकी, कोई नोम-तोम भी नहीं था। मैंने मोदी जी का संबोधन दत्तचित होकर सुना, क्योंकि मैं 22 अप्रैल से ही मोदी जी से बोलने का आग्रह कर रहा था। मैं क्या पूरा देश मेरी तरह आग्रही था। लेकिन मोदी जी जब बोले तो ‘खोदा पहाड, निकला चूहा’ वाली कहावत चरितार्थ हो गई। यानि मोदी जी सेना और विदेश मंत्रालय के प्रवक्ताओं से ज्यादा कुछ नहीं बोले। हां उन्होंने देश को ये आश्वासन अवश्य दिया कि भारत आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष से पीछे नहीं हटेगा।
पाकिस्तान के साथ ऑपरेशन सिंदूर और उसकी कामयाबी को भारत की माताओं, बहनों और बेटियों को समर्पित करने के साथ ही सेना की मुक्त कण्ठ से सराहना करते मोदी जी अच्छे लगे, लेकिन भारत पाकिस्तान के बीच सीजफायर पर छाई धुंंध मोदी जी ने साफ नहीं की। उन्होंने नहीं बताया कि सीजफायर का पाकिस्तानी प्रस्ताव आनन-फानन में कैसे स्वीकार कर लिया गया, जबकि हमारी सेनाओं को आतंकियों के पाकिस्तान स्थित 11 और ठिकाने नेस्तनाबूत करना थे। सेना अपने काम में प्राणपण से लगी थी, किंतु जैसे सेना के हाथ खोले गऐ थे वैसे ही अचानक उन्हें बांध दिया गया।
हम न जंग के खिलाफ हैं न युद्ध विराम के। दोनों होना चाहिए। सवाल तो ये था कि युद्ध विराम भारत का अपना निर्णय था या दोनों देशों पर चौधरी अमेरिका का दबाब इसके पीछे था? मोदी जी ने इस सवाल को कडवे घूंट की तरह पी लिया। उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप साहब के दावे के बारे में एक शब्द नहीं कहा। मोदी जी ने देश को आश्वस्त किया कि आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष को लेकर कोई भारत को ब्लैकमेल नहीं कर सकता। हमें यानि देश को मोदी जी पर पूरा भरोसा है, लेकिन वे अमेरिका से ब्लैकमेल होते दिखाई दे रहे हैं। पाकिस्तान अमेरिका के दबाब में युद्ध विराम पर राजी हो ये तो मुमकिन है, लेकिन भारत ऐसा क्यों कर बैठा ये यक्ष प्रश्न है।
प्रधानमंत्री जी ने फिलहाल सीजफायर का सच छिपा लिया है, लेकिन आज नहीं तो कल उन्हें ट्रंप के दावे पर जबाब देना ही पडेगा। संसद यही सवाल करेगी जो जनता कर रही है, विपक्ष कर रहा है। मोदी जी से तो ज्यादा साहसी कांग्रेस के आधे भाजपाई हो चुके सांसद शशि थरूर निकले। थरूर ने अमेरिका की भूमिका को हस्तक्षेप न कह कर रचनात्मक सहयोग कहा। मुमकिन है कि मोदी जी भी यही कहना चाहते हों, किंतु पहलगाम में रक्षा प्रबंधों में कमी का अपराध बोध इसके आडे आ गया हो। लेकिन मोदी जी को बोलना चाहिए था।
प्रधानमंत्री जी ने देश को ये भी नहीं बताया कि भविष्य में तीसरे देश के हस्तक्षेप को रोकने के लिए 1972 में हुआ लंबित शिमला समझौता बहाल होगा या उसकी जगह कोई नया समझौता वजूद में आएगा। आपको याद होगा कि इस बार मोदी जी से न किसी ने कोई सबूत मांगा है न किसी कार्रवाई का विरोध किया है। सब मोदी जी के साथ हैं फिर भी मोदी जी सीजफायर का सच छिपा रहे हैं। बेहतर होता कि मोदी जी देश को ये आश्वासन भी देते कि वे भविष्य में आपरेशन सिंदूर की कामयाबी का राजनीतिक फायदा नहीं उठाएंगे। पुलवामा के बाद मोदी जी ऐसा कर चुके हैं।
मोदी जी और उनके भक्त बुरा न मानें तो मैं कहना चाहूंगा कि राष्ट्र को संबोधित करते हुए मोदी जी की आंखों में एक विजेता जैसी चमक, शब्दों में ओज का बेहद अभाव था। पूरा संदेश एक फिल्मी पटकथा जैसा था। मोदी जी देश के बजाय कैमरे की आंख में आंख डाले हुए थे, उन्हें देश की आंखों में आंखें डालकर बोलना था। सहज होकर बोलना था। सजीव (लाइव) बोलना था। इन्दिरा गांधी की तरह न सही कम सेकम पं. अटल बिहारी वाजपेयी की तरह उन्मुक्त होकर बोलना था। बहरहाल राष्ट्र फिलहाल मोदी जी के साथ है। उम्मीद है कि बिहार भी उनके साथ रहेगा और कोई सवाल सीजफायर को लेकर नहीं करेगा। नहीं पूछेगा कि ट्रंप का बच्चा क्या कहता है?