– राकेश अचल
हमारे दादा कहा करते थे कि तूतियों की आवाज पर कोई ध्यान नहीं देता , हालांकि देना चाहिए क्योंकि कभी-कभी इन तूतियों की आवाज के पीछे नक्कारों की आवाज भी छिपी होती है। तूती के बारे में आमतौर पर लोग कम ही जानते हैं। तूती का सीधा रिश्ता सुर और कर्कशता से है। तूती एक वाद्ययंत्र भी है और एक छोटे आकार का तोता भी। दोनों की आवाज पतली लेकिन कर्कश होती है, लेकिन जब नक्कारखाने में तमाम तरह के वाद्य बजते हैं तो अक्सर तूती की आवाज दब जाती है और यहीं से एक मुहावरा जन्म लेता है- ‘नक्कारखाने में तूती की आवाज’ का यानि बडे दरबारों में आम आदमी की बात सुनी नहीं जाती। लेकिन आज कलियुग है। नक्कारखानों में तूतियों की आवाजें खूब गूंज रही है। गूंज ही नहीं रही बल्कि उन्हें सुना जा रहा है।
मुद्दे की बात ये है कि आज-कल तूतियां हर तरफ पाई जाती हैं। राजनीति में भी, साहित्य में भी और फिल्मी दुनिया में भी। मैं इन तूतियों के बारे में लिखना नहीं चाहता था, लेकिन लिखना पड रहा है। देशज भाषा में तूतियों को ‘चूतिया’ भी कहा जाता है। सभ्य समाज में ये शब्द असंसदीय है, लेकिन देशज समाज में ये आम बोल-चाल का शब्द है और इस शब्द का इस्तेमाल ऐसे लोगों के लिए किया जाता है जो अधजल गगरी की तरह अपना ज्ञान छलकाते रहते हैं। ये तूतिया टाइप के लोग कोई धनकड भी हो सकता है, कोई निशिकांत भी हो सकता है और कोई मनोज मुंतशिर भी।
निशिकांत जाति से ब्राह्मण हैं लेकिन उन्होंने केवल दो ही वेद पढ़े हैं। उनका उपनाम दुबे है। उन्होंने देश के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश को निशाने पर लेकर अदालत की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट ही कानून बनाएगा, तो संसद को बंद कर देना चाहिए। दुबे ने तो यहां तक कह दिया कि इस देश में जितने भी ‘गृहयुद्ध’ हो रहे हैं, उसके लिए चीफ जस्टिस संजीव खन्ना जिम्मेदार हैं। दुबे जी के इस बयान से इधर भाजपा ने पल्ला झाडा, उधर उनके समर्थन में भाजपा के दूसरे सांसद नमूदार होने लगे हैं। भाजपा सांसद अग्निमित्रा पॉल ने निशिकांत दुबे का समर्थन किया। उन्होंने कहा, उन्होंने सही बात कही है। राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं। फिर सीजेआई राष्ट्रपति के आदेश को कैसे नकार सकते हैं? वह देश के सांसदों और नीति निर्माताओं के फैसले को कैसे नकार सकते हैं? जबकि निशिकांत को गृह युद्धों के लिए अपने प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को जिम्मेदार ठहरना चाहिए था।
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने एसवाई कुरैशी पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि कुरैशी चुनाव आयुक्त नहीं, बल्कि ‘मुस्लिम आयुक्त’ थे। दुबे ने यह टिप्पणी कुरैशी द्वारा वक्फ संशोधन अधिनियम की आलोचना के बाद की। कुरैशी ने इस अधिनियम को मुसलमानों की जमीन हडपने की सरकार की योजना बताया था। कुरैशी भारत के पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त हैं। निशिकांत का इस्तेमाल भाजपा संसद के भीतर और संसद के बाहर उन लोगों के खिलाफ करती है जिनसे वो खुद भयभीत रहती है। आप धनकड हों या दुबे, दुबे हों या और कोई। भाजपा के पास ऐसी तूतियों की कमी नहीं है।
पं. निशिकांत से पहले हमारे देश के विद्वान उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड सुप्रीम कोर्ट पर राशन-पानी लेकर चढ़ चुके हैं। धनकड साहब को सुप्रीम कोर्ट को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिली शक्तियों पर ऐतराज है। वे इन शक्तियों को न्यूक्लियर मिसाइल कहते हैं। धनकड साहब भाजपा के देवतुल्य कार्यकर्ताओं की तरह प्रतिक्रियाएं देने के लिए प्रसिद्ध हैं। धनकड साहब चूंकि कानूनविद हैं, इसलिए उनकी टिप्पणी पर मुझे भी हंसी आई और देश के तमाम लोगों को भी हंसी आई। लेकिन धनकड साहब पर इसका कोई असर नहीं हुआ। हो भी नहीं सकता। उन्हें तो तूतियों की तरह बजना है।
हमारी फिल्मी दुनिया में भी इस तरह की तूतियां हैं जो जब-तब बजाकर अपने आपको देशभक्त, मोदी भक्त साबित करने कि कोशिश करती रहती हैं। फिल्मी दुनिया में एक होते हैं अनुराग कश्यप और एक होते हैं मनोज मुन्तशिर। अनुराग कश्यप ने भी देश के एक बुद्धिमान जाति के बारे में एक अजीब सी टिप्पणी की तो उस जाति के लोगों से ज्यादा मनोज मुन्तशीर बमक उठे। मनोज ने अनुराग कश्यप को औकात में रहने कि नसीहत दे डाली। अनुराग के खिलाफ एक निशिकांत दुबे बोलना भूले तो दूसरे दुबे जी बोल उठे। केन्द्रीय मंत्री सतीश चंद्र दुबे ने इस मामले पर कहा है कि ‘यह नीच व्यक्ति अनुराग कश्यप सोचता है कि वह पूरे ब्राह्मण समुदाय पर गंदी बातें कहकर बच जाएगा? अगर उसने तुरंत सार्वजनिक माफी नहीं मांगी, तो मैं कसम खाता हूं कि उसे कहीं शांति नहीं मिलेगी। इस गंदे मुंह वाले के नफरत भरे बोल अब और बर्दाश्त नहीं, हम चुप नहीं रहेंगे!’
अब आप अनुमान लगा सकते हैं कि हमारे देश में नेता और साहित्यकार कितने फुर्सत में हैं और किस तरह से अपने नक्कारों (नाकारा नेताओं) के लिए बेशर्मी के साथ तूती बने हुए हैं। ये तमाम तरह की तूतियां दरअसल पैदा ही होती हैं पीं-पीं-पीं करने के लिए हैं। ये सुरीली नहीं होतीं लेकिन कर्कश होने की वजह से लोगों का ध्यान अपनी और खींचती जरूर हैं। कोशिश कीजिये कि आपके आस-पास ऐसी तूतियां बजे ही नहीं और यदि वे बजती हैं तो सावधान हो जाएं कि तूतियों की आवाज उनकी अपनी नहीं बल्कि उन नक्कारों की है जो दूर के ढोल की तरह सुहावने जरूर लगते हैं किन्तु होते नहीं हैं। इनके बजने का मतलब कोई न कोई आसन्न संकट होता है।