– राकेश अचल
सैफ अली खान एक अभिनेता हैं इसलिए उनकी हर गतिविधि क्या अभिनय होती है? ये सवाल हमने-आपने नहीं, बल्कि महाराष्ट्र के सियासतदानों ने उठाया है। सैफ पर हमला ही अब सियासी मुद्दा हो गया है। किसी को यकीन ही नहीं हो रहा कि जानलेवा हमले के बाद सैफ मात्र 3 दिन में तंदुरुस्त होकर अपने घर आ सकते हैं। क्योंकि आम आदमी तो कम से कम एक पखवाडे तक पलंग नहीं छोड सकता। आम आदमी में किसी अभिनेता जितनी कूबत ही नहीं होती।
मैं अक्सर कहता हूं कि हमारे मुल्क में सियासत मुद्दों पर नहीं होती, सियासत बेसिर-पैर की होती है। और जब होती है तो होती ही चली जाती है। सियासत का ये चरित्र बदलना आसान नहीं है। ये कलिकाल की नहीं मोदी युग की देन है और इसके लिए किसी एक को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। अभिनेता सैफ अली खान की अस्पताल से छुट्टी के बाद प्रदेश सरकार के एक मंत्री नितेश राणे ने सवाल उठाए हैं। उनका मानना है कि सैफ पर हमला संदिग्ध हो सकता है। राणे ने राजनीतिक नेताओं पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए हिन्दू कलाकारों की उपेक्षा की बात कही और बढते बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुद्दे पर चिंता जताई। अब ये राणे कौन से नेता हैं, ये बताने की जरूरत नहीं है।
सैफ के ऊपर सवाल खडे करने वाले राणे अकेले नहीं है। शिवसेना नेता संजय निरूपम ने एक बडा सवाल खडा किया है। उन्होंने हमले की घटना का जिक्र करते हुए इतनी जल्दी ठीक होने पर कहा कि सैफ को 16 जनवरी की घटना के बारे में बताना चाहिए। निरूपम भले ही दलबदलू किन्तु अनुभवी नेता हैं, इसलिए उन्होंने अपना सवाल बडी ही नजाकत के साथ किया है। निरूपम ने कहा कि 16 जनवरी को सैफ अली खान के साथ जो कुछ भी हुआ, वह बेहद चिंताजनक है। हम परिवार के साथ हैं। सैफ को अस्पताल से छुट्टी मिल गई है और बाहर वह ऐसे दिखे हैं, जैसे वह शूटिंग करने के लिए फिट हैं। यह देखना आश्चर्यजनक है। डॉक्टरों ने कहा था कि चाकू उनकी पीठ में 2.5 इंच तक घुस गया था, जिसके लिए छह घण्टे का ऑपरेशन करना पडा। चिकित्सकीय रूप से इतनी जल्दी ठीक होना कैसे संभव है?
भाजपा पहले ही सैफ पर हमले को अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बना चुकी है, क्योंकि महाराष्ट्र की पुलिस ने सैफ पर हमले के आरोप में जिस आरोपी को पकडा है वो संयोग से बांग्लादेशी है। भाजपा के लिए बांग्लादेशी घुसपैठिये चुनावी मुद्दा रहे हैं, ये बात और है कि केन्द्र में भाजपा की सरकार ने बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को बाकायदा सरकारी मेहमान बनाकर शरण दी हुई है। बांग्लादेश के लोग भी इससे हैरत में हैं और भारतीय जनता पार्टी के लोग भी, लेकिन भाजपा का कोई नेता अपने पंत प्रधान से हसीना के बारे में सवाल करे कैसे? भाजपा में तो सवाल करना ही राष्ट्रद्रोह माना जाता है, बल्कि यूं कहिये कि घोषित गैरजमानती अपराध है।
नेशनल कॉन्फ्रेंस के सदर और पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. फारुख अब्दुल्ला ने सैफ के जल्द ठीक होने पर तो कोई बात नहीं की, लेकिन उन्होंने सैफ के कथित हमलावर के बहाने पूरे बांग्लादेशियों को अपराधी माने जाने की निंदा की है। उनका कहना है कि किसी एक व्यक्ति की गलती का ठीकरा पूरे देश पर नहीं फोडा जा सकता। लेकिन डॉ. अब्दुल्ला की नसीहत भाजपा वाले या शिवसेना वाले क्यों मानने लगे? भाजपा और शिवसेना के नेता और कार्यकर्ता खुद अपने दिल की ही नहीं मानते। इन पार्टियों के नेताओं को न सैफ पर भरोसा है और न चिकित्सा विज्ञान पर। ये देह की जीवनशक्ति के बारे में भी कुछ नहीं जानते। ये लोग केवल और केवल हिन्दू और मुसलमान जानते हैं। इन सभी का काम इसी अल्प जानकारी से चल जाता है।
सैफ अली के माता-पिता से इस देश की आधी से अधिक आबादी का जुडाव है और ये जुडाव स्वाभाविक है, इस जुडाव की वजह हिन्दू-मुसलमान नहीं है। सैफ के पिता नबाब पटौदी एक बेहतरीन क्रिकेट खिलाडी थे और सैफ की मां शर्मिला टैगौर एक बेहतरीन अदाकारा। इस जोडी की अपनी-अपनी उपलब्धियां हैं, इसमें किसी राजनीतिक दल का कोई योगदान नहीं है। हम जिस पीढी से आते हैं उस पीढी के लिए नबाब पटौदी और शर्मिला टैगौर देश के लिए गर्व का विषय रहे हैं। इस जोडी ने यदि मोदीयुग में शादी की होती तो मरहूम नवाब साहब के खिलाफ लवजिहाद का मामला चल रहा होता। पटौदी और टैगोर की सनातन सैफ अली और उनकी पत्नी भी देश की एक पीढी में लोकप्रिय अभिनेता रहे हैं, इसलिए कम से कम आम आदमी तो सैफ की रिकवरी को लेकर कोई सवाल नहीं करना चाहेगा, लेकिन नेतागण नहीं मानने वाले। कहते हैं न- ‘कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना’।
भाजपा और शिवसेना के लोग इस बात से भी खुश हैं की सैफ के दिन अच्छे नहीं चल रहे हैं। सैफ के लिए एक और बुरी खबर और आई है। सैफ अली खान के पटौदी परिवार की 15 हजार करोड रुपऐ की संपत्ति सरकार शत्रु संपत्ति अधिनियम के तहत अपने नियंत्रण में ले सकती है। बता दें कि ये संपत्ति मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में स्थित है। दरअसल, मप्र हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला देते हुए 2015 में इन संपत्तियों पर लगाए गए रोक को हटा दिया है। कोर्ट के इस फैसले के बाद शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968 के तहत इन संपत्तियों के अधिग्रहण का रास्ता खुल गया है। ध्यान रखिये कि मप्र में भाजपा की सरकार है, जो हिन्दू-मुसलमान करने में माहिर है। जाहिर है कि प्रदेश की भाजपा सरकार का दिल इस घटना से बल्लियों उछल रहा होगा। भाजपा का बस चले तो वो देश के तमाम मुसलमानों की संपत्ति को शत्रु संपत्ति घोषित कर जब्त कर ले। लेकिन खुदा गंजों को नाखून नहीं देता। हमारे नेताओं को भगवान सदबुद्धि दे।
बहरहाल हम सियासत के लिए किसी के स्वास्थ्य को हथियार बनाए जाने के खिलाफ हैं। इस मामले में आप अपने मन से पूछिए, शायद सही जवाब मिल जाए। क्योंकि सच्चाई से साक्षात्कार कोई सियासी दल, कोई धर्म नहीं करा सकत। दिल ही सच का अहसास करा सकता है। खुदा हाफिज।