मतदाताओं को जूते-साडी का प्रसाद

– राकेश अचल


चुनावों में मतदाता को यदि कुछ मिलता है तो उसे प्रलोभन कहना पाप है, क्योंकि चुनावी मौसम में मतदाता के हिस्से में या तो प्रसाद आता है या फिर आंधी के आम। दिल्ली में पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ चुनाव लड रहे भाजपा प्रत्याशी प्रवेश वर्मा के खिलाफ पुलिस ने मतदाताओं को जूते और साडियां बांटने का मामला दर्ज किया है, मेरे हिसाब से ये अनुचित है। प्यार और जंग में ही नहीं, बल्कि चुनावों में सब कुछ जायज है। मतदाता सूचियों में कटर-ब्योंत तक।
प्रवेश वर्मा कोई फकीर नहीं बल्कि अमीर नेता हैं। उनके पिता साहब सिंह वर्मा भी नेता थे, लेकिन प्रवेश वर्मा अपने पिता से इतर अग्निमुखी हिन्दू नेता की छवि रखते हैं। वे अरविन्द केजरीवाल के खिलाफ ही नहीं, कांग्रेस के सुशील के खिलाफ भी चुनाव लड रहे हैं। उनके पास इतना पैसा है कि वे मतदाताओं को जूते और साडियां बांट सकते हैं। माघ मास में जबकि प्रयागराज में महाकुम्भ चल रहा है तब मतदाताओं के बीच दान-पुण्य करना कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन उनके प्रतिद्वंदी दिल जले हैं। चुनाव आयोग के पास पहुंच गए शिकायत लेकर और दायर करा दिया मुकदमा।
केजरीवाल के राज में ही प्रवेश वर्मा की आय चार साल में कई गुना बढ़ गई है। 2019 से लेकर 2020 में आयकर रिटर्न के मामले में प्रवेश वर्मा ने 92 लाख 94 हजार 980 रुपए आय बताई थी। जोकि अब 19 करोड 68 लाख 34 हजार 100 रुपए दर्ज की गई है। वहीं, प्रवेश वर्मा की पत्नी की भी आय बढ़ी है। पहले 5 लाख 35 हजार 570 रुपए थी, जोकि 2023-2024 में बढक़र 91 लाख 99 हजार 560 रुपए दर्ज की गई है। इसलिए प्रवेश को ये हक बनता है कि वे अपने मतदाताओं को जो चाहें सो दें, उनका हाथ पकडना पाप है। केजरीवाल और संदीप दीक्षित को किसने रोका है दान-पुण्य करने से? प्रवेश वर्मा ने चुनाव से पहले जूते, साडी, कंबल और पैसे बांटने के आरोपों को खारिज कर दिया। वर्मा ने कहा कि ये आरोप अरविंद केजरीवाल ने हार के डर से लगाए हैं।
प्रवेश वर्मा हालांकि दिल्ली को अपनी मां कहते हैं, लेकिन आम आदमी पार्टी उन्हें भाजपा की ओर से दिल्ली का दूल्हा कहती है। भाजपा पिछले दस साल से दिल्ली के लिए दूल्हे सजाकर लाती है किन्तु दिल्ली की जनता भाजपा की बारात बैरंग लौटा देती है, लेकिन इस बार भाजपा मप्र, राजस्थान, छग, हरियाणा और महाराष्ट्र जीतने के बाद हर सूरत में दिल्ली को अपना दूल्हा देने पर आमादा है और इसीलिए भाजपा जूतों और साडियों पर उत्तर आई है। भाजपा अभी और नीचे भी जा सकती है, क्योंकि भाजपा को गहरे पानी में उतर कर मोती बीनने की आदत पड चुकी है। प्रधानमंत्री मोदी के ताज में यही एक मोती लगना बांकी है।
कांग्रेस ने इस चुनाव में अपना दूल्हा पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के पुत्र संदीप दीक्षित को बनाया है। वे अपनी मां की पराजय का बदला लेना चाहते हैं। कोई उन्हें रोक नहीं सकता सिवाय दिल्ली की जनता के, मुमकिन है कि दीक्षित जी के पास मतदाताओं को देने के लिए जूतों और साडियों का प्रसाद न हो, इसलिए वे निराश नजर आ रहे हों, क्योंकि आम आदमी पार्टी के पास चूंकि सत्ता है इसलिए वो यदि मतदाताओं को केवल वादे ही बांट दे तो उसका काम चल जाएगा, लेकिन प्रवेश वर्मा और संदीप दीक्षित को तो जूते, साडी और शराब ही नहीं बल्कि पैसा भी बांटना पडेगा। मैं तो अक्सर सोचता हूं कि जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन कर जूते-चप्पल, साडी, शराब और पैसा बांटने को विधिक मान्यता मिलना चाहिए, क्योंकि इनके बिना चुनाव होता ही नहीं है।
बहरहाल दिल्ली विधानसभा के चुनाव पर पूरे देश-दुनिया की नजर लगी है, क्योंकि ये तीसरा और अंतिम अवसर है भाजपा और कांग्रेस के लिए भी। ये चुनाव भी यदि कांग्रेस और भाजपा नहीं जीत पाई तो जहां भाजपा का विश्वगुरु बनने का सपना टूट जाएगा, वहीं कांग्रेस के लिए भी दिल्ली अभेद्य हो जाएगी। दिल्ली जीते बिना न कांग्रेस का माथा ऊंचा हो सकता है और न भाजपा का। अब देखते हैं कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में मतदान से पहले कौन-कौन जूतों में दाल बांटता है और चुनाव आयोग कितनों के खिलाफ मामले दर्ज करने की औपचारिकता पूरी करता है। क्योंकि चुनाव आयोग और दिल्ली पुलिस में इतना साहस तो है नहीं कि वो मतदान से पहले प्रवेश वर्मा के खिलाफ अदालत में आरोप पत्र दाखिल कराकर उन्हें चुनाव लडने से रोक सके।