– राकेश अचल
प्रयागराज में चल रहे महाकुम्भ को देखकर मन में आता है कि जब देश में धर्म की रक्षा के लिए इतने साधू-संत, अखाडे और श्रृद्धालु मौजूद हैं तो इस देश में हिन्दू धर्म को खतरा कहां है? क्यों भारतीय जनता पार्टी और उस जैसे तमाम राजनीतिक और गैर राजनीतिक संगठनों ने धर्म की रक्षा के लिए अपने घोडे खोल रखे हैं। जैसा कुम्भ भारत में उपलब्ध है, वैसा तो दुनिया में कहीं और है नहीं।
दरअसल धर्म के खतरे में होने की बात कभी हिन्दू धर्म के लिए जीवन समर्पित करने वाले साधू-संतों की और से की ही नहीं गई। ये नारा तो नेताओं का नारा है और कुछ धर्माचार्य इस नारे का निनाद करने लगे, क्योंकि उन्हें इसी में अपना भविष्य नजर आने लगा। हिन्दुस्तान में अघोषित रूप से हिन्दुओं की संख्या सबसे ज्यादा है, फिर भी आजादी के बाद हिन्दुत्व की उदारता की वजह से भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित नहीं किया गया, जबकि 1947 में भी हिन्दू धर्म की ध्वजा उठाने वाले चारों शंकराचार्य और 13 अखाडे मौजूद थे। इन सभी ने देश की आजादी के लिए उतनी लडाई नहीं लडी जितनी सार्वजनिक जीवन में काम करने वाले दूसरे नेताओं ने लडी। महात्मा गांधी ने लडी, नेताजी सुभास चंद्र बोस ने लडी, भगत सिंह ने लडी। असंख्य भारतियों ने लडी। लेकिन किसी ने ‘धर्म खतरे में है’ का नारा न आजादी के पहले दिया और न आजादी के बाद दिया।
महाकुम्भ का नजारा देखकर मुझे कभी लगता ही नहीं कि भारत में हिन्दू धर्म को किसी से भी कोई खतरा है। हिन्दू धर्म की रक्षा करने के लिए अभी तक तो केवल शैव, वैष्णव और उदासीन अखाडे ही थे, लेकिन अब इनमें किन्नरों का अखाडा भी शामिल हो गया है, भले ही अभी इस नए अखाडे को अखाडा परिषद ने मान्यता नहीं दी है। इन अखाडे से जुडे असंख्य साधू-सन्यासी धर्म की रक्षा के लिए ही सांस ले रहे हैं। इनकी संख्या भारत की सशस्त्र सेना से ज्यादा है। लेकिन ये साधू समाज भी कभी किसी दूसरे धर्म के पूजाघर गिराने के लिए सामने नहीं आए। अयोध्या में बाबरी मस्जिद इन धूतों-अवधूतों ने नहीं, बल्कि भाजपा कार्यकर्ताओं और बजरंगियों ने गिराई थी।
हिन्दू धर्म के खतरे में होने की बात कम से कम मेरे तो गले नहीं उतरती, हिन्दू धर्म यदि इतने बडे फौज-फांटे के रहते हुए यदि खतरे में है तो इस धर्म के होने या न होने का कोई मतलब नहीं है। इस समय मैं प्रयागराज में नहीं होकर भी वहीं हूं। लगभग सभी टीवी चैनलों के जरिये बाबाओं के उदघोष सुन रहा हूं। पढ़े-लिखे और अनपढ़ सभी किस्म के बाबा कहते हैं कि वे तो विश्व कल्याण के लिए साधनारत हैं, लेकिन उनकी कठोर साधना का प्रतिफल विश्व को तो छोडिये भारत को ही नहीं मिल पा रहा है। इतने प्राचीन और विशाल धर्म के होते हुए भी इस देश में नफरत की आंधियां चल रही हैं। भय का वातावरण है।
हैरानी तो इस बात की होती है कि देश का ये विशाल साधक समुदाय हिन्दू धर्म के अपहृत होने के खिलाफ अपनी धर्म ध्वजाएं नहीं उठाता। कोई अखाडा किसी रजनीतिक दल से नहीं पूछता कि उनके रहते हिन्दू धर्म को खतरे में क्यों बताया जा रहा है? क्यों हिन्दुओं के नाम पर वोट मांगा जा रहा है। क्यों किसी ने अपने आपको हिन्दू धर्म का स्वयंभू ठेकदार घोषित कर रखा है? महाकुम्भ में आम आदमी भी आ रहा है और खास आदमी भी। आम आदमी के लिए यहां जितने इंतजाम हैं उससे कहीं ज्यादा और बेहतर इंतजाम खास आदमी के लिए हैं। अखाडों में भी देशी भक्तों की वजाय विदेशी भक्तों की पूछ-परख है। कोई यहां केवल पुण्य प्राप्ति के लिए आ रहा है तो कोई अपने घोषित और अघोषित पाप धोने के लिए। गंगा को मैला सभी कर रहे हैं। दुनिया में कौन सी ऐसी पुण्य सलिला है जो एक दिन में दो से ढाई करोड से ज्यादा आबादी का पाप धो दे?
महाकुम्भ को लेकर जितने सवाल मेरे मन में पैदा हो रहे हैं, उतने सवाल आपके मन में शायद पैदा न हों, क्योंकि आप इस महा आयोजन के प्रति केवल श्रृद्धा से भरे हैं। श्रृद्धा से मैं भी भरा हूं। किन्तु मैं प्रश्नाकुल हूं। हमारा मीडिया प्रश्नाकुल नहीं है। हमारा मीडिया, हमारी सरकार, हमारी जनता इस समय भाव-विभोर है। आल्हादित है। उसे महाकुम्भ के सामने इस समय न दिल्ली के षणयंत्र दिख रहे हैं और न किसानों का आंदोलन। उसे न डालर के मुकाबले भारतीय रुपए की कुगति दिख रही है और न भारत की सम्प्रभुता पर मंडराते खतरे। पूरा देश इस समय धर्म की हिलोरें ले रहा है। केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि अब तो बंगाल की सरकार भी धर्म का धंधा करने पर उत्तर आई है। बंगाल की सरकार ने महाकुम्भ के जबाब में गंगासागर स्नान के लिए दो-दो पेज के विज्ञापनों से देश के सभी भाषाओं के अखबार पाट दिए हैं। बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी को लगता है कि एक अकेले उत्तर प्रदेश के मुख्य्मंत्री योगी आदित्यनाथ धर्म के ठेकेदार क्यों बने रहें?
बहरहाल यदि आपको मेरी बात पर भरोसा है तो निश्चिन्त हो जाइये हिन्दू धर्म को लेकर। हिन्दू धर्म को देश में कोई खतरा नहीं है। खतरे में हैं तो केवल राजनीतिक दल और उनके नेता और ये ही देश के लिए सबसे बडे खतरा हैं। लेकिन मुश्किल ये है कि न आप नेताओं से बच सकते हैं और न नाग-धडंग बाबाओं से। बाबा जहां त्याग की प्रतिमूर्ति हैं, वहीं उनके महंत और महामण्डलेश्वर तथा नेता लूट-खसोट और भ्रष्टाचार की प्रतिमूर्ति। कुल मिलाकर हर-हर महादेव बोलिये और अपने ज्ञानचक्षु खोलिये।