बाल विवाह बच्चों के अधिकारों का हनन, सर्वोच्च न्यायालय का अहम फैसला

-सामाजिक संस्था धरती ने कृतज्ञता जाहिर की

भिण्ड, 19 अक्टूबर। देश की सर्वोच्च अदालत ने दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा कि बाल विवाह अपनी मर्जी से जीवनसाथी चुनने के अधिकार का हनन है। धरती संस्था ने कृतज्ञता जाहिर करते हुए कहा कि यह फैसला 2030 तक देश से बाल विवाह का खात्मा सुनिश्चित करेगा। बाल विवाह मुक्त भारत 200 से भी ज्यादा गैरसरकारी संगठनों का गठबंधन है, जिसने अकेले 2023-24 में पूरे देश में एक लाख 20 हजार से भी ज्यादा बाल विवाह रुकवाए और 50 हजार बाल विवाह मुक्त गांव बनाए हैं।
फैसले का स्वागत करते हुए धरती संस्था के निदेशक देवेन्द्र भदौरिया ने कहा कि यह हम सभी के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण फैसला है। राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन बाल विवाह के खात्मे के लिए जिसे जोश और संकल्प के साथ काम कर रहे हैं, वह सराहनीय है और यह फैसला हम सभी के साझा प्रयासों को और मजबूती देगा। बाल विवाह एक ऐसा अपराध है जिसने सारे देश को जकड रखा है और इसकी स्पष्ट व्याख्या के लिए सुप्रीम कोर्ट के आभारी हैं। भदौरिया ने कहा कि हम अश्वस्त हैं कि साथ मिलकर और साझा प्रयासों से हम 2030 तक इस अपराध का पूरी तरह खात्मा कर देंगे।
देश में बाल विवाह कानून पर एक ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के प्रभावी तरीके से कार्यान्वयन के लिए विस्तृत दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा कि बाल विवाह अपनी मर्जी से जीवनसाथी चुनने के अधिकार को छीनता है। ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ अभियान के सहयोगियों सोसाइटी फॉर एनलाइटेनमेंट एण्ड वालंटरी एक्शन (सेवा) और कार्यकर्ता निर्मल गोरानी की याचिका पर आए। इस फैसले का स्वागत करते हुए धरती संस्था भिण्ड ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से देश में बाल विवाह के खात्मे के प्रयासों को मजबूती मिलेगी और हम राज्य सरकार से अपील करते हैं कि वह इन दिशानिर्देशों पर तत्काल प्रभाव से अमल करे ताकि 2030 तक भारत को बाल विवाह मुक्त बनाने के लक्ष्य को हासिल किया जा सके। धरती संस्था देश के 200 से ज्यादा गैर सरकारी संगठनों के गठबंधन ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ (सीएमएफआई) अभियान का एक अहम सहयोगी है जो 2030 तक बाल विवाह के खात्मे के लिए 400 से ज्यादा जिलों में जमीनी अभियान चला रहे हैं। उक्त जानकारी जिला समन्वयक बच्चों की न्याय तक पहुंच भिण्ड अवनीश भदौरिया ने दी।