अब जनता के उपहास के सौ दिन

– राकेश अचल


देश में मोदी सरकार-3 ने अपने कार्यकाल के सौ दिन पूरे करने के साथ ही अपनी उपलब्धियों का ढिंढोरा पीटना शुरू कर दिया है, लेकिन दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार के बेलकीपर मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के इस्तीफे की घोषणा से ये उपलब्धियों का शोर न जाने कहां दब गया। अब देश में चरों तरफ उपलब्धियों का नहीं हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभाओं के चुनावों में हो रहे आरोप-प्रत्यारोपों का शोर ज्यादा तेज है।
बैशाखियों के सहारे 100 दिन सरकार चलने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी के लिए बधाई बनती है। मैं मोदी जी को उनकी इस कामयाबी के लिए बधाई देता हूं, हालांकि मेरी बधाई उनके किसी काम की नहीं है। उन्हें तो अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की बधाई चाहिए। जो अभी तक आई नहीं है। आस-पडोस के किसी देश से 100 दिन की सरकार के लिए बधाईयों का न आना उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना महत्वपूर्ण प्रधानमंत्री द्वारा झारखण्ड की जनता को झारखण्ड के तीन दुश्मनों के नाम गिनाना है।
जिस समय मोदी जी को अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाना था, उस समय वे हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और झारखण्ड में उलझे हैं और इन राज्यों में कांग्रेस, आरजेडी, झामुमो और नेशनल कॉन्फ्रेंस तथा दीगर विरोधी दलों की कमियां गिना रहे हैं, लेकिन मैं ऐसा नहीं हूं। मैं आपको बताऊंगा कि मोदी जी की सरकार ने 100 दिन में देश के लिए क्या किया और क्या नहीं किया। सरकार की और से दावा किया गया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने अपने तीसरे कार्यकाल के पहले 100 दिनों में तीन लाख करोड रुपए की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को मंजूरी दी है। सरकार ने कनेक्टिविटी को बढावा देने, आर्थिक विकास और रोजगार सृजन को सुविधा जनक बनाने के लिए बुनियादी ढांचे में 15 लाख करोड रुपए के निवेश की योजना बनाई है। पीएम मोदी ने 2047 तक देश को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए एक व्यापक योजना तैयार की है।
पिछले महीने के अंत में पीएम मोदी ने महाराष्ट्र के पालघर जिले में 76 हजार करोड रुपए की लागत वाली मेगा वधवन पोर्ट परियोजना और कई अन्य विकास परियोजनाओं की आधारशिला रखी, क्योंकि वहां विधानसभा कि चुनाव होना हैं। इसके पूरा होने पर इससे देश में 12 लाख नौकरियां और लगभग एक करोड अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर पैदा होने की उम्मीद है। भगवान करे कि ऐसा हो। मोदी जी तो सब कुछ करना चाहते हैं लेकिन उनकी योजनाओं पर काम करने वाली तमाम एजेंसियां सब गुड-गोबर कर देती हैं। वे हवाई अड्डे बनाती हैं तो टपकने लगते हैं। पुल बनाती हैं तो वे बह जाते हैं। सडकों में गड्ढे हो जाते हैं।
आपको मोदी सरकार के सौ दिन की उपलब्धियों के साथ ही सरकार की नाकामियों कि बारे में भी जानना चाहिए। सरकार को इन सौ दिन में संसद में और संसद के बाहर बार-बार मुंह की भी खाना पडी। सरकार वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक पारित नहीं करा पाई। सरकार को लैटरल एंट्री पर अपने कदम वापस लेने पडे, सरकार मीडिया से जुडे विधेयक पर भी पीछे हट गई। सरकार बंगाल और दिल्ली में सरकारों को नहीं हिला सकी। सरकार मणिपुर की आग नहीं बुझा पाई। लेकिन इस सबसे क्या? सरकार ने इन सौ दिनों में बैशाखियों पर चलना सीख लिया। मणिपुर जलता रहा लेकिन सरकार यूक्रेन को बचाने निकल पडी। बांग्लादेश में तख्ता पलट के बाद सरकार वहां कि हन्दू अल्पसंख्यकों के लिए सीना तानकर खडी नहीं हो पाई, लेकिन सरकार ने अमेरिका में राहुल के बयानों को लेकर मोर्चा जरूर लिया।
सौ दिन की सरकार के मुखिया झारखण्ड में चुनाव पूर्व की रैलियों में दावा कर रहे हैं कि झामुमो के लोग बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों के साथ खडे हैं। ये घुसपैठिए और कट्टरपंथी झामुमो को भी अपने कब्जे में लेते जा रहे हैं। इनके लोग झारखण्ड मुक्ति के भीतर भी घुस गए हैं। जानते हैं ऐसा क्यों हुआ? क्योंकि झामुमो में कांग्रेस का भूत घुस गया है, लेकिन मोदी जी के पास इस बात का कोई जबाब नहीं है कि उनकी सरकार तो बांग्लादेश की पूर्व मुख्यमंत्री शेख हसीना को ही अपना मेहमान बनाए बैठी है, जबकि उनके खिलाफ उनके अपने देश में हत्या जैसे जघन्य आरोपों के 58 मामले दर्ज हैं।
प्रधानमंत्री की सरकार के सौ दिन पर विपक्ष के सौ दिन भारी पडते नजर आ रहे हैं। प्रधानमंत्री जी की पार्टी हरियाणा में बगावत की आग से झुलस रही है। जम्मू-कश्मीर में भाजपा के लिए मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। बिहार में भाजपा गठबंधन की सरकार हिचकोले ले रही है। महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना (शिंदे गुट) को अल्पसंख्यक महिलाओं को बुर्के बांटना पड रहे हैं। बावजूद इसके देश की सरकार उपलब्धियों वाली सरकार है। देश के बुजुर्गों से रेल रियायतें छीनने वाली सरकार नई वंदे भारत रेलें चलाने में व्यस्त है, लेकिन उसे देश की अस्त-व्यस्त रेल सेवाओं की फिक्र नहीं है। बहरहाल अब देश की नजर मोदी जी के बजाय अरविन्द केजरीवाल, ममता बनर्जी पर है। केजरीवाल तो बेल मिलने के बाद इस्तीफा दे रहे हैं, लेकिन भाजपा के राजस्थान के मुख्यमंत्री को नैतिकता के तराजू पर नहीं तौला जा रहा, जबकि वे भी उमा भारती की तरह एक अदालत में आरोपी बनाए जा चुके हैं। बहरहाल तेल देखिए और तेल की धार देखिए। एक पखवाडे तक अपने पूर्वजों को पूजने और सियासत में उन्हें गरियाने का मौसम भी आ ही रहा है।