क्या देखा है ऐसा संत

– अशोक सोनी निडर –


कभी-कभी इतिहास एक सवाल पूछता है कि क्या आज भी इस दुनिया में ऐसा कोई है, जिसे मज़हब से ऊपर रखकर प्यार किया जाए? क्या किसी एक व्यक्ति के लिए मन्दिरों में घंटियां और मस्जिदों में दुआएं साथ-साथ उठ सकती हैं? क्या ऐसा संभव है कि एक संत को देखने भर से दिल की कठोरता पिघल जाए? यह प्रश्न किताबों में नहीं, हमारे सामने जिंदा उदाहरण बनकर खड़ा है- प्रेमानंद जी महाराज। आज जब उनकी सेहत की ख़बरें आती हैं तो पूरा देश बेचैन हो उठता है। अजीब दृश्य है- हिन्दू जप कर रहे हैं, मुसलमान दुआ कर रहे हैं, सिख अरदास कर रहे हैं, ईसाई प्रेयर्स कर रहे हैं। हर तर$फ एक ही भावना है कि महाराज ठीक हो जाएं। यह सिर्फ किसी धार्मिक व्यक्ति के लिए चिंता नहीं है, यह उस प्रेम के लिए प्रार्थना है जिसने हम सबको एक डोर में बांध दिया है।
यह समझना आसान नहीं कि आखिर एक साधु ऐसा क्या कह देता है कि लोग अपने-अपने मज़हब की लकीरें मिटाकर उसके लिए दिल से दुआ करने लगते हैं। क्या प्रेमानंद महाराज ने कोई अलौकिक चमत्कार दिखाया? क्या उन्होंने दर्शनशास्त्र की जटिल परिभाषाएं खोलकर रख दीं? क्या उन्होंने विज्ञान के रहस्यों को सुलझाया या कोई आंधी मचा देने वाले प्रवचन दिए? नहीं। उनका संदेश जितना साधारण है, उतना ही गहरा- ‘प्रेम करो।’ उन्होंने प्रेम को सिर्फ शब्द नहीं रहने दिया, उसे व्यवहार बना दिया। जब दुनिया कटुता से भरी थी, उन्होंने कहा ‘राधे-राधे बोलो, दिल को करुणामयी रखो, खुद को सुधारो।’ जब लोग दूसरों को कोसते है, महाराज कहते ‘पहले अपने मन को देखो।’ यही सीधी-सादी बातें दिल के सबसे गहरे कोने में उतर गईं।
उन्होंने धर्म को विभाजन का साधन नहीं, सदभाव का मार्ग बनाया। त्याग, संयम, सहनशीलता, करुणा ये उनके प्रवचनों के शब्द नहीं, यह उनका जीवन है। वह मंच से नहीं, उदाहरण से सिखाते। उन्होंने कहा कि प्रेम ही सबसे बड़ा धर्म है।” समलैंगिकता जैसे विवादित विषय पर भी उन्होंने साहसपूर्वक, संवेदनशीलता के साथ कहा कि हर किसी की प्रकृति का सम्मान करो। महिलाओं पर प्रश्न आए तो वह परंपरा का पालन करते हुए भी सम्मान को सर्वोपरि रखते थे। उनके विचारों से सब सहमत हों यह ज़रूरी नहीं, मगर उनकी नीयत पर किसी को शक नहीं।
लेकिन यह मानना भी गलत होगा कि प्रेमानंद महाराज हमेशा विवादों से दूर रहे। कुछ बड़े संतों और कथावाचकों के साथ उनके वैचारिक मतभेद हुए। वजह यह नहीं कि वह किसी से प्रतिस्पर्धा में नहीं, बल्कि यह कि उन्होंने धर्म को बाज़ार बनने से रोकने की कोशिश की। उन्होंने आडंबरों, चंदे की राजनीति और दिखावटी भक्ति पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि धर्म कहानी सुनाने का माध्यम नहीं, चरित्र बनाने का मार्ग है। उनकी साफगोई से कई प्रभावशाली कथावाचक असहज हो उठे। कुछ ने आरोप लगाए कि वह परंपराओं को तोड़ रहे हैं या स्वयं को ऊंचा दिखा रहे हैं। कई बार यह बहस सार्वजनिक मंचों तक पहुंच गई। लेकिन प्रेमानंद महाराज ने कभी कटु भाषा का प्रयोग नहीं किया, बस एक ही बात दोहराई जहां धर्म बांटे, वह धर्म नहीं। जहां प्रेम जोड़े, वही सच्चा मार्ग है।
सच यह है कि जिनके पास सच्चाई की आवाज होती है, वे कभी-कभी विवादों में घिर जाते हैं। क्योंकि जो आइना दिखाता है, उससे सबको अपने चेहरे साफ-साफ दिखाई देने लगते हैं। प्रेमानंद महाराज ने किसी को नीचा नहीं दिखाया, बस ऊंचा उठने की राह सुझाई। उनकी बात लोगों को इसलिए लगी क्योंकि वह किताब की नहीं, दिल की भाषा बोलते थे। यही वजह है कि जहां बड़े-बड़े नाम केवल भक्तों की भीड़ इकट्ठी कर पाते हैं, प्रेमानंद महाराज ने दिल इकट्ठे किए।
आज जब उनका स्वास्थ्य चिंता का विषय है, तो यह सिर्फ किसी एक संत की चिंता नहीं है। यह उस भाव की चिंता है जो टूटते समाज में अभी भी लोगों को जोड़ता है। यह प्रार्थना किसी व्यक्ति के जीवन के लिए नहीं, बल्कि एक विचार की निरंतरता के लिए है। क्योंकि इस देश को केवल बुद्धि नहीं, संवेदना चाहिए। यह मिट्टी तलवारों की धार से नहीं, प्रेम की नमी से उपजाऊ होती है।
हो सकता है कि हममें से कुछ लोग उनकी हर बात से सहमत न हों, यह स्वाभाविक भी है। प्रश्न उठाना भी जरूरी है। लेकिन यह भी सच है कि शायद ही कोई ऐसा होगा, जिसके दिल में उनके प्रति घृणा हो। उनके जीवन में कमियां हो सकती हैं, पर अच्छाइयां बहुत ज्यादा हैं। सबसे बड़ी बात उन्होंने कभी किसी को तोड़ा नहीं, हमेशा जोड़ा। न जाति देखी, न मजहब। उन्होंने हर इंसान के भीतर छिपे प्रेम को जगाने की कोशिश की।
आज उनके लिए उठती हुई प्रार्थनाएं एक संदेश दे रही हैं। यह दुनिया अभी पूरी तरह बंजर नहीं हुई है। अभी भी प्रेम की फसल उग सकती है। एक संत ने सत्य बोला, दुनिया ने उसकी प्रतिमा संसद भवन में लगा दी। एक संत प्रेम बोल रहा है, दुनिया उसे दिलों में जगह दे रही है। साधारण-सी लगने वाली बातें असाधारण तब बनती हैं जब कोई उन्हें जीकर दिखाए। प्रेमानंद महाराज ने यह करके दिखाया।
वह सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, वह एक स्मरण हैं कि प्रेम पुराना नहीं पड़ता। सत्य बोला जाए तो समय उसे अमर कर देता है। और प्रेम जिया जाए तो पीढ़ियां उसे अपने भीतर संजो लेती हैं। प्रेमानंद महाराज की जरूरत अभी खत्म नहीं हुई। य$कीन है कि उनकी सीधी, सच्ची, सादी बातें अभी भी रास्ता रोशन करती रहेंगी। क्योंकि अंतत: रास्ता कोई भी हो, मंजिल एक ही है प्रेम, और जिसमें सच्चा प्रेम होगा, वह सबका प्रेम पाएगा।