यूक्रेन को नहीं, मणिपुर को मोदी की जरूरत

– राकेश अचल


रूस और यूक्रेन की जंग को छोडिए मोदी जी। आपकी जरूरत यूक्रेन से ज्यादा मणिपुर को है। आप अगर शांतिदूत बनना ही चाहते हैं तो यूक्रेन नहीं मणिपुर का दौरा कीजिए। मणिपुर में डेरा डालिए, अन्यथा मणियों का पुर मणिपुर का वजूद ही किसी दिन समाप्त हो जाएगा। ये बात मैं एक मणिपुरी होने के नाते नहीं बल्कि एक भारतीय के नाते कर रहा हूं, आपको कम से कम अब तो मणिपुर का आत्र्तनाद सुन लेना चाहिए। मणिपुर का रुदन अब दूर-दूर तक सुनाई दे रहा है।
भारत के पूर्वोत्तर का खूबसूरत मणिपुर पिछले 16 महीने से लगातार जल रहा है। मणिपुर जब जलना शुरू हुआ था, तब भी देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी थे और आज भी वे ही प्रधानमंत्री हैं। वे तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद रूस, यूक्रेन, पोलेंड, सिंगापुर और न जाने किन-किन देशों की यात्रा कर आए लेकिन मणिपुर जाने के लिए उनके पास न समय है और न वे मणिपुर जाने की जरूरत समझते हैं। जबकि मणिपुर में स्थिति यूक्रेन से भी भयावह है। मणिपुर में हालात की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वहां हिंसा में शामिल दोनों समुदायों के पास अब ऐसे हथियार हैं जिनका इस्तेमाल आमतौर पर युद्ध में किया जाता है। सेना इस कदर मजबूर है कि उन्हें एंटी ड्रोन सिस्टम तैनात करने पडे हैं। पहाडों और घाटियों में लोगों ने बंकर बना रखे हैं।
मणिपुर जल रहा है इसके लिए किसी विदेशी एजेंसी की रपट की जरूरत नहीं है, लेकिन केन्द्र समाधिस्थ होकर पिछले डेढ साल से बैठा हुआ है। लगता है जैसे मणिपुर भारत की नहीं बल्कि किसी दूसरे देश की समस्या है। मणिपुर की राजधानी इंफाल में सोमवार को सैकडों की संख्या में प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने राजभवन पर पत्थरबाजी की। इस दौरान सुरक्षाकर्मी भागते दिखे। पुलिस और सुरक्षाबलों ने प्रदर्शनकारियों को बैरिकेड लगाकर रोका। कई राउण्ड आंसू गैस के गोले और रबर बुलेट दागे। इसमें 20 छात्र घायल हो गए। मैतेई समुदाय के ये छात्र मणिपुर में अचानक बढी हिंसक घटनाओं को लेकर आठ सितंबर से प्रदर्शन कर रहे हैं। इसमें स्थानीय लोग भी शामिल हैं। रविवार को किशमपट के टिडिम रोड पर तीन किमी तक मार्च के बाद प्रदर्शनकारी राजभवन और मुख्यमंत्री आवास तक पहुंच गए। ये गवर्नर और मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपना चाहते थे।
मणिपुर में तीन मई 2023 से हिंसा का दौर शुरू हुआ था। लेकिन 16 महीने बाद भी राज्य में शांति बहाल नहीं हुई। ताजा मामला जिरीबाम जिले का है, जहां शनिवार को हुई ताजा हिंसा में पांच लोगों की मौत हो गई। मणिपुर में हालात की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वहां हिंसा में शामिल दोनों समुदायों के पास अब ऐसे हथियार हैं जिनका इस्तेमाल आमतौर पर युद्ध में किया जाता है। सेना इस कदर मजबूर है कि उन्हें एंटी ड्रोन सिस्टम तैनात करने पडे हैं। पहाडों और घाटियों में लोगों ने बंकर बना रखे हैं। ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर 16 महीने बाद भी इस राज्य में हिंसा क्यों नहीं थम रही?
मणिपुर को भारत में शामिल हुए 15 अक्टूबर 2024 को पूरे 75 साल हो जाएंगे, लेकिन दुर्भाग्य ये है कि मणिपुर को भारत सम्हाल नहीं पा रहा है। वहां न सरकार को बर्खास्त किया जा रहा है और न राष्ट्रपति शासन लगाया जा रहा है, क्योंकि मणिपुर में सरकार ममता बनर्जी की नहीं है। किसी मेहबूबा मुफ्ती की नहीं है, हेमंत सोरेन की नहीं है। मणिपुर में सरकार भाजपा की है। एन वीरेन सिंह की है। वीरेन भाई भाजपाई हैं और भाजपा में होने का मतलब है कि उनके तमाम खून माफ किए जा चुके हैं। मणिपुर के राज्यपाल एलए गणेशन हैं। दोनों डेढ साल से मणिपुर को जलते देख रहे हैं, लेकिन उन्हें कुछ दिखाई नहीं दे रहा। कांग्रेस ने भी मणिपुर के मुद्दे से लगता है अब अपने हाथ खींच लए हैं। पहले तो राहुल गांधी दो बार मणिपुर गए भी लेकिन अब वे भी मणिपुर पर कम ही बोल रहे हैं।
दुनिया भले ही मणिपुर के हालात को लेकर फिक्रमंद हो, लेकिन हम और हमारी सरकार को मणिपुर की नहीं, यूक्रेन की फिक्र है। मणिपुर में अब हवाई बमबारी, आरपीजी और अत्याधुनिक हथियारों के लिए ड्रोन के इस्तेमाल के बाद हालात और खराब हो गए हैं। ताजा हमले के बाद तलाशी में पुलिस को 7.62 मिमी मिमी स्नाइपर राइफल, पिस्तौल, इम्प्रोवाइज्ड लॉन्ग रेंज मोर्टार (पोम्पी), इम्प्रोवाइज्ड शॉर्ट रेंज मोर्टार, ग्रेनेड, हैंड ग्रेनेड समेत तमाम आधुनिक हथियार मिले। वहीं, मणिपुर अखण्डता पर समन्वय समिति ने एक कडा अल्टीमेटम जारी किया है, जिसमें मणिपुर में चल रहे संकट को हल करने के लिए भारतीय सशस्त्र बलों से तत्काल और निर्णायक कार्रवाई की मांग की गई है।
आजाद भारत में नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं जो मणिपुर जाने से लगातार कतरा रहे हैं। उनके गृहमंत्री अमित राजसी (शाह) मणिपुर को छोडकर पहले आम चुनाव में उलझे रहे और अब जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के चुनाव में उलझे हैं। हमारी सरकार के सुरक्षा सलाहकार को भी मणिपुर नहीं भेजा जाता। उन्हें रूस भेजा जाता है। जलते हुए मणिपुर ने पता नहीं कौनसा पाप किया है जिसकी सजा केन्द्र की सरकार से उसे दी जा रही है। मणिपुर की घटनाओं को लेकर केवल सरकार ही नहीं हमारी न्यायप्रणाली भी सो रही है। हमारा शीर्ष न्यायालय कोलकाता में एक हत्या और बलात्कार की वारदात को लेकर जितना जागरुक और सक्रिय है उतना ही मणिपुर को लेकर शांत और स्थितिप्रज्ञ है। उसे मणिपुर में रोज हो रही हत्याएं, बलात्कार नजर ही नहीं आ रहे। मणिपुर उच्च न्यायालय को दखल देने की फुर्सत नहीं है।
देश को ये जानने का पूरा अधिकार है कि आखिर मणिपुर को क्यों अनाथ छोड दिया गया है? आखिर हमारे प्रधानमंत्री मणिपुर क्यों नहीं जाना चाहते? आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी है जो मणिपुर को लेकर सरक्कार के हाथ बंधे हुए हैं? मणिपुर में हालात जम्मू-कश्मीर से भी ज्यादा खतरनाक हैं। स्व. हीराबेन मोदी के बेटे नरेन्द्र मोदी को मणिपुर से क्या चिढ है इसकी जांच के लिए अब तो आयोग बनाने की जरूरत है। क्योंकि मोदीजी न संसद में ये रहस्योदघाटन करते हैं और न सडक पर। मुझे उम्मीद है कि मोदी जी आने वाले 17 सितंबर को अपने जन्मदिन पर मणिपुर के जख्मों पर मरहम जरूर लगाएंगे। आखिर मोदी जी हैं तो मणिपुर के भी प्रधानमंत्री। मणिपुर आखिर मोदीजी से पहले से देश का हिस्सा है।