हमने भी देखा है जमाना जनसंघ का

– राकेश अचल


भारतीय जनता पार्टी की तारीफ करना पडेगी कि इस पार्टी में किसी को आजीवन सदस्यता नहीं दी जाती। भाजपा में हर छह साल बाद सदस्यता का नवीनीकरण करना पडता है। देश के प्रधानमंत्री बने नरेन्द्र दामोदर दास मोदी भी इसका अपवाद नहीं है। उन्होंने भी पार्टी के सदस्यता अभियान का श्रीगणेश करते हुए अपनी सदस्यता का नवीनीकरण कराया। प्रधानमंत्री जी ने इसी बहाने स्मृतियों को दशकों पीछे ले जाकर जनसंघ के जमाने में खडा कर दिया। हां पार्टी में प्रधानमंत्री पद पर रहने के लिए कोई विधान नहीं है।
प्रधानमंत्री ने जनसंघ के जमाने का एक किस्सा सुनाया। उन्होंने कहा कि मैं जब राजनीति में नहीं था, उस जनसंघ के जमाने में हम बडे उत्साह से जनसंघ के निशान दीपक को पेंट करते थे, तब कई राजनीतिक दलों के नेता हमारा मजाक उडाते थे। वो कहा करते थे कि दीवारों पर दीपक पेंट करने से सत्ता के गलियारों तक नहीं पहुंचा जा सकता है। यकीनन ये वो जमाना था जब भाजपा का नाम जनसंघ हुआ करता था। उस समय जनसंघ में मोदी जी जैसे नेता नहीं थे। उस समय डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी, बलराज मधोक और पं. दीनदयाल उपाध्याय हुआ करते थे। जनसंघ का चुनाव चिन्ह दीपक था। दीपक यानि चिराग। अलादीन के इस चिराग के जरिये जनसंघ ने 1952 में लोकसभा की तीन सीटें जीती थीं।
जनसंघ मुझसे उम्र में आठ साल बडा था, अर्थात उसका जन्म 1951 में हुआ था। जनसंघ की युवावस्था में ही 24 साल की उम्र में गाथा समाप्त हो गई। उसका पुनर्जन्म 1980 में भाजपा के रूप में हुआ। भाजपा ने अपना राजनीतिक सफर लोकसभा की दो सीटें जीतकर 1985 में शुरू किया था। जनसंघ का जमाना कहें या इन्दिरा युग, तब चुनाव में न नेताओं के पास ट्रांसपोंडर था, न मंहगी कारें, न हेलीकॉप्टर और न फ्लैक्स के बडे-बडे बैनर। हर पार्टी सस्ते कागज पर छपे हैण्ड बिल्स और टीन पर छपे पार्टी के चुनाव सिंह वाले बिल्ले बांटकर चुनाव प्रचार करती थी। बाद में प्लास्टिक के बिल्ले भी चलन में आए। बच्चे चुनाव प्रचार के लिए आने वाली जीपों के पीछे हुजूम बनाकर दौडते और हैंडबिल्स तथा बिल्ले इकट्ठे करते थे। बच्चों को मतलब नहीं था कि बिल्ला किस पार्टी का है। बस एक ही होड थी कि किसकी कमीज पर कितने ज्यादा बिल्ले टंगे हुए हैं। हमने भी खूब बिल्ले लूटे और जमा किए।
तब कांग्रेस का नारा होता था- ‘इस दीपक में तेल नहीं, सरकार बदलना खेल नहीं’ और जनसंघ का लोकप्रिय नारा होता था- ‘इन्दिरा हटाओ, देश बचाओ’। जनसंघ तीन से लेकर 35 सीटों तक पहुंचा, किन्तु उसके जीवन में इन्दिरा नहीं हटीं। वे तब हटीं जब जनसंघ जनता पार्टी में विलीन हो गया, यानि 1977 में। जनसंघ जनता पार्टी में ज्यादा दिन नहीं रह पाया। फलस्वरूप ढाई साल में ही जनता पार्टी की सरकार गिर गई और छह अप्रैल 1980 को जनसंघ भाजपा के रूप में पुनर्जन्म लेकर सामने आया। भाजपा को सत्ता का स्वाद चखने के लिए जनसंघ जैसा इंतजार नहीं करना पडा। जनसंघ तो सत्ता का स्वाद चखे बिना ही कालकलवित हो गया था। भाजपा अपने जन्म के 16वे साल में 1996 में अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में सत्ता में आ गई, लेकिन भाजपा को पूरे पांच साल काम करने का मौका केवल एक बार मिला। 2014 में पहली बार भाजपा का और उसके पूर्वज जनसंघ का सपना पूरी तरह साकार हुआ, जब नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई और 2024 में बहुमत से दूर रहकर भी सत्ता में है।
बात जनसंघ के जमाने की और आज के जमाने की है। आज के जमाने की भाजपा कल के जनसंघ के मुकाबले बहुत बदल गई है। जनसंघ की राजनीति में वो सब कुछ था जो आज की भाजपा में है छोड नृशंसता के, अदावत के। जनसंघ के नेताओं ने नेहरू-इन्दिरा का जमकर विरोध किया, लेकिन कभी किसी से अदावत नहीं पाली। आज भाजपा के पास अदावत के अलावा कुछ बचा ही नहीं है। सत्ता है लेकिन सदभाव नहीं है, समरसता नहीं है। देश की 20 करोड से ज्यादा आबादी को भाजपा भारतीय मानने के लिए तैयार नहीं है। भाजपा का कार्यकर्ता जनसंघ के कार्यकर्ता की तरह जमीन पर नहीं चलता। भाजपा जब से केन्द्र और राज्यों की सत्ता में आई है पार्टी कार्यकर्ताओं का कायाकल्प हो गया है। वे कांग्रेस कार्यकर्ताओं की तरह पंचतारा संस्कृति में जीने के आदी हो गए हैं और इसकी वजह से पार्टी कांग्रेस की ही तरह भ्रष्टाचार के दलदल में आकंठ फंस चुकी है।
अच्छी बात ये है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पार्टी के सदस्यता अभियान को आंकडों का खेल नहीं बल्कि यह वैचारिक और भावनात्मक आंदोलन मानते हैं। वे मानते हैं कि यह सदस्यता अभियान सिर्फ एक रस्म नहीं है, यह हमारे परिवार का विस्तार है, यह संख्याओं का खेल नहीं है। उन्होंने कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पडता कि हम कितने नंबर हासिल करते हैं। यह सदस्यता अभियान देश को मजबूत बनाने और सामथ्र्य बढाने का अभियान है। आपको बता दें कि भाजपा के सदस्यता अभियान का लक्ष्य दस करोड सदस्य बनाने का है। पार्टी का विश्वास है कि यह अभियान पिछले सभी रिकार्ड तोडेगा। वैसे 140 करोड की आबादी वाले इस देश में ये लक्ष्य कोई बडा लक्ष्य नहीं है। हमारी शुभकामनाएं हैं कि भाजपा कम से कम 85 करोड सदस्य तो बना ही ले, क्योंकि इतने लोग तो पिछले तीन-चार साल से सरकारी रोटी खा ही रहे हैं। भाजपा ने भले ही 25 करोड लोगों को गरीबी रेखा से बाहर निकलने का दावा किया है, लेकिन इन 85 करोड लोगों को जहां रखा था, वहां से आगे नहीं जाने दिया। उनके पास न रोजगार है, न घर है, न दवा है, अगर कुछ है तो पांच किलो मुफ्त का अनाज है।