धधकते मणिपुर के बाद धंसकता हिमाचल

– राकेश अचल


आपदाएं कहकर नहीं आतीं, लेकिन हकीकत ये है कि आपदाओं को आदमी खुद आमंत्रित करता है। पिछले दो महीने में हिमाचल और उत्तराखण्ड में जिस तेजी से पर्वत श्रंखलाएं खिसकी हैं, उनसे पहाडों की गोद में रहने वाली आबादी दहल गई है। जितने लोग मणिपुर में तीन महीने से ज्यादा हिंसा की आग में जले मणिपुर में नहीं मारे गए, उससे दो गुना ज्यादा लोग हिमाचल और उत्तराखण्ड में अपनी जान गवां चुके हैं। खूबसूरत हिमाचल तो मिट्टी के ढेर में तब्दील होता जा रहा है। पूरे राज्य को आपदाग्रस्त घोषित कर दिया गया है।
चुनावी बुखार में डूबे देश को न मणिपुर की फिक्र थी और न हिमाचल की फिक्र है। मणिपुर के बाद हिमाचल और उत्तराखण्ड भगवान के भरोसे है। हिमाचल में 10 हजार करोड रुपए से ज्यादा की संपत्ति का नुक्सान होने के साथ ही बीते दो महीने में 335 लोग अपनी जान गवां चुके हैं। सरकार प्राकृतिक आपदा के सामने असाहय है। विपदा की इस घडी में छत्तीसगढ ने हिमाचल को 11 करोड रुपए की तात्कालिक सहायता देने का ऐलान किया है। ये मानवीय संवेदना के साथ ही राजनीतिक सदभावना भी है। हिमाचल में सिंगल इंजन की कांग्रेस सरकार है। इसलिए वहां केन्द्र से अपेक्षित मदद अभी नहीं पहुंची है।
पहाडों में बरसात के दिनों में भूस्खलन एक आम बात है, लेकिन जिस तरह से इस बार हिमाचल में पहाड खिसके हैं उसे देखकर खौफ पैदा हो गया है। हिमाचल प्रदेश में पिछले एक हफ्ते से भारी बारिश जारी है। हार कर राज्य सरकार को पूरा राज्य आपदाग्रस्त घोषित करना पडा। हिमाचल में आपदा अपने आप नहीं आई, इंसान ने इसे खुद न्यौता दिया है। विकास के नाम पर पूरे हिमाचल को खोद दिया गया है। पूरे हिमाचल में अवैज्ञानिक निर्माण के लिए पहाडों को सीधा काटा गया, फलस्वरूप इसमें चट्टानों की नींव भी कट गईं और पानी रोक गया। अब ढलान खत्म होने से पानी बह नहीं रहा, सीधे पहाडों में बैठ रहा। पानी के बहाव वाले रास्तों पर पर अतिक्रमण-पानी के बहाव पर बस्तियां बस गईं, निकासी का रास्ता बंद हो गया। आपको शायद यकीन न हो लेकिन हकीकत ये है कि हिमाचल में 68 सुरंगें बन रही हैं। इनमें 11 बन चुकी हैं, 27 निर्माणाधीन हैं और 30 विस्तृत परियोजना की रिपोर्ट तैयार हो रही हैं। इनमें कई परियोजनाएं केन्द्र की हैं। इससे राज्य में भूस्खलन के जोखिम वाले क्षेत्र लगातार बढ रहे है। उपलब्ध आंकडे बताते हैं कि हिमाचल में भूस्खलन संभावित क्षेत्र बढकर 17 हजार 120 हो गए हैं। इनमें भी 675 के किनारे तो बाकायदा आबादी हैं। शिमला में कई सरकारी भवन भूस्खलन के खतरे की जद में आ चुके हैं।
हिमाचल की आपदा केवल हिमाचल की आपदा नहीं है, बल्कि इसकी वजह से सीमावर्ती पंजाब में भी तकलीफें बढी हैं। हिमाचल में हुई बारिश से पंजाब के सात जिले बाढ की चपेट में है। इनमें होशियारपुर, रोपड, तरनतारन, कपूरथला, अमृतसर, फिरोजपुर और गुरदासपुर बाढ की चपेट में हैं, जिनमें से गुरदासपुर की हालत सबसे अधिक नाजुक बनी हुई है। इन हालातों के बीच राहत की खबर सामने आई हैं। हिमाचल की आपदा का अनुमान आप घर बैठे नहीं लगा सकते। इस बार की बरसात ने आधे से अधिक हिमाचल को शरणार्थी शिविरों में बदल दिया है। राज्य में पेयजल, विद्युत आपूर्ति व्यवस्था व सडकों सहित अन्य संसाधनों को भी भारी क्षति पहुंची है। अभी तक राज्य में 12 हजार से अधिक घर क्षतिग्रस्त हुए हैं, प्रदेश में कृषि और बागवानी को भी भारी नुकसान हुआ है। राज्य में संचार व्यवस्था पर भी प्रतिकूल प्रभाव पडा है। प्रदेश में जन-जीवन अस्तव्यस्त हुआ है और व्यावसायिक गतिविधियां भी आपदा से अछूती नहीं रही हैं। प्रदेश के कई क्षेत्रों में लोगों को राहत शिविरों में शरण लेनी पडी है। खतरे के दृष्टिगत बहुत से लोगों को उनके घरों से सुरक्षित निकालकर दूसरे स्थानों पर स्थापित करना पडा है।
दुर्भाग्य की बात ये है कि मणिपुर की तरह यहां भी राजनीति हो रही है। जैसे मणिपुर कि मामले में केन्द्र सरकार गुड खाकर बैठी थी, वैसे ही हिमाचल की आपदा केन्द्र को नजर नहीं आ रही है। प्रदेश में इतनी बडी आपदा आई है, लेकिन चारों सांसद आपदा में भी राजनीति कर रहे हैं। संसद के सत्र में प्रदेश के सांसदों ने सदन में सरकार से एक सवाल तक नहीं पूछा कि राज्य को राहत राशि कब और कितनी दी जा रही है। हिमाचल में चार में से तीन संसद भाजपा के हैं, लेकिन राज्य में सरकार कांग्रेस की है। चारों सांसदों में से एक भी सांसद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात तक करने नहीं गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा खुद मदद करने के लिए आगे नहीं आए। राज्य के मुख्यमंत्री सुखविन्द्र सिंह सुक्खू का आरोप है कि चारों सांसद सिर्फ सत्ता सुख भोग रहे हैं। जिन लोगों ने उन्हें चुना उनकी कोई परवाह नहीं है।
बारिश और भूस्खलन से जान-माल का नुकसान जारी है। उत्तराखण्ड में 15 जून से 28 अगस्त तक बारिश और भूस्खलन के चलते कम से कम 39 लोगों की जान गई है। सवाल ये है कि क्या प्राकृतिक आपदाओं के समय भी राजनीति की जाना चाहिए? क्या प्रधानमंत्री और किसी दूसरे केन्द्रीय मंत्री के पास इतनी फुर्सत नहीं है कि वे आपदा ग्रस्त हिमाचल का दौरा कर पीडितों को ढांढस बंधा सकें। राजनीति का इतना हृदयहीन होना घातक है। देश को इस तरह की घटिया मानसिकता से बाहर निकलना चाहिए। क्या ही बेहतर होता कि हमारे प्रधानमंत्री और गृहमंत्री अपने तमाम चुनावी कार्यक्रमों को छोडकर हिमाचल की पीडित जनता कि साथ खडे होते! गनीमत है कि हिमाचल की सहायता कि लिए अनेक राज्य सरकारें आगे आई हैं। इनमें हरियाणा की भाजपा सरकार भी शामिल है। पहाडी राज्य को संकट से उभारने के लिए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने हिमाचल प्रदेश में पीडित लोगों की मदद के लिए 15 करोड रुपए की राशि देने की घोषणा की है। इससे पहले छत्तीसगढ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल 11 करोड और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर पांच करोड रुपए की सहायता राशि भेज चुके हैं।
आपको याद होगा कि चुनाव के समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हिमाचल को अपना दूसरा घर बताते नहीं थकते थे। लेकिन आज उनका दूसरा घर सबसे बड़े संकट से गुजर रहा है। लेकिन अभी तक केन्द्र ने राज्य की सहायता की घोषणा नहीं की है। कोई नहीं जानता कि केन्द्र से वित्तीय सहायता कब मिलेगी? अगर यह सहायता छह महीने के बाद आएगी तो इसका वह महत्व नहीं रह जाएगा। प्रदेश में भाजपा में नेतृत्व या वर्चस्व की लडाई हो सकती है। उनके लिए 2024 के लिए माहौल बनाने की बात हो सकती है, लेकिन सभी की प्राथमिकता पीडितों लोगों की मदद करने की होना चाहिए।