– राकेश अचल
बॉलीवुड के ही-मैन कहे जाने वाले धर्मेन्द्र का 89 साल की उम्र में निधन हो गया। मैं जब 10 साल का था तब मैंने उनकी पहली फिल्म सत्यकाम 1969 में देखी थी। उस फिल्म वे ही-मैन नहीं, बल्कि एक आदर्शवादी नौजवान बने रहे, वे ही-मैन तो बहुत बाद में बने। उनके निधन की खबर से पूरे देश में, फिल्म इंडस्ट्री में शोक की लहर दौड़ गई है। धर्मेन्द्र को सोमवार को उन्हें सांस लेने में तकलीफ के चलते मुंबई के ब्रीच कैण्डी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था।
वो जमाना था तब हर कोई या तो धर्मेन्द्र बनना चाहता था या राजेश खन्ना। उस दौर में लोग अपने बच्चों के नाम भी बिना सोचे समझे धर्मेन्द्र या राजेश रख देते थे। धर्मेन्द्र किसी वंश परंपरा से फिल्मी दुनिया में नहीं आए थे। वे शायद फिल्म फेयर पत्रिका के राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित नए प्रतिभा पुरस्कार के विजेता थे और पुरस्कार विजेता होने के नाते फिल्म में काम करने के लिए पंजाब से मुंबई गए, लेकिन फिल्म कभी नहीं बनी।
गूगल गुरू के मुताबिक मेरे जन्म के एक साल बाद उन्होंने 1960 में अर्जुन हिंगोरानी की फिल्म ‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’ के साथ अपनी फिल्मी यात्रा शुरु की थी। 1961 में फिल्म ‘बॉय फ्रेंड’ में उनकी सहायक भूमिका थी और 1960 और 1967 के बीच कई फिल्मों में उन्हें रोमांटिक रुचि के रूप में लिया गया था।
धर्मेन्द्र को न रोना आता था, न नाचना, लेकिन बाद में उन्होंने सब सीखा। उनकी तकरीबन 300 फिल्मों में से अधिकांश फिल्में मैंने देखीं। कभी स्कूल से भागकर तो कभी घर से पैसे चोरी करके। लेकिन धर्मेन्द्र बाद में अपनों के लिए धरम बन गए। उन्होंने फिल्मी दुनिया की हर छोटी बड़ी, अभिनेत्री के साथ काम किया। नूतन, माला सिन्हा, नंदा, सायरा बानो, मीना कुमारी से लेकर हेमा मालिनी तक उनकी प्रिय अभिनेत्रियां रहीं। उन्होंने नूतन के साथ सूरत और सीरत (1962), बंदिनी (1963), दिल ने फिर याद किया (1966) में काम किया और दुल्हन एक रात की (1967), माला सिन्हा के साथ अनपढ़ (1962), पूजा के फूल (1964), बहरीन फिर भी आएगी (1966) और आंखें (1968), आकाशदीप (1965) में नंदा के साथ और शादी (1962), आई मिलन की बेला (1964) में सायरा बानो के साथ काम किया।
धर्मेन्द्र ने एक जमाने में नकारात्मक रोल भी खूब किए। रेशम की डोरी (1974) को याद कीजिए। मीना कुमारी के साथ धर्मेन्द्र की जोड़ी कामयाब मानी गई। दोनों ने करीब 7 फिल्मों में साथ काम किया, जिनमें मैं भी लड़की हूं (1964), काजल (1965), पूर्णिमा (1965), फूल और पत्थर (1966), मझली दीदी (1967), चंदन का पालना शामिल हैं।
बात 1967 की है। बहारों की मंजिल (1968), फूल और पत्थर (1966) में उनकी एकल नायक की भूमिका थी, जो उनकी पहली एक्शन फिल्म थी। यह लंबे समय से अनुमान लगाया गया है कि मीना कुमारी और धर्मेन्द्र के बीच 1960 के दशक में अंतरंग संबंध थे। मीना कुमारी ने उस समय के ए-लिस्टर्स में खुद को स्थापित करने में उनकी मदद की। फूल और पत्थर 1966 की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन गई और धर्मेन्द्र को पहली बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। अनुपमा में उनके प्रदर्शन को समीक्षकों द्वारा सराहा गया। फिल्म में उनके प्रदर्शन के सम्मान में उन्हें 14वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में एक स्मारिका दी गई थी।
धरम जी ने आई मिलन की बेला, आया सावन झूमके, मेरे हमदम मेरे दोस्त, इश्क पर जोर नहीं, प्यार ही प्यार और जीवन मृत्यु जैसी फिल्मों में रोमांटिक भूमिकाएं कीं। उन्होंने शिकार, ब्लैकमेल, कब क्यूं और कहां और कीमत जैसी सस्पेंस थ्रिलर फिल्में कीं। मैंने 1971 में उनकी हिट फिल्म ‘मेरा गांव मेरा देश’ ग्वालियर की काजल टाकीज में 1972 में देखी थी। इसी फिल्म में उन्हें एक्शन हीरो की भूमिका के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर नामांकन मिला। रोमांटिक और एक्शन हीरो की भूमिका निभाने के बाद उन्हें 1975 तक एक बहुमुखी अभिनेता कहा जाने लगा।
धर्मेन्द्र हिन्दी सिनेमा के सबसे सम्मानित और लोकप्रिय सितारों में से एक हैं। 7 दशकों से अधिक लंबे करियर में उन्होंने 300 से ज्यादा फिल्मों में काम किया। जिसमें ‘शोले’, ‘चुपके चुपके’, ‘सीता और गीता’, ‘धरम वीर’ जैसी कई सुपर हिट फिल्में शामिल हैं। उनके डायलॉग्स आज भी खूब दोहराए जाते हैं। जिसमें शोले का ‘बसंती इन कुत्तों के आगे मत नाचना’ सबसे ज्यादा हिट रहा है।
धर्मेन्द्र भले ही 89 साल के थे, लेकिन इडंस्ट्री में वो अंतिम समय तक सक्रिय रहे। धर्मेन्द्र को हाल ही में फिल्म ‘रॉकी और रानी की प्रेम कहानी’ के बाद ‘तेरी बातों… मे ऐसा उलझा जिया’ में देखा गया था, जिसमें उन्होंने अपने अभिनय से दर्शकों का दिल जीत लिया था। वो अगस्त्य नंदा की 21 में भी नजर आने वाले हैं। ये फिल्म 25 दिसंबर को रिलीज होगी।
धर्मेन्द्र ने राजनीतिक पारी भी खेली, लेकिन खेल खेल में। उन्होंने हेमा मालिनी के साथ शादी भी की, लेकिन समय रहते वे अपनी पहली पत्नी के पास पहुंच गए। वे कभी फिल्मी दुनिया के शहंशाह नहीं बने, किंतु उनका जलवा किसी शहंशाह से कम नहीं रहा। वे किसान के बेटे थे और किसानों जैसे ही मनमौजी बने रहे। खाना, पीना, फिटनेस पर ध्यान देना उनका शौक रहा।
धर्मेन्द्र के निधन से जय वीरू की जोडी टूट गई है, लेकिन वे फिल्मी दुनिया को अपने होनहार बच्चे सौंप कर गए हैं। वे जब जब बहार आएगी, फूल मुस्कराएंगे तब तब एक जट यमला की तरह हमें याद आएंगे। विनम्र श्रद्धांजलि।







