अमन आश्रम परा में श्रीमद् भागवत कथा का चौथा दिन
भिण्ड, 10 अक्टूबर। अटेर रोड स्थित अमन आश्रम परा भिण्ड में श्रीमद् भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ के चौथे दिन रविवार को श्री काशीधर्म पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी नारायणानंद तीर्थ महाराज ने कहा कि अज्ञान से अभिमान की उत्पत्ति होती है, ईश्वर के सामने कभी अपने दु:खों को नहीं रोना चाहिए। क्योंकि ईश्वर के जीवन में भी दु:ख आया है, स्वप्न देखते हो और फिर जाग्रत में उस स्वप्न को भूल जाते हो, क्योंकि आप जानते हो कि स्वप्न मिथ्या है। हमें दु:ख इसलिए होता है, क्योंकि हम सुख की वासना लिए हुए बैठे हैं। संपत्ति हो या विपत्ति, अगर मनुष्य का मन ईश्वर के चरणों में लीन हो तो उसे किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होता। परिस्थितियों को रोका नहीं जा सकता परंतु अपने मन को भागवत धर्म के द्वारा संसार को स्वप्नवत मानकर भुलाया जा सकता है।
स्वामी जी ने कहा कि धर्म रूपी बैल के पैर कहे गये है- सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग। पृथ्वी रूपी गाय का पोषण कलियुग में नहीं हो रहा है, जिस पृथ्वी में हम रह रहे हैं उस पर कितने अत्याचार लोग कर रहे है। जिसका भगवान के साथ संबंध हो जाता है वो धर्म को समझता है। जिस राजा के राज्य दंड का भय नहीं होता वहां की प्रजा उश्रृंखिल हो जाती है। संसार की प्रत्येक वस्तु में कुछ न कुछ गुण हैं, ऐसे ही दुनिया में कोई ऐसा जीव नहीं है, जिसमें कोई गुण न हो। ऐसे ही हमारा मन अगर भगवान की शरण में चला जाए और भगवान उसे धारण तो जो हमारा मन टेढ़ा और उल्टा है वो वंदनीय हो जाएगा। जैसे भगवान शिव ने टेढ़े और उल्टे (वक्री) कांतिहीन चन्द्र को अपने अपने मस्तक में धारण करते ही वही चन्द्र पूज्यनीय हो गया, क्योंकि चन्द्रमा मन के देवता है। राग-द्वेष के वशवर्ती होकर धर्म का चिंतन नहीं किया जा सकता। कलियुग में लोगों का ज्ञान दूषित हो गया है लोग कार्य नहीं करना चाहते आराम अत्यधिक चाहते हैं।
कार्यक्रम से पूर्व पदुकापूजन डॉ. वरुणेश दीक्षित और आचार्य कृष्ण कुमार दुबे ने सविधि संपन्न करवाया। जिसमे विभिन्न प्रदेश से आए भक्तजनों तथा स्थानीय लोगों पूजन कर आशीर्वाद प्राप्त किया।