– राकेश अचल
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव इस बार आम चुनावों जैसे ही रोचक और महत्वपूर्ण बन गए हैं। ये चुनाव भाजपा से ज्यादा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्राण-प्रतिष्ठा के चुनाव है। पांचों राज्यों में हालांकि मतदान से ठीक तीन दिन पहले भाजपा का सूपडा साफ होने की संभावनाएं बताई जा रही हैं, लेकिन चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में भाजपा ने जिस तरह से अपनी ताकत झौंक दी है उसे देखकर कांग्रेस नेतृत्व और कार्यकर्ताओं को किसी गलतफहमी का शिकार नहीं होना चाहिए, क्योंकि बाजी पलटने में ज्यादा देर नहीं लगती।
पूरब में मिजोरम विधानसभा चुनाव से लगभग दूर रही भाजपा का सारा ध्यान राजस्थान, छत्तीसगढ और तेलंगाना में कांग्रेस और केसीआर से सत्ता छीनने के साथ ही मध्य प्रदेश में अपनी सत्ता को छीने जाने से बचाने की कठिन चुनौती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इन चारों राज्यों में भाजपा की कमजोर स्थिति का आकलन करते हुए चुनाव प्रचार में अपनी पूरी ताकत लगा दी है। पूरी केन्द्र सरकार के अलावा दीपोत्सव में विश्व कीर्तिमान बनाने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक को सडकों पर उतार दिया है। वे खुद एक-एक दिन में एक-एक दर्जन सभाएं कर रहे हैं। प्रधानमंत्री राजस्थान में एक दिन में चार जनसभाएं और दो शहरों में रोड शो कर रहे हैं। विधानसभा चुनावों में रोड शो करने वाले मोदी जी पहले प्रधानमंत्री हैं। वे सुदूर झारखण्ड में बिरसा मुंडा की जयंती के बहाने भी मप्र और छग के आदिवासियों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं।
भाजपा के प्रादेशिक नेताओं में असंतोष और बगावत की वजह से इन सभी राज्यों में भाजपा को अपने चिर प्रतिद्वंदी कांग्रेस से लडने के साथ ही अपने आपसे भी लडना पड रहा है। दो मोर्चों पर एक साथ लडती हुई भाजपा के नेता अपना आत्मविश्वास खोने के लिए तैयार नहीं हैं। चूंकि मिजोरम छोटा राज्य था इसलिए भाजपा ने वहां अपनी शक्ति जाया नहीं की, किन्तु छत्तीसगढ जीतने के लिए कोई कसर भी नहीं छोडी। आखरी में मुख्यमंत्री के सामने ‘महादेव ऐप’ का भूत भी खडा कर दिया। राजस्थान में प्रवर्तन निदेशालय को हवा का रुख बदलने के लिए मुख्यमंत्री के बेटे तक को घेरने की कोशिश की लेकिन बात बनी नहीं। मुख्यमत्री अशोक गहलोत का जादू काटने के लिए मोदी जी का जादू ज्यादा चलता दिखाई नहीं दे रहा, फिर भी मोदी जी और उनकी भाजपा ने रण छोडा नहीं है।
भाजपा को सबसे ज्यादा मेहनत मप्र में करना पड रही है। मप्र में भाजपा के पास खरीदा हुआ जनादेश है। 2018 में चारों खाने चित हो चुकी भाजपा 2023 में किसी भी तरह अपने लिए एक विधिक जनादेश हांसिल करना चाहती है। इसके लिए भाजपा हाईकमान ने दिल्ली से अपने नौ सांसदों और एक राष्ट्रीय महासचिव को चुनाव मैदान में उतारा है, किन्तु इन 10 में से अनेक हांफते हुए दिखाई दे रहे हैं। यहां तक कि केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर भी अपनी जीत को लेकर बेफिक्र नहीं है। हालांकि केन्द्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते और प्रहलाद पटेल के सामने तोमर जैसी चुनौती नहीं है।
भाजपा हाईकमान को सबसे ज्यादा परेशान बागियों ने किया है। राजस्थान और मप्र के बागी आखिर-आखिर तक आग बरसा रहे हैं। कोई हाथी पर सवार है तो कोई हाथ थामकर भाजपा को चुनौती दे रहा है। भाजपा के लिए राहत की बात सिर्फ इतनी है कि आईएनडीआईए गठबंधन के सदस्य समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो सही समय पर कांग्रेस हाईकमान के प्रति बागी हो गए हैं। बसपा ने भी भाजपा की डगमगाती नाव को थोडा सा सहारा दिया है, लेकिन सभी जगह नहीं। कहीं-कहीं बसपा, भाजपा की प्रतिष्ठा के लिए खतरा भी है। आम आदमी पार्टी, भाजपा के काम नहीं आ पाई, क्योंकि भाजपा हाईकमान से उसकी अनबन हो गई।
मप्र में कांग्रेस हाईकमान और प्रदेश के जय-वीरू यानी पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोडी की साझा कोशिशों से कांग्रेस की हवा बनी हुई है, लेकिन कांग्रेस के गुब्बारे में भाजपा कब आलपिन चुभो दे कोई नहीं जानता। मप्र में जनादेश का अपमान करने के आरोपी ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा ने भूत बना दिया है। भाजपा हाईकमान सिंधिया से अभूतपूर्व श्रम करा रहा है। सिंधिया के सामने ग्वालियर चंबल के अलावा बुंदेलखण्ड और मालवा में चुनाव लड रहे अपने समर्थकों को जिताने के साथ ही भाजपा के अपने प्रत्याशियों को भी जिताने की जिम्मेदारी है। वे अकेले मेहनत कर रहे है। इस बार उनके साथ न उनका बेटा है और न पत्नी। वे अभी तक भाजपाई नहीं बन पाए हैं या वे अपनी ताकत लोकसभा चुनाव के लिए बचाकर रखे हुए हैं। मजे की बात ये है कि पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती सारे चुनावी परिदृश्य से नदारद हैं।
पांच राज्यों के विधानसभा परिणामों को बदलना आसान काम नहीं है, लेकिन इतना कठिन भी नहीं है जितना कांग्रेस मान बैठी है। कांग्रेस की मामूली सी गलती भी उसका बना-बनाया खेल खराब कर सकती है। अब जनता के हाथों में ही सब कुछ है। जनता चाहे तो ही कुछ नया हो सकता है, अन्यथा नेता तो अपना काम कर चुके हैं।