विधानसभा चुनाव : मोदी हैं तो मुश्किल है

– राकेश अचल


सियासती जुमलों को बदलते देर नहीं लगती। कल तक भाजपा के जो लोग ये कहते नहीं थकते थे कि ‘मोदी है तो मुमकिन है’ वे ही आज कहते सुनाई दे रहे हैं कि ‘मोदी है तो मुश्किल है’। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस दशक के सबसे बडे और चर्चित नेता है। वे लोकप्रिय हैं, लेकिन उनकी लोकप्रियता अब उनकी ही पार्टी पर भारी पडने लगी है। पिछले कुछ वर्षों में जितने भी विधानसभा चुनाव हुए उनमें भाजपा को मोदी जी के अथक श्रम के बाद भी कामयाबी नहीं मिली। बावजूद इसके मोदी जी आज भी 73 साल की उम्र में 50 साल के युवाओं की तरह लगातार मेहनत कर रहे हैं।
इस हफ्ते प्रधानमंत्री मोदी ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ में सबसे ज्यादा सभाएं कीं। मोदी इस साल मप्र में जितनी बार आए उतना और कोई प्रधानमंत्री कभी नहीं आया। मोदी जी पार्टी के सभी प्रत्याशियों के लिए सभाएं कर रहे हैं। केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के लिए प्रचार करने वे मुरैना पहुंच गए। तोमर के बेटे का एक वीडियो वायरल होने के बाद उनकी हवा खराब होने की खबर सुनते ही मोदी जी मुरैना जा धमके, उन्होंने यहां भी वही सब कहा जो वे दूसरी सभाओं में कहते हैं। अब उनके भाषणों में उनकी पार्टी की सरकार की उपलब्धियों की नहीं, कांग्रेस की नाकामियों और कांग्रेस के झण्डे के नीचे एकजुट हुए एआईएनडीआईए के दलों के नेताओं पर निजी हमले ज्यादा हो रहे है।
कल मैं हजामत करने के लिए अपने बारवर के यहां था। वहां मैंने चुपचाप आमजनों को ये कहते सुना कि अब मोदी मुमकिन नहीं, मुश्किल का नाम हो गए हैं। वे जहां-जहां जा रहे हैं, वहां-वहां भाजपा की मुश्किलें और बढ रही हैं। भारत में चाय के अड्डों के बाद हजामत बनाने की दुकानें राजनितिक चर्चा का सबसे बडी जन संसदें मानी जाती हैं। यहां जनता फुर्सत में होती है और अपने मन की बात करती है। यहीं एक सज्जन कह रहे थे कि अबकी तो दतिया में डॉ. नरोत्तम मिश्रा भी फंस गए, मिश्रा मप्र सरकार के टिनोपाल मंत्री हैं। वे गृह मंत्री हैं और उनके विकास में दतिया में हेमा मालिनी को नचवाना भी शामिल है।
नरेन्द्र सिंह तोमर के बेटे की तरह उनके बेटे के कारनामे भी दतिया में खूब चर्चित हैं। इस बार डॉ. मिश्रा को विधानसभा जाने से रोकने के लिए कांग्रेस के अलावा उनकी अपनी पार्टी के कार्यकार्ता और नेता भी सक्रिय हैं। कांग्रेस के हीरो राहुल गांधी भी यहां सभा कर चुके हैं। कांग्रेस ने दतिया में अपने प्रत्याशी को न मौके पर बदला भी। मिश्रा की वजह से यहां भी भाजपा दो फाड हो चुकी है। भाजपा के दूसरे बडे नेता अवधेश नायक के साथ कांग्रेस में जा चुके हैं। आपको याद होगा कि मिश्रा के बच्चों के बस्ते स्कूल में नोट उगल चुके हैं।
‘मोदी हैं तो मुश्किल है’ का जुमला अब आम आदमी की जुबान पर है। इस जुमले को विपक्ष ने नहीं, खुद सत्तापक्ष के कार्यकर्ताओं ने चर्चित किया है। मोदी जी की ताबडतोड सभाओं के बावजूद मप्र में चुनावी हवा बदलने का नाम नहीं ले रही। लेकिन मोदी जी ने अभी तक हार नहीं मानी है। वे पूरे जोश-खरोश से सभाएं कर रहे हैं, लेकिन उनके भाषणों में 2018 के विधानसभा चुनाव के समय की ऊर्जा कहीं भी नहीं दिखाई दे रही। मोदी जी ही नहीं उनके हनुमान केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह की हताशा भी उनके भाषणों में साफ दिखाई दे रही है। अकेले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तारीफ करना होगी कि वे जैसे कल तक जनता के बीच सहज थे, वैसे ही आज भी हैं। उनका आत्मविश्वास कमजोर नहीं पडा है।
भाजपा के नए सूरज ज्योतिरादित्य सिंधिया भी जितना बन पडा है, पार्टी के लिए प्रचार कर रहे हैं। वे कहीं मिमिक्री कर रहे हैं तो कहीं आंसू छलका रहे हैं, लेकिन उनकी नाटकीयता भी टिक नहीं पा रही। सिंधिया के सामने ग्वालियर-चंबल संभाग में अपने समर्थकों को जिताने के अलावा बुंदेलखण्ड और मालवा में भी अपने समर्थकों की डूबती नौका पार लगाने की है। ग्वालियर में सिंधिया की वजह से भाजपा में बिखराव का सिलसिला अभी तक थमा नहीं है। हाल ही में मतदान से दस दिन पहले भाजपा के पूर्व विधायक बृजेन्द्र तिवारी भाजपा छोड कांग्रेस में शामिल हो गए। तिवारी के कांग्रेस में जाने से सिंधिया के सिपाहसालार मोहन सिंह राठौर का भितरवार सीट से जीतना कठिन हो गया है। मोहन सिंह पहली बार चुनाव लड रहे हैं।
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में मिजरोम के विधानसभा चुनावों से भाजपा शुरू से अपने आपको अलग किए हुए है। वहां भाजपा के प्रत्याशी अपने बूते चुनाव लड रहे थे। मिजोरम में भाजपा 90 में से कुल 23 पर ही अपने प्रत्याशी खडे कर पाई। भाजपा को सभी सीटों के लिए प्रत्याशी मिले ही नहीं। प्रधानमंत्री तो दूर भाजपा का कोई छोटा नेता भी मिजोरम में चुनाव प्रचार के लिए नहीं गया। मणिपुर की आग की लपटें वहां भाजपा को जाने से रोके रहीं। तेलंगाना में भाजपा ने चुनाव प्रचार तो किया, खुद मोदी जी भी वहां गए, लेकिन भाजपा ने अपनी तमाम ताकत और संसाधन मप्र, राजस्थान और छत्तीसगढ में खर्च किए, क्योंकि सारा दारोमदार इन्हीं तीन राज्यों में है। भाजपा यदि ये तीन राज्य नहीं जीत पाती तो ‘मोदी है तो मुश्किल है’ का जुमला और गहरा होने की आशंका है।
मोदी है तो मुश्किल है! का नारा दरसअल तेलंगाना से ही चला। केसीआर की बेटी ने कविता ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निशाना साधा और कहा कि मोदी है तो मुश्किल है, जीडीपी पाताल में और महंगाई आसमान में पहुंच गई है और अब यह बात सब दूर फैल चुकी है। विधानसभा के इन चुनावों में भाजपा के साथ अनिष्ट भी लगातार हो रही है। केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल के काफिले से टकराकर एक शिक्षक की मौत हो गई। उनकी वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री उमा भारती प्रधानमंत्री के व्यवहार से नाराज होकर विधानसभा चुनावों के चलते हिमालय चली गईं। भाजपा हाईकमान और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से नाराज आरएसएस के आधा दर्जन से अधिक नेता खुद चुनाव मैदान में भाजपा के अधिकृत प्रत्याशियों के खिलाफ खडे हैं, ढाई दर्जन से अधिक बागियों को मोदी जी का रुतबा भी मैदान से नहीं हटा सका। लेकिन मोदी जी ने खुद मैदान नहीं छोडा है। यही हाल राजस्थान और छत्तीसगढ का है। मोदी जी को मप्र में भाजपा की सत्ता बचना है और राजस्थान में कांग्रेस से सत्ता छीनना है। यानि लडाई दोतरफा है। नामुमकिन को मुमकिन बनाने के लिए पहचाने जाने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मुमकिन को मुश्किल होने से बचा लें यही बहुत है, क्योंकि मतदाताओं का मूड बदला-बदला दिखाई दे रहा है।