– राकेश अचल
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के दौरान फंसे भारतीय छात्रों को स्वदेश लाने के अभियान ‘आकाश गंगाÓ की कामयाबी के बाद अब सूडान में गृहयुद्ध के बीच फंसे भारतीयों को बाहर निकालने के लिए भारत सरकार के सामने एक और अग्नि परीक्षा देने का समय है। सूडान में स्थितियां यूक्रेन से कम भयानक नहीं हैं।
सूडान में नागरिक सरकार को सत्ता हस्तांतरित करने की मांग को लेकर 2021 से ही संघर्ष चल रहा है। मुख्य विवाद सेना और अर्धसैनिक बल ‘आरएसएफÓ के विलय को लेकर है। गत तीन दिनों से जारी ताजा संघर्ष में सूडान के अर्धसैनिक बल ‘रैपिड सपोर्ट फोर्सÓ यानी आरएसएफ और वहां की सेना आमने-सामने है। राजधानी खार्तूम में रणनीतिक लिहाज से अहम लगभग सभी जगहों पर झडपें हो रही हैं। दोनों पक्षों ने सूडान की राजधानी खार्तूम के अलग-अलग हिस्सों पर नियंत्रण स्थापित करने का दावा किया है। इस संघर्ष में अब तक 100 नागरिकों के मरने और करीब 1100 के घायल होने का अनुमान है।
सूडान में फंसे भारतीय नागरिकों की मदद के लिए सऊदी अरब आगे आया है। सऊदी ने अपने नागरिकों और राजनयिकों के साथ भारत समेत अन्य देशों के फंसे 150 से ज्यादा लोगों निकाला है। सूडान में फिलहाल करीब तीन हजार भारतीय फंसे हुए हैं। इनमें से करीब 1200 भारतीय ऐसे हैं, जिनके परिवार वहां पिछले लगभग 150 सालों से बसे हुए हैं। सूडान में फंसे भारतीयों की सुरक्षित निकासी के लिए विदेश मंत्री अमेरिका, सऊदी अरब, तुर्की और संयुक्त अरब अमीरात से संपर्क में है।
आपको बता दें कि अप्रैल 2019 में ओमर अल बशीर की सरकार गिरी है तबसे सूडान में स्थिरता नहीं आ पाई है और ताजा संघर्ष के पीछे कई घटनाओं, तनावों और राजनीतिक संघर्षों की एक लंबी श्रृंखला है। हिंसा के ताजा दौर के पीछे दो मुख्य सैन्य नेताओं के बीच संवाद की कमी है, जिन पर देश में नागरिक सरकार की बहाली की जिम्मेदारी है। आरएसएफ प्रमुख मोहम्मद हमदान दगालो जिन्हें हेमेदती के नाम से भी जाना जाता है और सेना प्रमुख जनरल अब्देल फतेह अल बुरहान। लेकिन इस संघर्ष के कई कारणों में सबसे बड़ा कारण सोना है। पूरे अफ्रीकी महाद्वीप में सबसे बड़ा सोने का भण्डार सूडान में है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, सिर्फ 2022 में ही सूडान ने 41.8 टन सोने के निर्यात से करीब 2.5 अरब डॉलर की कमाई की थी।
जानकारों के मुताबिक आर्थिक संकट से जूझ रहे देश के लिए सोने की खदानें ही आय का मुख्य स्त्रोत हैं और इस संघर्ष के समय ये रणनीतिक रूप से अहम हो गई हैं, लंबे समय से ये आरएसएफ का प्रमुख वित्तीय स्त्रोत रहा है और सेना इसे संदेह से देखती है। अंधाधुन सोने के खनन ने खदानों के आस पास के इलाकों पर बहुत बुरा असर डाला है। खदानों के ढहने से मरने वालों की भारी संख्या और शोधन में इस्तेमाल होने वाले मर्करी और आर्सेनिक ने इस तबाही को और गंभीर बना दिया है।
सूडान के मौजूदा संकट को समझने के लिए आपको अतीत के पन्ने पलटने होंगे। साल 1956 में सूडान का इलाका ब्रिटिश शासन से आजाद हुआ, इसके बाद एकीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई जो उतार चढ़ाव से भरपूर रही। इस दौरान देश को अपने तेल भण्डार के बारे में पता चला और यह मुख्य वित्तीय स्त्रोत बन गया। 1980 के दशक के मध्य, देश के दक्षिणी हिस्से में आजादी के लिए संघर्ष शुरू हो गया और तीखे संघर्षों के बाद 2011 में रिपब्लिक ऑफ साउथ सूडान बनने के साथ इस संघर्ष पर विराम लग। दक्षिणी सूडान बनने के साथ ही कच्चे तेल के निर्यात से होने वाली दो तिहाई आमदनी सूडान के हाथ से चलेगी। हकीकत ये है कि 2019 में सेना के तख्तापलट के कारण ओमर अल बशीर की सरकार गिरने के बाद यह देश दो प्रमुख लोगों के हाथ में चला गया, जिनके पास हथियारबंद समूह थे- हेमेदती और अल बुरहान। अन्य कारकों को अगर छोड़ दें तो आरएसएफ के पास 70 हजार हथियारबंद लोग और 10 हजार पिकअप ट्रक हैं और वो सूडान का स्वयंभू हथियारबंद समूह बन गया। इतनी बड़ी ताकत के साथ वो राजधानी खार्तूम को नियंत्रित करने का दावा करने लगा। साल 2021 में दोनों नेताओं ने बातचीत शुरू करने पर सहमति जताई जिसमें सूडान में एक नागरिक सरकार के गठन का रास्ता साफ होता।
उल्लेखनीय है कि दिसम्बर में जब ये सहमति बनी तो ये स्पष्ट था कि सोने का सारा उत्पादन चुनी हुई सरकार को हस्तानांतरित कर दिया जाएगा। लेकिन हेमेदती की बढ़ती ताकत को देखते हुए अल बुरहान के करीबी लोगों ने आरएसएफ की गतिविधियों को नियंत्रित करने की सेना को सलाह दी। हालांकि उत्तरी सूडान में सोने की खदानों के नियंत्रण में अपनी हिस्सेदारी के लिए कई और ताकते भी सक्रिय है। सूडान की हिंसा और यूक्रेन के युद्ध के हालात एकदम अलग हैं, इसलिए वहां से भारतीयों को बाहर निकालना उतना आसान नहीं है, जितना कि यूक्रेन में था। अब सारा दारोमदार सऊदी अरब के ऊपर टिका है और उसने उम्मीद के मुताबिक भारत का सहयोग भी किया है।
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