पंच कल्याणक महोत्सव में हुआ तप कल्याणक

भिण्ड, 21 फरवरी। भारत गौरव गणाचार्य विराग सागर महाराज के ससंघ 40 पिच्छियों के सानिध्य एवं प्रतिष्ठावचार्य संदीप शास्त्री द्वारा विधि विधान से नवीन चौबीसी जिन मन्दिर मेहगांव में श्री 1008 मज्जिनेन्द्र आदिनाथ जिनबिंब पंच कल्याणक वेदी प्रतिष्ठा एवं गजरथ महोत्सव विश्वशांति महायज्ञ के अवसर पर जन्म कल्याणक के पश्चात तीर्थंकर बालक का विभिन्न क्रीड़ाओं के साथ बाल्यकाल व्यतीत हुआ। युवावस्था में सुयोग्य कन्यााओं के साथ युवराज का विवाह संपन्न हुआ।
इस अवसर पर गणाचार्य विराग सागर महाराज ने कहा कि महाराजा नाभिराय ने अपने पुत्र आदिकुमार को सुयोग्य जानकर राज्य का संपूर्ण भार सौंप दिया। उस समय कल्पवृक्षों से जो सामग्री प्राप्त होती थी वह बंद होने लगी। प्रजा के लिए संकट खड़ा हो गया। भूखी-प्यासी प्रजा को देखकर महाराजा आदिकुमार ने लोगों को विद्या वाणिज्य का उपदेश देकर उन्हें जीवन निर्वाह की शिक्षा प्रदान की। महाराजा आदिनाथ के भरत, बाहुबलि और 101 पुत्र और ब्राह्मी एवं सुंदरी दो कन्याओं का जन्म हुआ। आयु के 83 वर्ष व्यतीत हो जाने पर जन्मोत्सव के समय नीलांजनाएं स्वर्ग से आई, जिनका नृत्य देखते हुए सहसा एक नीलांजना की मृत्यु देखकर महाराजा आदिकुमार को बैराग्य हो गया। उन्होंने अपने पुत्र को राज्यभार सौंपकर आत्म कल्याण हेतु सन्यास मार्ग स्वीकार कर वन में जाकर पंचमुष्ठि केशलोचन किया और वस्त्राभूषण का त्याग कर दिगंबर दीक्षा धारण की। आचार्यश्री ने बताया कि भगवान आदिनाथ का यह दीक्षा कल्याणक प्राणी मात्र को कल्याण मार्ग का दिगदर्शन कराने वाला है। आज का व्यक्ति सोचता है कि जिसके पास कुछ नहीं होता है वे घर परिवार को छोड़कर बैराग्य के मार्ग पर चलते हैं, किन्तु ऐसा नहीं है। जिनके पास कुछ भी नहीं होता उसे धन वैभव पाने की लालसा लगी रहती है, जबकि जिसके पास सब कुछ होता है, वे उन मार्गों को सहज ही छोड़कर आत्मकल्याण के मार्ग पर बढ़ जाते हैं। भगवान का दीक्षा कल्याणक हमें यह शिक्षा देता है कि हमें मनुष्य जन्म प्राप्त हुआ है तो हम अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर आत्म कल्याण के मार्ग पर अग्रसर हों, जिससे हमारा आगामी जीवन सफल बनें। इस अवसर पर भगवान की वैराग्यह की संपूर्ण नाटिका चित्रण के माध्यनम से दिखाई गई। इस अवसर पर मप्र शासन के नगरी प्रशासन राज्यमंत्री ओपीएस भदौरिया ने आचार्यश्री को श्रीफल चढ़ाकर आशीर्वाद लिया। मंगलवार 22 फरवरी को सुबह भगवान का आहार होगा एवं दोपहर में समवशरण में भगवान की देशना होगी।