– राकेश अचल
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव अच्छे मुख्यमंत्री हैं या नहीं इस पर दो क्या दस राय हो सकती हैं, लेकिन वे एक दक्ष योगी हैं इसमें कोई दो राय नहीं है। भाजपा के पचमढी शिविर में डॉ. यादव ने शीर्षासन और मयूरासन लगाकर ये साबित भी कर दिया। मुख्यमंत्री यादव को सरकार चलाने के लिए भी सिर के बल खडा होना पड रहा है।
भाजपा विधायकों के लिए आयोजित पचमढी शिविर का उदघाटन केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने किया था और समापन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने। इस महत्वपूर्ण शिविर में तमाम गैर विधायक भी थे लेकिन केन्द्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का खेमा सिरे से गायब था। प्रदेश में सिंधिया खेमे के पहले दो दर्जन विधायक होते थे, लेकिन अब शायद 15 ही रह गए हैं। सिंधिया समर्थक विधायक शिविर से जान-बूझकर गायब रहे या उन्होंने अपने नेता की उपेक्षा से नाराज होकर शिविर का बहिष्कार किया, कहना मुश्किल है। क्योंकि भाजपा ने इस घटना को गंभीरता से नहीं लिया।
आपको याद होगा कि सिंधिया 2020 में कांग्रेस छोडकर भाजपा में शामिल हुए थे और उन्हीं की वजह से मप्र में 2018 में सत्ताच्युत हुई भाजपा को 2020 में बिना चुनाव लडे सत्तारूढ होने का मौका मिला था। सिंधिया हालांकि केन्द्र में मंत्री हैं, किंतु भाजपा ने उन्हें भाव देना बंद कर दिया है। पिछले दो साल में सिंधिया प्रदेश सरकार से अपने एक भी समर्थक को लाभ का पद नहीं दिला पाए हैं। इससे उनके अपने समर्थक भी क्षुब्ध हैं। खुद सिंधिया अपने संसदीय क्षेत्र में अपनी पसंद के प्रशासनिक अधिकारी तैनात नहीं करा पा रहे हैं।
मप्र में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के सामने दूसरी बडी बाधा केन्द्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान बने हुए हैं। चौहान ने अपने गृह क्षेत्र बुधनी में एक बार फिर से पदयात्रा शुरू कर दी है। चौहान के पस सिंधिया से ज्यादा विधायक हैं। सिंधिया और चौहान का दबाव ही मुख्यमंत्री यादव को शीर्षासन लगाने के लिए मजबूर होना पड रहा है। डॉ. यादव के ऊपर तीसरा दबाव विधानसभा अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर का है। तोमर और चौहान यादव सरकार पर दबाव बनाकर अपने बेटों को आगामी विधानसभा चुनाव के लिए तैयार करना चाहते हैं। सिंधिया भी 2029 के आमचुनाव के लिए अपने बेटे को तैयार करने में लगे हैं।
एक अनार सौ बीमार की कहावत का सामना कर रहे मुख्यमंत्री डॉ. यादव के सामने पार्टी प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा के अलावा पूर्व गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा को भी साधना पड रहा है। इन दोनों की पार्टी हाईकमान में भी घुसपैठ है। सरकार के खिलाफ ये दोनों भी कभी भी समस्या खडी कर सकते हैं, हालांकि अभी सब शांत बैठे हैं। मप्र में अभी नए प्रदेशाध्यक्ष का चुनाव कहिये या मनोनयन बाकी है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, प्रदेशाध्याक्ष वीडी शर्मा के स्थान पर अपनी पसंद का अध्यक्ष लाना चाहते हैं। प्रदेश के वरिष्ठ मंत्री कैलाश विजयवर्गीय की नजर तो शुरू से मोहन यादव की कुर्सी पर है। मोहन यादव को कैलाश विजयवर्गीय का हक मारकर बैठाया गया है।
भाजपा को पचमढी तब बुलाया गया जब भाजपा सरकार के दो मंत्री विजय शाह और उप मुख्यमंत्री जगदीश देवडा अपने बयानों से सरकार की छवि धूमिल कर चुके हैं। ऑपरेशन सिंदूर के बाद इन दोनों ने ऐसे बयान दिए जिनसे पूरी भाजपा शर्मसार हो चुकी है। शाह का मामला अदालत की निगरानी में है। बावजूद इसके मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव सभी गुटों को साधकर सरकार बचाए हुए है।